करि‍यर है पहली प्राथमि‍कता

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कुछ समय पहले तक ग्रेजुएशन पूरा होते ही माँ-बाप को बेटी के हाथ पीले करने की चिंता सताने लगती थीं। इसके लिए लड़कियाँ भी मानसिक रूप से तैयार होती थी। लेकिन आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। साथ ही लड़कियों की शादी की औसत उम्र भी अब 21 से बढ़कर 25 से 30 हो गई है। वजह भी वाजिब है। शादी के पहले करियर की ऊँची उड़ान भरने की ख्वाहिश। इसके चलते लड़कियाँ कह रही हैं शादी अभी नहीं। उच्च शिक्षा के साथ इकोनॉमिकली इंडिपेंडेंस और ससुराल में इज्जत पाने की चाहत ने इस सोच को बढ़ावा दिया है।

आज के दौर में लड़के अच्छी पढ़ाई और वर्किंग वाइफ पाने की तमन्ना बढ़ गई है, इसलिए लड़कियाँ अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं। प्राइवेट कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर 29 वर्षीय पद्मा सोनकर ने भी इसी खातिर शादी को प्राथमिकता नहीं दी। एमफिल करने के बाद अपने पैरों पर खड़ी होने की कोशिश असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हुई। उनका मानना है कि शादी के बाद करियर में सक्सेस पाने की उम्मीद कम ही होती है। ऐसे में शादी के पहले खुद को एक मुकाम तक पहुँचाना जरूरी था।

प्राइवेट स्कूल की 25 वर्षीय टीचर सुषमा गोस्वामी कहती हैं कि पहले लड़कियों की मानसिकता यही थी कि शादी करना और घर की जिम्मेदारी संभालना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। शादी के लिए पढ़ाई भी उतनी ही जरूरी है, जितनी अन्य खूबियाँ। अच्छी पढ़ाई के साथ जॉब करना मेरी प्राथमिकता में शुमार था। शादी के बाद ससुरालवालों पर निर्भर करता है कि मैं नौकरी करूँ या नहीं।

लेवल बढ़ता है
आमतौर पर देखा जाता है कि लड़कियाँ अच्छे पद व एजुकेटेड लड़के को ही पति के रूप में वरण करना चाहती हैं। इसके लिए उन्हें खुद को भी उस लेवल तक ले जाना होगा। प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनी में मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव के रूप में कार्यरत 26 वर्षीय नंदिता घोष कहती हैं कि मैंने अपने वुड बी के तौर पर हाईली एजुकेटेड व ए ग्रेड ऑफिसर की कल्पना की है। इसके लिए मैंने पहले खुद को सैटल करना जरूरी समझा।

मैंने बीबीए किया, फिर कई जॉब स्किप करने के बाद इस मुकाम तक पहुँची हूँ। अब मुझे भरोसा है कि जैसे हबी की कल्पना मैंने की है, वैसा मुझे जरूर मिलेगा। प्राइवेट कंपनी में असिस्टेंट अकाउंटेंट 26 वर्षीय सोनाली विश्वकर्मा कहती हैं कि अब लड़कियों का सपना शादी करके घर बसाना नहीं रह गया है। मेरी सोच थी कि जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती,तब तक शादी के बारे नहीं सोचूँगी। इसी चाहत के कारण मैं इस मुकाम तक पहुँची।

पॉजिटिव इफेक्ट
पढ़ी-लिखी व वर्किंग बहू पाने की ख्वाहिश बढ़ी है।

सोसाइटी मेनटेन करने के लिए वेल एजुकेटेड होना जरूरी है।

महँगाई के दौर में पति-पत्नी दोनों का वर्किंग होना जरूरी हो गया है।

पढ़ी-लिखी और समझदार होने से समाज में महिलाओं की इज्जत बढ़ रही है।

बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए माँ का पढ़ा-लिखा होना बेहद जरूरी है, क्योंकि लड़की पढ़ी-लिखी हो तो दो परिवारों को शिक्षित करती है।

आत्मनिर्भर होने से विषम परिस्थितियों को भी झेल सकती हैं।

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