आज का दौर कॉर्पोरेट कल्चर और मार्केटिंग का युग है, ऐसे में कृष्ण जन्माष्टमी पर यह जानना सुखद होगा कि कॉर्पोरेट मैनेजमेंट किस-किस स्तर पर गीता से प्रेरित है। कहाँ-कहाँ प्रबंधन न मालूम होते हुए भी गीता के उपदेशों को अपने फंडे के रूप में इस्तेमाल कर लेता है। गीता आज भी प्रासंगिक है और शायद इसलिए क्योंकि वह शाश्वत है।
गीता के अनुसार यदि हम शुरुआत से भी लें तो गीता कहती है साधकों की तीन कोटि होती है। इनमें हैं- ज्ञानी, योगी और भक्त । यह इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्रत्येक जीव की प्रकृति अलग-अलग होती है। कोई तर्क से अध्यात्म को मानना चाहता है, तो कोई भजन से। भक्ति का अर्थ केवल भजन नहीं, वरन पूर्ण विश्वास हो जाता है जो सेवक में होना चाहिए।
मैनेजमेंट कहता है यदि कॉर्पोरेट मैनेजमेंट को देखें तो किसी आदमी के इंटरव्यू में प्रवेश करते ही एचआर डिपार्टमेंट की अनुभवी दृष्टि यह भाँप जाती है कि यह व्यक्ति किस तरह का है। यह व्यक्ति हमारी कंपनी के किस काम आ सकता है। गीता तीन कोटि के साधक कहती है तो कॉर्पोरेट मैनेजमेंट भी तीन तरह के कर्मचारी बताता है- पहला ईमानदार, दूसरा मेहनतकश और तीसरा बुद्धिमान।
पाँच रस और पाँच गुण गीता कहती है- भक्त और भगवान में पाँच रसों में से किसी एक में संबंध रहता है। ये पाँच रस हैं- शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य तथा माधुर्य। यह प्रत्येक भक्त में अलग-अलग मात्रा में निहित होता है। प्रबंधन भी अपने प्रत्येक कर्मचारी में यही देखता है। वह यह टटोल लेता है कि कर्मचारी में कितना दास्य भाव है, कहाँ उससे सखा या मित्र बनकर बात करना है, कहाँ उस पर वात्सल्य वर्षा करना है और कहाँ उससे मीठा बोलकर प्रेरित करना है। जो प्रबंधन ये भाव रखता है, वहाँ प्रबंधन और कर्मचारी में कभी विरोधाभासी स्थितियाँ नहीं आती हैं।
पहली सीख प्रबंधन का पहला सबक यह है कि बुद्धिमत्ता से कम से कम संसाधनों का भी ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाए। महाभारत में दुर्योधन मूर्खता करके कृष्ण की पूरी सेना को अपनी ओर मिला लेता है और सोचता है कि कृष्ण बिना सेना के अकेले क्या करेंगे? जबकि अर्जुन केवल कृष्ण को चुनता है, क्योंकि वह जानता है कि कृष्ण के बिना सेना कुछ नहीं है। इसी तरह से प्रबंधन में भी सफल मैनेजर उसी को माना जाता है जो गुणी लोगों का चयन कर कम से कम संसाधनों में अधिक से अधिक और प्रभावी आउटपुट (प्रतिफल) दे सके।
'तू मुझमें ध्यान लगा' अर्जुन जब मानसिक रूप से उद्विग्न होता है तो सारथी बने कृष्ण उसे कहते हैं कि तू मुझमें ध्यान लगा। मुझमें विश्वास कर, मैं जैसा कहता हूँ वह कर तेरी नैया पार लग जाएगी। फिर भी अर्जुन विचलित होता रहता है। प्रबंधन में भी आमतौर पर यह कहा जाता रहा है- बॉस इज ऑलवेज राइट। यह इसलिए कहा जाता है क्योंकि जो प्रबंधन का मुखिया है, उसका नजरिया ज्यादा व्यापक होता है और वह चीजों को ऊपर से देखता है। जबकि उसका मातहत कर्मचारी अपने आसपास की चीजों को ही देख पाता है।
गीता में लिखा है- मम वांश जीव लोकेशु अर्थात् प्रत्येक जीव में मेरा अंश है। प्रबंधन अपने हर उत्पाद पर अपना ठप्पा लगाता है और कर्मचारी उसकी नीतियों का अनुसरण करता है। इसी तरह कंपनियाँ प्रबंधन करते हुए बाह्य और आंतरिक दोनों तरह की व्यवस्थाएँ देखती हैं। यदि अनुकूल नहीं हुई तो पहले कंपनी के भीतरी ढाँचे को सुधारा जाता है और फिर बाह्य को, और गीता भी यही कहती है कि पहले खुद को तैयार करें फिर दूसरी ओर देखें।
गीता कहती है- जो नित्य निरंतर भगवत्स्मरण करता है, वह सर्वोत्तम ज्ञानी है और भक्त शिरोमणि है। प्रबंधन कहता है कि जो कर्मचारी हमेशा अपने कर्म और कंपनी के लक्ष्य के बारे में सोचता है, वह टॉप एक्जीक्यूटिव बनने के लायक है।
आदर्श प्रबंधन * कृष्णरूपी सीईओ हो * धर्मराज की भाँति विधि अधिकारी हो * अर्जुन के समान फाइनेंस व्यवस्था का ज्ञाता हो * भीम के जैसी वर्कफोर्स हो * नकुल-सहदेव के माफिक मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव हों। प्रस्तुति: मनोज दुबे, गजेन्द्र शर्मा