एक छोटे शहर में जैसा बचपन गुजरता है वैसा ही बचपन गुजरा मेरा। मैं लुधियाने का रहने वाला हूँ। पढ़ाई में मेरा दिल नहीं लगता था। अधिकतर समय खेलने-कूदने में बीता। घर में सब लोग परेशान रहते थे कि पता नहीं ये बच्चा क्या करेगा। हाँ, पिटाई भी पड़ती थी।
मेरा मानना है कि अपने देश में वोकेशनल शिक्षा को अधिक सम्मान नहीं दिया जाता। हम हिन्दुस्तानी ही जब विदेश जाते हैं तो इलेक्ट्रीशियन और प्लंबर जैसा रोजगार करने वालों का सम्मान करते हैं। हमारा उनके प्रति नजरिया दूसरा रहता है। लेकिन अपने देश में ऐसा धंधा करने वालों का हम सम्मान नहीं करते। आने वाले समय में दुनिया में ऐसे हुनरमंद लोगों की भारी कमी होने वाली है। अपने देश में करीब 25-30 करोड़ युवा ऐसे हैं जो बावर्ची, नर्स, प्लंबर और इलेक्ट्रीशियन बनकर दूसरे देश में जाकर अच्छा पैसा कमा सकते हैं। लेकिन सबसेपहले ऐसी वोकेशनल शिक्षा की व्यापक व्यवस्था करने और समाज को अपने नजरिए में बदलाव लाने की जरूरत है।
चाहे धीरूभाई अंबानी हों या टाटा या बिड़ला कंपनी के संस्थापक सभी आपको जमीन से जुड़े हुए ही मिलेंगे। क्योंकि ये नीचे से उठे हैं। मैंने भी 30-35 घंटे की रेलवे यात्रा बैठकर की है। ट्रकों में गोदी से माल उठाकर उसे बाजार में लाकर बेचा है, इसलिए हमें इसे छोड़ने में मुश्किल होगी। बनाए रखने में कोई मुश्किल नहीं होगी।
मैंने भी 18 साल की उम्र में व्यापार करना शुरू किया। सबसे पहले ब्रजमोहन मुंजाल साहब की हीरो साइकल कंपनी के लिए साइकल के पार्ट्स बनाने शुरू किए। छोटे से शेड में काम करना शुरू किया था। कोई बहुत बड़ा काम नहीं था। स्टील की रॉडों को गर्म करके साइकल के पार्ट्स बनाए जाते थे। अपने पैसे से पहली गाड़ी मैंने 1979-80 में खरीदी थी। तब मैं 20-21 साल का था।
आप जिंदगी में तय करते हैं कि इस समय ये करना है। मैंने भी तय किया था। समाज में आप एक जगह बनाना चाहते हैं। मेरे पास समय नहीं होता था। जब मेरे दोस्त घूमने-फिरने निकलते थे उस समय मैं काम पर निकलता था। पहले दिन से ही मन से काम पर लग गया था। बहुत अधिक समय काम में निकल जाता था।
दूसरी चीजों के लिए बहुत कम समय मिलता था। हाँ, लेकिन जो समय बचता था उसमें दोस्तों से मिलना और हँसी-मजाक हो जाता था। शादी के लिए घरवालों की तरफ से दबाव था। मेरी उम्र भी साढ़े पच्चीस साल की थी। तो जब शाइना से मिला तो लगा कि हाँ शादी कर लेनी चाहिए। मुझे जैसी पत्नी चाहिए थी ये वैसी ही थीं।
हर आदमी के लिए सफलता के पैमाने बदलते रहते हैं। आज जो सफलता है वो कल आपके लिए एक सामान्य घटना होती है। पहले मेरे लिए सफलता के पैमाने कुछ और थे आज कुछ और हैं। बीस हजार रुपए से मैंने बिजनेस शुरू किया था आज मैं 20 बिलियन का लक्ष्य बना सकता हूँ। लेकिन इस सबके बीच मुझे लगता है कि सफलता वो है कि जब आप शाम को अपना काम पूरा कर लें तो आपको लगे कि कुछ किया। एक गुगगुदी सी हो। मेरा मानना है कि सफलता आदमी के अंदर रहती है और आपको बताती है कि आप ठीक दिशा में जा रहे हैं।
सफलता आसानी से नहीं मिलती, क्योंकि आसान सफलता जैसी कोई चीज नहीं होती। लेकिन मेरा एक मूल मंत्र है सफलता के लिए, जो मैं स्कूल-कॉलेज के युवाओं से बताता हूँ। मैं उनसे कहता हूँ कि अगर मौका मिले तो जो आप जिंदगी में करना चाहते हैं वही करिए। अगरऐसा नहीं हो पाता तो कोई औसत जिंदगी तो जी सकता है, लेकिन बड़ी सफलता नहीं पा सकता। बड़ी सफलता तो तभी मिलेगी जब डॉक्टर की चाह रखने वाला डॉक्टर बने, इंजीनियर बनने की चाह रखने वाला इंजीनियर बने और बिजनेसमैन बनने की चाहत रखने वाला आदमी बिजनेसमैन बने। मेरे लिए हर सोमवार की सुबह बहुत खूबसूरत होती है। मैं अपनी कुर्सी पर बैठकर अपना काम शुरू करता हूँ। भारती टेलीकॉम में काम करने वाले हर आदमी के लिए ये बात सही है। हर आदमी अपने काम में खुशी महसूस करता है।
मैं जब अपने हजारों कर्मचारियों से मिलता हूँ तो उनसे कहता हूँ कि अगर सोमवार को ऑफिस आते समय आप में उमंग नहीं है तो अपने आप से पूछिए कि कहाँ गलती हो रही है। कहीं आप गलत जगह तो नहीं हैं।
अगर थोड़ा-बहुत बदलाव लाना चाह रहे हैं, यहीं काम करना चाह रहे हैं तो शाम को जाकर कॉलर खींच दीजिए दो-चार। लेकिन उस धंधे में बिलकुल मत रहिए जिसमें आपका मन नहीं लग रहा है। कॉलर खींच लेने का मतलब है-अपने बॉस के कॉलर खींचिए। मतलब अपने बॉस से सवाल पूछिए। देखिए सफलता वहीं मिली है जहाँ लोगों ने काम में अपनी जान लगा दी। अगर काम में मुश्किलें भी आएँगी तो आप उसे पार कर जाएँगे, क्योंकि आप पूरे दिल से उस काम को कर रहे हैं।
रिस्क लेना भी कामयाबी हासिल करने का एक तरीका है। मैंने तो एक बार नहीं दर्जनों बार अपनी कंपनी दाँव पर लगाई है। अब पिछले दस सालों से ऐसी नौबत नहीं आ रही है। आज से पाँच साल पहले कंपनी के शेयर की कीमत 20 रुपए थी और कंपनी की कीमत उसमें लगाईपूँजी की भी आधी हो गई थी। लेकिन ऐसी स्थिति बन चुकी थी कि हालात संभले हुए थे। अगर तीसरे नंबर पर न होते तो तीन सौवें नंबर पर होते। लेकिन आज मैं कंपनी को दाँव पर नहीं लगा सकता, क्योंकि इसमें शेयर होल्डर्स का पैसा लगा हुआ है। अब रिस्क लेने की जगहरिस्क प्रबंधन पर कोशिश होती है। छोटा व्यापारी धंधे में कई बार कंपनी को दाँव पर लगा देता हैं। मैंने भी लगाया है।
जब आप छोटे होते हैं तो छोटी सफलताएँ और लड़ाइयाँ भी बड़ी लगती हैं। जब आप बड़े हो जाते हैं तो वो लड़ाइयाँ, सफलताएँ छोटी लगने लगती हैं और आप बड़ी लड़ाइयाँ लड़ते हैं। अगर आज आप छोटी गाड़ियाँ खरीद सकते हैं तो 15-20 साल बाद बड़ी गाड़ियाँ भी खरीद सकते हैं। अगर आपकी पैसा बनाने में रुचि है।
पैसा आपको कुछ मूल सुख-सुविधाएँ देता है। पहले आप ट्रेन से मुंबई जाते थे। आज चार्टर्ड प्लेन से जा सकते हैं। पहले अपार्टमेंट में रहते थे आज बड़े घर में रह सकते हैं। चीजों का महत्व सापेक्ष रूप से बढ़ जाता है, लेकिन पूरी तरह से महत्व कभी नहीं बदलता। पैसा आपको बाँधता भी है। समाज में जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
पहले आप जो चीजें कर सकते थे वो आज नहीं कर सकते। नजरिए की बात है। पैसे का महत्व है, लेकिन एक स्तर के बाद नहीं है। हमारे यहाँ कहा जाता है कि जो टाटाज का वैल्यू सिस्टम है और रिलायंस की जो स्पीड है अगर इन दोनों को मिला दें तो आदर्श कंपनी बनेगी। मेरा मानना है कि भारती में दोनों चीजें मौजूद हैं। इसमें वैल्यू सिस्टम और प्रोफशनेलिज्म बहुत अव्वल दर्जे की है और स्पीड भी है।