3. जनमत संग्रह की पेशकश: एक और आत्मघाती कदम
संयुक्त राष्ट्र में जाते ही भारत ने जनमत संग्रह की पेशकश कर दी। हालाँकि भारत का इरादा कश्मीरियों की इच्छा का सम्मान करना था, लेकिन यह एक रणनीतिक भूल साबित हुई। पाकिस्तान ने इस पेशकश का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह दिखाने के लिए किया कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और वहां के लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार है।
पाकिस्तान ने कभी भी जनमत संग्रह की शर्तों को पूरा नहीं किया और POK से अपनी सेना नहीं हटाई, जो जनमत संग्रह के लिए पहली शर्त थी। इस पेशकश ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर मुद्दे को जीवित रखने का एक बहाना दे दिया, और आज भी यह एक ऐसा हथियार है जिसका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करता है।
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4. नेहरू-लियाकत समझौते की सीमाएं: विश्वासघात की नींव
1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। हालाँकि यह समझौता मानवीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, लेकिन यह POK की स्थिति को स्पष्ट करने में विफल रहा। पाकिस्तान ने इस समझौते का उपयोग POK में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए किया, जबकि भारत ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।