बुद्ध की धरती पर शांति का उद्‍घोष

- राघवेन्द्र नारायण मिश्
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बिहार की बदलती छवि के बीच बौद्ध धर्म के शीर्ष गुरु दलाई लामा ने 'पाटलिपुत्र करुणा स्तूप' का उद्घाटन किया और कहा कि बुद्ध की धरती बिहार एक बार फिर से अपनी गौरव गाथा लिखेगा और दुनिया को शांति और करुणा का संदेश देगा।

इतिहास अपने आप को दोहराता है। बिहार की जिस धरती पर ज्ञान प्राप्त कर महात्मा बुद्ध ने पूरी दुनिया को शांति और अहिंसा का संदेश दिया बाद के दिनों में वही बिहार अपराध और हिंसा का पर्याय बन गया। इतिहास ने फिर करवट ली और बिहार की छवि बदलने लगी। बदलाव और विकास के दौर में इस बार बौद्ध धर्म के शीर्ष गुरु दलाई लामा ने इस धरती से फिर शांति का उद्‍घोष किया।

दलाई लामा ने बिहार के बदलाव को महसूस किया और उसकी जमकर तारीफ भी की। धर्मगुरु ने बिहार की धरती को नमन कर विश्व को करुणा का संदेश दिया। शायद यही वजह है कि जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परम पावन से पटना में नवनिर्मित बुद्ध स्मृति पार्क के नामकरण की गुजारिश की तो उनके मुँह से एक ही शब्द निकला- करुणा।

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दलाई लामा द्वारा लोकार्पित 'पाटलिपुत्र करुणा स्तूप' अब दुनिया को बदले बिहार की झलक दिखाने के लिए आमंत्रित कर रहा है। इस स्तूप के माध्यम से पाटलिपुत्र के गौरव की पुनर्स्थापना को दलाई लामा ने भी तहे दिल से कबूल किया। उन्होंने श्रीलंका के अनुराधापुरम्‌ से लाए गए महाबोधि वृक्ष को स्तूप परिसर में रोपित किया और दुनिया भर के छह देशों से लाए गए बुद्ध अवशेषों के कलश भी स्थापित किए। दलाई लामा बिहार आए तो उनके लिए खासतौर पर चाइनीज फूड बनवाए गए थे लेकिन उन्होंने बिहियाँ की पूड़ी-सब्जी खाकर बिहार के साथ आत्मीयता दर्शाई।

तिब्बत के धर्मगुरु ने कहा कि बिहार को भगवान बुद्ध का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए इसे विकास से कोई रोक नहीं सकता। उन्होंने बदलाव के प्रयासों की सराहना की और भविष्यवाणी के अंदाज में कहा कि बिहार फिर से धर्म और संस्कृति के उत्थान का केंद्र बनेगा। बिहार की बदहाली के दिन अब बीत चुके हैं और अब नालंदा की याद को फिर से जीवित करने की कोशिश अपना सार्थक आकार ग्रहण कर रही है।

भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद उनके अनुयायियों ने उनके अस्थि अवशेष को तलवार की नोक पर बाँटना चाहा। बौद्ध इतिहास कहता है कि आठ गणराज्यों और मगध के बीच भस्म बंटे और कुंभ द्रोण नामक ब्राह्मण ने ले लिया। कालांतर में अवशेष म्याँमार, श्रीलंका, कोरिया, जापान और तिब्बत पहुँच गए। बिहार सरकार और दलाईलामा के संयुक्त प्रयास से इन अवशेषों को पटना लाकर उन्हें करुणा स्तूप में स्थापित किया गया है।

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सम्राट अशोक ने अपनी पुत्री संघमित्रा द्वारा श्रीलंका के अनुराधापुरम में बोधिवृक्ष के जिस पौधे को भिजवाया था उसी बोधि वृक्ष से एक पौधा लाया गया है जो इस बुद्ध स्मृति पार्क में लगाया गया। जिस महाबोधि वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था उसका मूल स्वरूप बिहार से ही गायब हो गया था।

गौतम बुद्ध के मिले ज्ञान का साक्षी यह वृक्ष सदियों से सजा पा रहा था। बोध गया में सम्राट अशोक की पत्नी ने ही इसे कटवा दिया था। पुराने वृक्ष से शाखाएँ पनपी तो बंगाल के राजा शशांक ने एक बार फिर उसे कटवा दिया हालाँकि उससे पहले इसके मूल अंश से पनपा पौधा श्रीलंका पहुँच चुका था।

पटना का करुणा स्तूप दुनिया का अकेला स्तूप हो गया है जहाँ पर्यटक अंदर जाकर अवशेष कलश देख सकेंगे। करुणा स्तूप अनोखे वास्तुकला के लिए भी जाना जाएगा। इस स्तूप में साठ कमरों का ध्यान केंद्र भी बनाया गया है। इस स्तूप का डिजाइन बनाने वाले बिहार के युवा आर्किटेक्ट विक्रम लाल अक्षरधाम मंदिर के भी आर्किटेक्ट रहे हैं। लगभग बीस देशों की अध्ययन यात्रा और बुद्ध पर हुए शोधों के मनन के बाद उन्होंने स्तूप का डिजाइन तैयार किया है। इस करुणा स्तूप में अंदर का हिस्सा बुलेटप्रूफ है। यह बौद्ध आर्किटेक्ट का बेजोड़ नमूना है। स्तूप 22 एकड़ में फैला है और इस पर 125 करोड़ खर्च हुए हैं। दुनिया के सबसे बड़े इस स्तूप की ऊँचाई 200 फुट है।

पटना के बाद अब वैशाली में भी स्तूप बनाने की घोषणा हो चुकी है जहाँ उस क्षेत्र की खुदाई से मिले बौद्ध अवशेष रखे जाएँगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि बुद्ध के अवशेष के आठ हिस्से हुए थे उनमें से सिर्फ एक को यहाँ लाया गया है। शेष सात का पता नहीं है। नालंदा के गृद्धकूट पर्वत की खुदाई से बौद्ध धर्म से संबंधित कई अवशेष मिल सकते हैं। इसके लिए मनमोहन सिंह को पत्र लिखा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बुद्ध करुणा स्तूप का उद्घाटन दलाई लामा के हाथों करवाकर इस स्थल को दुनिया भर के बौद्धों के लिए आस्था का केंद्र बना दिया है। इस पूरे आयोजन में अर्थशास्त्र को भी ध्यान में रखा।

भविष्य में यह स्तूप पर्यटकों को खींचेगा और राज्य के खजाने की खनखनाहट भी बढ़ेगी। स्तूप परिक्रमा के लिए तीन अलग-अलग प्रदक्षिणा पथ बनाए गए हैं जिनके माध्यम से सर्वोच्च तल तक पहुँचा जा सकता है। पवित्र अवशेषों को शीशे की संरचना में प्रतिष्ठित किया गया है। स्तूप प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण है। ध्यान केंद्र, स्तूप, संग्रहालय के अलावा बहुमंजिला कार पार्क भी बन चुका है ताकि पर्यटकों को कोई दिक्कत नहीं हो। नालंदा के प्राचीन महाविहार के मठों के अनुरूप ध्यान केंद्र की वास्तुकला बनाई गई है। यहाँ साठ वातानुकूलित कमरे हैं और हर कमरे से मुख्य स्तूप का दर्शन किया जा सकता है।

संग्रहालय में भगवान बुद्ध के जीवन तथा बौद्ध धर्म के सार तत्वों को मूल शिल्पकौशल, त्रिआयामी प्रतिरूपों तथा छायाचित्रों द्वारा प्रदर्शित किया गया है। जाहिर है यह स्तूप दुनिया भर के बौद्धों के लिए आस्था और अर्चना के साथ-साथ ध्यान का भी केंद्र बनने वाला है।

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