सेल्फ एनालिसिस करने के लिए ये बातें अपनाएं।
खुद का आकलन कीजिए- बच्चों के पार्क में रेल होती है, वृत्ताकार पटरियों पर दौड़ती हुई। दिनभर में भले ही यह बीसियों चक्कर लगा ले पर पहुंच कहीं नहीं पाती। इसीलिए आंखे बंद करके चलते (या दौड़ते) रहना बेमानी है। सही तरीके से आगे बढ़ने के लिए रुकना और यह देखना लाजमी है कि हम अब तक कितना चल पाए हैं और कितने वक्त में।खुद की खबर नहीं- खुद को खुद के बांटों से, खुद ही के तराजू में तौलने की कवायद है आत्मनिरीक्षण। 'इंट्रोस्पेक्शन' इसका अंग्रेजी पर्याय कहा जा सकता है। हम सबके भीतर पसरी है, हमारे ही द्वारा रची गई दुनिया। इसी भीतरी दुनिया को बिसराकर, हम बाहरी दुनिया को कंठस्थ करते रहते हैं। आज का इंसान 'इनसाइक्लोपीडिया' हो जाने की जुगत में हैं, पर विरोधाभास यह कि हमें अपना ही पूरा-पूरा ज्ञान नहीं। यही अज्ञान दुखों की नींव है।मन का लेखा जोखा- हर मन में है एक बहीखाता, जो विचारों का लेखा जोखा है। इसके पहले पन्नों पर है- हल्दी का सातिया। इसमें दर्ज हैं- हमारे नकद-उधार, नफे-नुकसान, मूल-सूद, भूल-चूक, लेनी-देनी...। जिंदगी के अगले कारोबार में फायदे के लिए पलटने होने इस बहीखाते के पिछले पन्नो, गिननी होगी अब तक के कारोबार में कमाई गई (या गँवाई गई) रकम।विचारों की 'सुनामी' लहरें- खुद को आंकने की प्रक्रिया का पहला पड़ाव है- फुर्सत। न हो तो निकालिए। फिर अपने बिस्तर पर, छत पर, आज ही बैठ जाइए अपना आत्म निरीक्षण करने। गरज यह कि जगह खामोश हो। अब आँखें बंद कीजिए और अपने भीतर उतर जाइए धीरे धीरे। आपको विचारों का एक तालाब दिखाई दे रहा है- शांत। इसके पानी में कोई हलचल नहीं। पास ही पड़ा ढेला उठाइए और फेंक दीजिए पूरी ताकत से पानी में। पानी में तरंगें उठने लगी हैं- विचारों की सुनामी लहरें। इस तूफान को उठने दीजिए। डुबो दीजिए सब विचारों को इसमें। यह खुद का विध्वंस रचने जैसा है। आखिर प्रलय जरूरी है पुनर्निर्माण के लिए।