इस तरह बढ़ेगा आपका आत्मविश्वास

बुधवार, 24 सितम्बर 2014 (14:01 IST)
'उसमें आत्मविश्वास की कमी है।
'इंटरव्यू में व्यक्ति का आत्मविश्वास परखा जाता है।'
'जिसे अपने ऊपर ही विश्वास नहीं वह दूसरों को क्या विश्वास दिलाएगा?'

इस प्रकार के वाक्य हम सबने अनेक बार सुने हैं। आत्मविश्वास की चर्चा अक्सर सुनने को मिलती है। आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए बड़े-बड़े कोर्स चलाए जाते हैं, भाषण दिए जाते हैं, पुस्तकें लिखी जाती हैं, वर्कशॉप होते हैं। और तो और तावीज़ पहने-पहनाए जाते हैं।

आईएएस, आईपीएस जैसी बड़ी-बड़ी परीक्षाओं के इंटरव्यू की तैयारी करने वालों के परिचितजन इंटरव्यू से पहले 'आत्मविश्वास' के परम महत्व पर भाषण पिला-पिलाकर उन्हें नर्वस कर देते हैं। कुछ ऐसी स्थिति पैदा कर देते हैं कि जैसे-जैसे इंटरव्यू एक-एक दिन सरक कर पास आता है, वैसे-वैसे उन्हें लगने लगता है कि शायद मुझ में बाकी सब गुण हैं,  केवल एक आत्मविश्वास की कमी है।

दूसरों पर विश्वास : आप अपने इर्द-गिर्द के लोगों पर एक नज़र डालकर देखिए। आप देखेंगे कि आप कुछ लोगों पर विश्वास करते हैं, लेकिन कुछ लोगों पर अधिक विश्वास नहीं करते। या यूं कहिए कि हरेक पर एक जैसा विश्वास नहीं करते। ऐसा क्यों है? जिस पर विश्वास करते हैं उस पर विश्वास क्यों करते हैं और जिस पर विश्वास नहीं करते उस पर क्यों नहीं करते?

आइए देखते हैं-
मान लीजिए आपके दो मित्र सोमेश और रमेश आपसे दस-दस हज़ार रुपए का कर्ज़ मांगते हैं। आप सोमेश को कर्ज़ दे देते हैं, लेकिन रमेश को नहीं देते। जब मैं आपसे पूछता हूं कि आपने ऐसा क्यों किया तो आप कहते हैं- 'मुझे रमेश पर विश्वास नहीं। पिछले छ: महीने में दोनों ने मुझ से चार बार दस-दस हज़ार रुपए लिए। सोमेश ने चारों बार मेरे बिना मांगे वापस दे दिए, लेकिन रमेश ने एक बार दिए ही नहीं और एक बार बहुत बार मांगने पर दिए। इसलिए रमेश पर से मेरा विश्वास उठ गया है।' तो बताइए आपने इस स्थिति में क्या देखा? हमें उस पर विश्वास होता है जो वादा करके उसे पूरा करे।

अपने ऊपर विश्वास : ठीक यही स्थिति आत्मविश्वास की है। जो व्यक्ति अपने साथ किए वादों को पूरा नहीं करता उसका अपने ऊपर से विश्वास उठ जाता है। मान लीजिए रोहित जब भी कोई फैसला करता है तो उस पर टिका रहता है, लेकिन मोहित फैसले तो करता है लेकिन अक्सर उनका पालन नहीं करता।

मान लीजिए कि रोहित और मोहित आपस में निर्णय लेते हैं कि अब से रोज़ सुबह पांच बजे उठकर दो किलोमीटर की दौड़ पर जाएंगे। अगले दिन रोहित तो अपने फैसले के अनुसार उठ जाता है, लेकिन मोहित का मन उठने को नहीं करता। वह रोहित से कहता है- 'आज तू हो आ मैं कल से चलूंगा।'

अब बताइए रमेश के कर्जा वापस करने का वादा करके कर्जा न लौटाने में और मोहित के सुबह उठने का फैसला करके न उठने में कोई मौलिक अंतर है क्या? अंतर केवल इतना है कि रमेश ने वादा किसी दूसरे से किया लेकिन मोहित ने वादा अपने-आप से किया। जिस प्रकार अगली बार जब रमेश आप से कर्ज मांगेगा और आपका मन कहेगा, “अरे छोड़ झूठे, तू तो वादा कर के मुकर जाता है, ठीक उसी प्रकार जब मोहित अपने मन में सुबह उठने का फैसला करेगा तो उस के अंदर से यह आवाज़ आएगी, 'अरे छोड़ झूठे, तू तो ऐसे ही बोलता रहता है। फिर करता नहीं।'

बार-बार वही कहानी :  अब मान लीजिए पिछले दो साल में सोमेश और रमेश ने आपसे दो हज़ार बार कर्ज़ मांगा। सोमेश ने हर बार कर्ज़ वापस किया, लेकिन रमेश ने कुल मिलाकर सौ बार वापस किया। बाकी बार वापस नहीं किया, तो सोचिए आपका दोनों के बारे में कैसा विचार बनेगा। अब इसी बात को रोहित और मोहित पर लेते चलिए। पिछले दो साल में दोनों ने दो हज़ार छोटे-बड़े फैसले किए।

रोहित ने अपने हर फैसले पर अमल किया, लेकिन मोहित ने केवल सौ फैसलों पर ही अमल किया। तो बताइए अगली बार फैसला करते समय दोनों में से किस का मन जानेगा कि वह अपने फैसले का पालन करेगा और किसके मन में अपने ही ऊपर संदेह पैदा होगा?

आपने क्या सीखा? :  बताइए आपने मेरी इन बातों से क्या सीखा? क्या आत्मविश्वास कोई ऐसी शै है जो आप एक वर्कशॉप अटैंड करके सीख लेंगे, या एक ऐसी तै-दर-तै चट्टान है जो पिछले कई बरसों से आप के मन में बन रही है।

आप ने तै-दर-तै चट्टानों के बारे में भूगोल की किताबों में पढ़ा होगा। ये चट्टानें कई सौ साल में धीरे-धीरे तहें जमने से बनती हैं और पक्की होती जाती हैं। ठीक इसी प्रकार हर बार जब आप एक फैसला करके उस पर अमल करते हैं तो समझ लीजिए कि आपके आत्मविश्वास की एक परत और जम गई और उसने आपके आत्मविश्वास को और पक्का कर दिया। और हर बार जब आप फैसला करके उस पर नहीं टिकते हो तो एक परत घिसकर आत्मविश्वास को कमजोर कर देती है।

मान लीजिए कल आपकी परीक्षा है। आप मन में पक्का इरादा करके बैठते हैं कि अब से लेकर देर रात तक पूरे एकाग्र मन से पढ़ूंगा और मन को नहीं भटकने दूंगा, तभी पता चलता है कि आप की मनपसंद फिल्म टीवी पर आने वाली है। मन विचलित होने लगता है। यदि आप अपने फैसले पर टिक जाते हैं और दरवाजा बंद करके पूरे ध्यान से पढ़ते रहते हैं तो समझ लीजिए कि आपके आत्मविश्वास में एक मोटी परत जाम गई। यदि आप फिसल जाते हैं और अपने मन को फुसला लेते हैं कि 'ऐसा भी क्या है? आखिर कौनसी फाइनल परीक्षा है?'

तो नुकसान केवल परीक्षा का नहीं होगा, आपके आत्मविश्वास को भी एक गहरी चोट पंहुचेगी। अगले दिन आप को सोच-सोचकर गंदा लगेगा। आत्मग्लानि होगी कि मैंने ऐसा क्यों किया? इसलिए, आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण की नहीं बल्कि अपने फैसलों पर टिके रहने की आदत बनाने की आवश्यकता है। इस पर विचार करिए और अपने मन की मुझे बताइए।

लेखक के बारे में : वेबदुनिया के युवा पाठकों के मार्गदर्शन के लिए तमिलनाडु पुलिस के रिटायर्ड डीजीपी सतीश डोगरा अब प्रति बुधवार को 'बुध-विचार' नाम से कॉलम लिखेंगे। डोगरा का तीन दशक से ज्यादा का प्रशासनिक अनुभव है। वे सेवा के दौरान कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। ऐसे में उनका अनुभव युवा पाठकों के लिए नितांत उपयोगी सिद्ध होगा। यदि आप किसी खास विषय पर मार्गदर्शन चाहते हैं तो भी वेबदुनिया को लिख सकते हैं।

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