मल्टीमीडिया का शाब्दिक अर्थ है - कई माध्यम से उत्पादों की विशेषताओं और विभिन्नताओं का समावेश कर लोगों के सामने पेश करना। इसके दो प्रकार हैं- प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। हर माध्यम जो प्रिंट (मुद्रित) होता है पहले डिजाइन किया जाता है।
स्थानीय स्तर पर एडवरटाइजिंग एजेंसीज, प्रकाशन केन्द्र, डिजाइनिंग सेंटर आदि पर हजारों की संख्या में ग्राफिक डिजाइनर्स कार्यरत हैं और आने वाले समय में प्रिंट मीडिया के चलन में उत्तरोत्तर वृद्धि को देखते हुए सैकड़ों डिजाइनर्स की माँग अपेक्षित है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एनिमेशन (2-डी, 3-डी), वेब डेवलपमेंट, साउंड एडिटिंग, वीडियो एडिटिंग (प्री व पोस्ट प्रोडक्शन) ऑथरिंग आदि महत्वपूर्ण हैं। इन सभी क्षेत्रों में कुशल प्रोफेशनल्स की माँग बढ़ रही है।
विजिटिंग कार्ड से लेकर कंपनी प्रोफाइल, पत्रिकाएँ, प्रिंटिंग सामग्री, प्रेजेंटेशन, इलेक्ट्रॉनिक केटलॉग, कार्टून्स, वीडियो, कम्प्यूटर गेम्स, विभिन्ना ऑडियो/वीडियो चैनलों पर विज्ञापन, मल्टीमीडिया से युक्त फिल्में इत्यादि इसी क्षेत्र की देन हैं। इस क्षेत्र का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि और विषयों की तरह इसमें किताबी ज्ञान या गहरे अध्ययन की भी जरूरत नहीं है और न ही उम्र या शिक्षा का कोई बंधन है।
तेजी से विकसित हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था और मूलभूत संरचनाओं में सुधार और इसके फलस्वरूप विदेशी मुद्राकोष का बढ़ना, सेंसेक्स में अनपेक्षित उछाल, जीडीपी दर में वृद्धि, मौलिक सुविधाओं में सुधार इत्यादि और मुख्यतः भारतीयों की बौद्धिक क्षमता की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में निवेश करने पर मजबूर कर दिया है। आज से कुछ वर्ष पूर्व ब्रेन ड्रेन की समस्या देखने में आती थी, जिसमें भारतीय प्रतिभाओं का पलायन विदेशों में होता था।
परंतु आज उसी का परिवर्तित स्वरूप आउटसोर्सिंग (विदेशी कंपनियों का भारतीय व्यक्तियों/भारतीय कंपनियों को काम देना) विदेशों प्रमुखतः अमेरिकी व योरपीय समुदाय के विकसित देशों के लिए एक समस्या और हमारे लिए एक वरदान साबित हुआ है। विदेशी कंपनियों से मिलने वाले प्रोजेक्ट में प्रमुखतः सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट्स, मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट, रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स आदि हैं।
यहाँ एक महत्वपूर्ण बिंदू उल्लेखनीय है कि भारत में किसी भी तरह के मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट की लागत अगर एक लाख रु. आती है तब उसी प्रोजेक्ट की लागत किसी भी अन्य विकसित देश में लगभग 25 लाख रु. आती है। इस तरह से भारत में मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट दुनियाभर में काफी सस्ते पड़ते हैं।
इस कारण आगे आने वाले दिनों में हॉलीवुड की एनिमेशन फिल्मों से लेकर अन्य बड़े प्रोजेक्ट्स के भारत में आने की पूर्ण संभावना है। यही नहीं भारतीय मल्टीमीडिया प्रशिक्षण संस्थानों ने भी अपने स्तर को सुधारा है तथा अब विश्वस्तरीय मल्टीमीडिया प्रशिक्षण भारत में भी उपलब्ध है।
WD
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मल्टीमीडिया प्रशिक्षण संस्थान के चयन के पूर्व निम्न बिंदुओं पर ध्यान जरूर दें:
क्या संस्थान प्रमुख स्वयं कम्प्यूटर साइंस या इस विधा में उच्च प्रशिक्षित है? और क्या वह महज एक व्यवसायी तो नहीं।
क्या संस्थान आधुनिक संसाधनों से लैस है और क्या वह अपने विद्यार्थियों को अतिरिक्त समय उपलब्ध करवाता है? क्योंकि मल्टीमीडिया के क्षेत्र में अभ्यास की काफी जरूरत होती है।
क्या संस्थान आपको रोजगार उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी लेता है?
क्या संस्थान में मल्टीमीडिया प्रशिक्षण के अलावा व्यक्तित्व विकास पर भी ध्यान दिया जाता है?
क्या संस्थान में माहौल व प्रशिक्षण सुविधाएँ अंतरराष्ट्रीय स्तर अनुरूप हैं ?