युवाओं के करियर में पेरेंट्‍स की भूमिका

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आज े युवा अपने निर्णय खुद लेने में विश्वास करते हैं। अक्सर वे अपने निर्णयों में माता-पिता को शामिल नहीं करते। घूमने के लिए बाहर जाने से लेकर बात चाहे करियर की क्यों न हो।

अक्सर यह देखा जाता है कि किसी छात्र ने अगर 10वीं पास की है। उसे 11वीं में किसी विषय का चयन करना है। वह अपने माता-पिता या बड़े भाई या बहन से सलाह लेना उचित नहीं समझता, बल्कि वह बाहरी माहौल से प्रभावित होकर अपने निर्णय खुद ही लेता है।

अगर किसी विषय में उसकी रुचि हो भी जिसमें वह करियर बनाना चा‍हता हो तो उस विषय में क्या करियर संभावनाएं हैं, इसकी तलाश उसे करनी चाहिए। साथ ही अपने माता-पिता या बड़े भाई-बहन से भी उस पर सलाह लेना जरूरी है। सलाह में फायदे हैं, इसलिए बाद में अपने निर्णय पर पछताना से अच्छा है कि पहले ही अपने घर के वरिष्ठ लोगों से सलाह-मशविरा कर लें।

कॉम्पिटिशन से युवाओं पर भी अपेक्षाओं का बोझ बढ़ा है। बात करियर बनाने की क्यों न हो। आज भले ही संचार माध्यमों में वृद्धि हो गई। इंटरनेट से कोई भी जानकारी का आसानी से जुटाई जा सकती है। युवाओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि अनुभव सबसे बड़ी चीज है। अनुभव कोई बाजार में मिलने वाली वस्तु नहीं है।

माता-पिता या परिजनों से ही हमें जीवन के सही मायने समझ में आएंगे। वे जो भी रास्ता दिखाएंगे वह सही होगा। कभी-कभी माता-पिता की अपेक्षाएं भी बच्चों से बढ़ जाती हैं। इन अपेक्षाओं के बोझ तले युवा दब जाते हैं। इससे उनकी जिंदगी निराशा की ओर मुड़ जाती है।

माता-पिता या परिजन भी यह ध्यान रखें कि वे अपने ‍निर्णय युवाओं पर थोप कर उन पर अनावश्यक दबाव न बनाएं। अपने बच्चों की रुचि पहचानकर ही उन्हें भविष्य के लिए कोई सलाह दें और सही करियर चुनने में उनका मार्गदर्शन करें। सही मार्गदर्शन, सही विषय को चुनने के बाद अगर युवा उस पर मेहनत और लगन से पढ़ाई करेंगे तो सफलता मिलेगी।

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