देश में पॉपुलेशन स्टडीज पर आधारित शिक्षा की व्यवस्था ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन दोनों स्तरों पर उपलब्ध है। एक दर्जन से यूनीवर्सिटी में इस प्रकार के कोर्स फिलहाल संचालित किए जा रहे हैं। इनमें बीए और एमए पॉपुलेशन स्टडी के अतिरिक्त पोस्ट एमए डिप्लोमा इन तयूमन इकोलॉजीया पॉपुलेशन इकोलॉजी डिप्लोमा इन पॉपुलेशन स्टडीज, डेमोग्राफिक स्टडीज में ट्रेनिंग इत्यादि का खासतौर से उल्लेख किया जा सकता है।
इस प्रकार की ट्रेनिंग के बाद पॉपुलेशन के विभिन्न धरकों की जानकारियां जुटाने पर आधारित सर्वेक्षण कार्यक्रमों रिसर्च वर्क तथा यूनीवर्सिटी कॉलेजों में इस विषय के अध्ययन से जुड़े कामों में रोजगार स्वरोजगार के अवसर मिल सकते हैं। रोजगार के लिए सरकारी विभागों, निजी क्षेत्र की कंपनियों तथा एनजीओ से संपर्क किया जा सकता है। यही नहीं विदेशी संस्थाओं और यूएन पॉपुलेशन फंड सरीखी बड़ी एजेंसियों से भी इस प्रकार के भविष्य निर्माण के क्रम में जुड़ने का मौका मिल सकता है।
ऐसे युवा जिनकी लोगों के मनोवैज्ञानिक अध्ययन, उनके व्यवहार, सोच की विभिन्नताओं, परिवर्तित कार्यशैली आदि में दिलचस्पी होती है वे चाहें तो इसी प्रकार के अध्ययन को अपने करियर का आधार बना सकते हैं। पॉपुलेशन स्टडी अथवा जनसांख्यिकी अध्ययन ऐसा ही एक अनूठा विषय है।
इस क्रम में युवाओं को महज आबादी की वृद्धि अथवा विभिन्न शख्की व ग्रामीण क्षेत्रों में इनके सतत विकास को जानने का मौका ही नहीं मिलता है बल्कि मानवीय पहलुओं को भी मसझने के लिए उपयुक्त तर्कों तक जाने का अवसर भी हासिल होता है। इस विषय की इस विशेषता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि इसके अंतगर्त मानवीय मनोविज्ञान और सांख्यिकी विश्लेषण के भरपूर अनुभवों से भी काफी कुछ सीखने व समझने का मौका मिल जाता है।
इस विषय के अंतर्गत अध्ययन की इतनी अधिक संभावनाएँ निहित हैं कि अध्ययनकर्ताओं के लिए शीघ्र यह रोमांच एवं आकर्षण का काम बन जाता है जिसमें अजनवी लोगों से मिलना-जुलना उनकी जीवनशैली को नजदीक से देखना, एक समूह की आबादी के बीच परस्पर संबंधों एवं समानताओं का अध्ययन करना तथा आबादी के संपूर्ण पैटर्न पर विंस्गम दृष्टि डालते हुए निष्कर्ष निकालना आदि मुख्य है।
जैसा कि पहले ही इंगित किया जा चुका है कि यह विषय और इससे संबंधित समस्त कामकाज एकेडेमिक प्रकृति के हैं जिनमें शोध एवं अध्ययन पर ज्यादा फोकस होता है। इतना ही नहीं तर्कसंगत ढंग से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करना, जिस्टेमेटिक तरीके से अध्ययन करने की कार्यशैली अपनाना और निष्पक्ष तरीके से अंतिम टिप्पणियां करने की क्षमता ही किसी युवा को इस क्षेत्र में कामयाब बना सकती है।
भाषा पर अधिकार और सही परिप्रेक्ष्य में लेखन के साथ रिपोर्ट करने की कला मानो सोने पर सुहागा का काम करती है इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने हेतु। अब सवाल यह उठता है कि अखिकार इस प्रकार के अध्ययनों एवं निष्कर्षों से किस प्रकार का फायदा होता है और कौन लोग इससे सर्वाधिक लाभांवित होते हैं, इस बात का सीमा एवं स्पष्ट जवाब यह है कि देश के योजनाकार, नीतिनिर्धारक, विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन वित्तीय संस्थानों का अनुमान लगाने की बुनियादी जरूरतों हेतु इस प्रकार के डेटा का होना जरूरी है।
सरकारी महकमों द्वारा समाज कल्याण एवं अन्य प्रकार के जनकल्याण से संबंधित कार्यकलामों के प्रभावी क्षेत्रवार क्रियान्वयन के लिए भी ऐसी जानकारियां को होना अवश्यक है। ऐसा नहीं कि सिर्फ सरकार को ही ऐसी सूचनाओं की आवश्यकता पड़ती है। इनके अलावा अन्य प्रकार के व्यवसायिक कार्यों से संबंधित निजी क्षेत्र की विभिन्न उत्पाद निर्माता कंपनियों एवं सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों के भी इस प्रकार के आधारभूत आँकड़ों की जरूरत पड़ती है ताकि वे अपने भावी कार्यकलापों पर आधारित योजनाएं समय रहते बना सकें।
जनसांख्यिकी के क्षेत्रवार आंकड़ों से किसी प्रकार के नए प्रोजेक्ट लगाने के लिए स्थान का चुनाव, मानव संसाधन की उपलब्धता तथा स्थानीय लोगों के रख रखाव के स्तर से लेकर उनकी क्रमशक्ति के बारे में काफी कुछ जानकारियां उद्यमियों एवं अन्य नीतिनिर्माताओं को मिल जाती हैं।