मनाना है रूप चौदस तो मनाओ धूप चौदस

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महाकवि कालिदास दिखने में सुंदर नहीं थे। एक बार राजा विक्रमादित्य ने उनसे पूछा- महाकवि, क्या कारण है कि आपका शरीर आपकी बुद्धि के अनुरूप नहीं है। इस पर कालिदास ने एक सेवक से सोने और मिट्टी के दो घड़ों में जल मँगवाया और राजा से पूछा- महाराज, आप कौनसे घड़े का जल पीना चाहेंगे?

महाराज- यह भी कोई पूछने की बात है। मिट्टी के घड़े का जल शीतल और सुस्वादु होने के साथ ही मन को तृप्त करता है। वही पिएँगे। कालिदास बोले- महाराज, आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं ही दे दिया। जिस प्रकार जल के गुण पात्र की सुंदरता पर निर्भर नहीं करते, उसी प्रकार बुद्धि का शारीरिक स्वरूप से कोई लेना-देना नहीं है।

साथियो, सही कहा कालिदास ने। वैसे भी सुंदरता और बुद्धिमत्ता का साथ मुश्किल से ही होता है, क्योंकि अक्सर रूप अपने साथ अहंकार को भी ले आता है। और जिस व्यक्ति में इन दोनों की जोड़ी बन जाती है, वहाँ बुद्धि के रहने की गुंजाइश कम हो जाती है। वो वहाँ से किनारा कर लेती है। जिन लोगों के साथ ऐसा होता है वे यह भूल जाते हैं कि रूप एक दिन शाम की धूप की तरह ढल जाता है।
यदि आप उच्च पद पर बैठे हैं, गुणवान या धनवान हैं, लेकिन रूपवान नहीं हैं और इस बात का आपको मलाल है तो आज ही अपने अंदर से इस कॉम्प्लेक्स को निकाल दें। क्योंकि यदि आप काम के हैं तो कोई आपकी चाम (चमड़ी) नहीं देखेगा, न ही देखता है।


तब वे लोग भी उनका साथ छोड़ जाते हैं जो उनके रूप की वजह से उनसे जुड़े होते हैं। इसलिए अपने रूप पर इतराने की बजाय अपने व्यवहार को निखारें, क्योंकि रूपवान होने के बावजूद यदि आप व्यवहार कुशल नहीं होंगे तो आप किसी का दिल नहीं जीत पाएँगे। फिर ऐसी सुंदरता किस काम की जिसकी उपस्थिति लोगों को खटके।

यदि आपके साथ भी ऐसा कुछ हो रहा है तो सबसे पहले अपने अंदर बैठे घमंड को बाहर का रास्ता दिखाएँ। अपने अंतर की सफाई करें, पॉलिश करें, रंग-रोगन करें। यानी बाह्य सौंदर्य से ज्यादा आंतरिक सौंदर्य पर ध्यान दें। जब अंतर को चमकाओगे तो बाहर कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, वह तो ऐसे ही चमकने लगेगा।

यह काम ही ऐसा है कि अंदर किया जाता है और बाहर नजर आता है। यही कारण है कि आंतरिक सौंदर्य से युक्त व्यक्ति भले ही सुंदर न हो, फिर भी उसके चेहरे का तेज लोगों को आकर्षित करता है। इसलिए ऐसे ब्यूटीपार्लर भी जाओ जहाँ व्यवहार, आचरण, संस्कार के माध्यम से आंतरिक सौंदर्य को निखारा जाता है।

दूसरी ओर, हम यह नहीं कहते कि सुंदर होना या सुंदर दिखने का प्रयास करना गलत है। सुंदर व्यक्ति या वस्तु किसे आकर्षिक नहीं करती, किसे पसंद नहीं आती। अगर बात व्यावसायिक क्षेत्र की करें तो सेल्स और मार्केटिंग में तो उस व्यक्ति को आसानी से एंट्री मिल जाती है जो बन-ठनकर रहता है। लेकिन बात यह है कि सफल एंट्री के बाद सफल एक्जिट के लिए जरूरी है कि आपके व्यक्तित्व में अन्य गुणों का समावेश भी हो। यानी आप कार्यकुशल हों, अपने काम में दक्ष हों। तब आप किसी भी काम को पूरी सफलता के साथ अंजाम तक पहुँचा सकेंगे।

वैसे यदि आप उच्च पद पर बैठे हैं, गुणवान या धनवान हैं, लेकिन रूपवान नहीं हैं और इस बात का आपको मलाल है तो आज ही अपने अंदर से इस कॉम्प्लेक्स को निकाल दें। क्योंकि यदि आप काम के हैं तो कोई आपकी चाम (चमड़ी) नहीं देखेगा, न ही देखता है। कहते भी हैं कि अंटी में है रुपैया तो कौन देखता है रूप भैया। इसलिए अपना काम और व्यवहार बनाकर रखें, बाकी सब ठीक होता चला जाएगा।

और अंत में। चलो अब हम चले धूप चौदस मनाने। हैरान न हों, हम धूप की ही बात कर रहे हैं। यानी हम चले अपने काम पर जिसे अंजाम देने के लिए हम न धूप देखेंगे न छाँव। यह धूप ही तो है जो हमारे रूप को निखारती है। अरे भाई जब आप अपनी जिम्मेदारी बखूबी पूरी कर देते हैं तो सबको प्रिय लगने लगते हैं, आकर्षक लगने लगते हैं। इसलिए धूप चौदस मनाएँगे तो रूप चौदस अपने आप मन जाएगी।