गेमिंग में बनाएँ भविष्य

- दीपिका
ND
गौतम हमेशा से ही पढ़ाई में कमजोर रहा। ऐसा नहीं था कि उसके दिमाग की तेजी में कमी थी, चीजों को देखकर समझने, सीखने और उन पर प्रतिक्रिया करने में ये आम बच्चों से कहीं अधिक तेज था, पर उसका रुझान हमेशा से ही कंप्यूटर और वीडियो गेम्स की तरफ रहा। शुरुआत में तो सिर्फ उसे डाँट ही सुननी पड़ती थी।

पर जब उसकी माँ को पता चला कि 80 अरब डॉलर की एनीमेशन इंडस्ट्री में इस क्षेत्र में अच्छा करियर भी बनाया जा सकता है तो गौतम को प्रोत्साहन भी मिलने लगा। गौतम जैसे न जाने कितने युवा है जो न सिर्फ गेम्स के शौकीन हैं बल्कि इस इंडस्ट्री में अपनी काबिलियत के दम पर एक अच्छे भविष्य का सपना भी देख सकते हैं।

हाल ही के कुछ वर्षों में एक ये बदलाव भी देखने को मिला है कि घरों के आस- पास के पार्कों में खेलने आने वाले बच्चों की तदाद कम हो गई है। तकनीकीकरण और कंप्यूटराइजेशन के इस युग में बच्चे अपना कंप्यूटर और एक्स बॉक्स के साथ समय बिताना ज्यादा पसंद करते हैं। यही है भारत में गेमिंग इंडस्ट्री का आगमन।

भारत में गेमिंग इंडस्ट्री
भारत में कंप्यूटर गेम्स, ऑनलाइन गेम्स और मोबाइल गेम्स का बाजार आज काफी तेजी से उठ रहा है। अगर मूल गेमिंग इंडस्ट्री के आँकड़े उठाए जाएँ तो भारत में 4 से 6 बड़ी गेम्स निर्मात कंपनियों है और लगभग 100 मध्यम वर्ग की निर्मात कंपनियाँ, 'धुव्र इंटरएक्टिव', 'इंडिया गेम्स', 'पैराडॉक्स स्टूडियो', 'स्कॉफट्स व 'गेमक्षेत्र' इनमें से कुछ प्रमुख है।

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर की सबसे बड़ी गेमिंग कंपनी इलेक्ट्रॉनिक आर्ट्स ने भी अपनी मोबाइल गेमिंग इकाई हैदराबाद में खोली है। इन आँकड़ों के अनुसार भारतीय गेमिंग इंडस्ट्री फिलहाल करीब 450 करोड़ रुपए की लागत रखती है और वर्ष 2012 तक ये 1400 करोड़ रुपए का आँकड़ा भी छू लेगी।

वेबदुनिया पर पढ़ें