संघर्षों से भरा रहा विजेंदर का जीवन

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बीजिंग ओलिम्पिक भारत के लिए एतिहासिक ओलिम्पिक बन गया क्योंकि इसमें भारत ने न केवल व्यक्तिगत स्तर पर प्रथम स्वर्ण पदक हासिल किया वरन मुक्केबाजी व कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। बीजिंग ओलिम्पिक में मुक्केबाजी में कांस्य पदक जीतने वाले मुक्केबाज विजेंदर सिंह का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा और इनसे उबरकर उन्होंने वही किया जो उन्होंने चाहा।

उनकी सफलता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उन्होंने देश के लिए ओलिम्पिक में पदक जीता। फ्लाइंग हाई में इस बार हमने जानने की कोशिश की कि किस प्रकार विजेंदर ने यह मुकाम हासिल किया और युवाओं के लिए उनकी क्या सलाह है-

पदक जीतने का मतलब : मैं 13-14 साल से मुक्केबाजी कर रहा हूँ। पहले जब कभी देश से बाहर जाता था तो भारत की पहचान क्रिकेटरों से होती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से हालात बदले हैं। निशानेबाजों, पहलवानों, मुक्केबाजों ने अच्छा प्रदर्शन किया है और भारत को पहचान मिली है।

खान-पान और ट्रेनिंग : हमारे भी डायटीशियन होते हैं। मैन्यू हर दिन अलग-अलग होता है। हमारे खाने में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। ट्रेनिंग शेड्यूल पर निर्भर करती है। यानी अगर कॉम्पीटीशन है तो ट्रेनिंग ज्यादा होती है। अगर आराम का समय है तो दमखम बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। मैं पाँच-छः घंटे अभ्यास करता हूँ। वैसे भी मुक्केबाजी में स्ट्रेंथ, स्पीड और स्किल का सबसे ज्यादा महत्व होता है।
  बीजिंग ओलिम्पिक में मुक्केबाजी में कांस्य पदक जीतने वाले मुक्केबाज विजेंदर सिंह का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा और इनसे उबरकर उन्होंने वही किया जो उन्होंने चाहा। उनकी सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण है कि उन्होंने देश के लिए ओलिम्पिक में पदक जीता।      


मुक्केबाज कैसे बने : मैं भिवानी का रहने वाला हूँ। जिस तरह देश के दूसरे हिस्सों में क्रिकेट लोकप्रिय है, भिवानी में मुक्केबाजी उतना ही लोकप्रिय है। जब मैं सातवीं-आठवीं कक्षा में पढ़ता था, तभी से मुक्केबाजी शुरू कर दी थी। वहाँ से राजकुमार, राजीव, अखिल कुमार काफी अच्छे मुक्केबाज निकले हैं। वहाँ भिवानी बॉक्सिंग क्लब यानी बीबीसी भी है।

बचपन के अरमान : मेरा मानना है कि जो भी क्षेत्र चुनो, उसके शीर्ष पर पहुँचो। हमारे समाज में ये धारणा है कि बस पढ़ाई करो, लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे मुक्केबाजी का मौका दिया और मैंने उनके सपनों को साकार कर दिखाया। मेरे पिताजी हरियाणा रोडवेज में कर्मचारी हैं, फिर भी उन्होंने मुझे मुक्केबाजी को करियर बनाने का अवसर दिया।

मॉडलिंग का शौक : दरअसल, एक अखबार में मेरा फोटो छपा था। तब किसी ने मुझे मॉडलिंग का ऑफर दिया। मैंने सोचा कि मॉडलिंग करके देखते हैं और ये अनुभव अच्छा रहा।

मुक्केबाजी के अलावा और शौक : मुझे फिल्में देखने और संगीत सुनने का शौक है। दोस्तों के साथ शॉपिंग करना और खर्च करने का भी खूब शौक है। जो भी मुझे अच्छा लगता है, खरीद लेता हूँ। मुझे लोगों को गिफ्ट देना भी अच्छा लगता है।

संघर्ष के दिनों की यादें : मेरा मानना है कि खेल हो या फिर राजनीति या कोई दूसरा क्षेत्र, वही इंसान सफल होता है जिसने संघर्ष किया हो। फिर मुक्केबाजी तो वैसे भी दर्द से भरा हुआ खेल है। मुक्केबाज को पहले दिन से दर्द का अहसास होता है। ये ऐसा खेल है चाहे आप जीतें या हारें पंच तो लगने ही हैं, लेकिन दर्द का अहसास तभी होता है जब हम हार जाते हैं।

युवाओं को संदेश : मैं हमेशा सकारात्मक सोचता हूँ। सपने देखता हूँ। ईश्वर का आशीर्वाद रहा कि मैंने जो भी सपने देखे वो पूरे हुए हैं। मैं कोशिश करता हूँ कि नकारात्मक सोच को खुद से दूर रखूँ। इसलिए हमेशा सकारात्मक रहें। सपने देखें और उन्हें पूरा करने का भरसक प्रयत्न करें सफलता अवश्य मिलेगी।

अगर मुक्केबाज नहीं होते : अगर मैं मुक्केबाज नहीं होता तो या तो भारतीय सेना में होता या फिर पढ़ाई कर रहा होता।

दूसरे पेशों में आदर्श : जो संघर्ष कर बुलंदियों पर पहुँचे हैं, मुझे वे शख्सियतें बहुत पसंद हैं। मसलन शाहरुख खान, नवजोत सिंह सिद्घू, शेखर सुमन। मैं भी उन जैसा ही बनना चाहता हूँ।

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