देश हो या विदेश, ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें विद्यार्जन के दौर में कमजोर माने गए बच्चे या वे बच्चे, जिन्हें औपचारिक शिक्षा मिली ही नहीं, बड़े होने पर अपने कार्यक्षेत्र के दिग्गज बने। विज्ञान के क्षेत्र के शिखर पुरुष न्यूटन और आइंस्टीन कमजोर छात्रों की श्रेणी में आते थे।
थॉमस अल्वा एडिसन के शिक्षक ने तो उनके लिए यहां तक कह दिया था कि यह लड़का कुछ सीख ही नहीं सकता। हवाई जहाज का आविष्कार करने वाले राइट बंधुओं ने हाईस्कूल तक की औपचारिक शिक्षा भी पूरी नहीं की थी। श्रीनिवास रामानुजम गणित के जादूगर थे लेकिन अन्य सभी विषयों में वे फेल होते थे।
बिल गेट्स ने कॉलेज की शिक्षा पूरी नहीं की और धीरूभाई अंबानी ने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। एआर रहमान ने स्कूली पढ़ाई अधूरी छोड़ी, वहीं लता मंगेशकर और आशा भोंसले ने औपचारिक शिक्षा पाई ही नहीं। सचिन तेंडुलकर भी तो स्कूल से आगे बढ़ ही नहीं पाए, यह बात दूसरी है कि उनके पास डॉक्टरेट की मानद उपाधि है।
इन लोगों और ऐसे ही कई और लोगों के उदाहरण साबित करते हैं कि करियर बनाने, नाम कमाने, अपने हुनर से दुनिया संसार को समृद्ध करने और अपना जीवन सार्थक करने के लिए न रट्टू तोता बनना अनिवार्य है, न अच्छा पर्सेंटेज बनाना। जरूरत है अपने हुनर, अपने कौशल को मांजने की, उसे संवारने की ज़रूरत है। ऐसा नहीं है कि देश में हुनर या हुनरमंद युवाओं की कमी है।
कमी है तो इस हुनर को तराशने वाली शिक्षा प्रणाली की। कमी है भावी पीढ़ी की ऊर्जा को सही दिशा देने की। कमी है नौनिहालों की कल्पनाओं के पंख को विस्तार और मजबूती देने की पहल की। क्या हम उम्मीद करें कि आने वाले वर्षों में हमारे देश की शिक्षा प्रणाली इन बिंदुओं पर केंद्रित हो एक नया भारत रचने के महायज्ञ में अपनी आहुति देगी?