Chhath Puja 2021 : उत्तर भारत में खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में छठ पूजा का पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से यह लोकपर्व है जो उत्तर भारत के राज्य पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग ही मनाते हैं। यहां के लोग देश में कहीं भी हो वे छठ पर्व की पूजा करते हैं। 4 दिन चलने वाले इस पर्व में सूर्यदेव और छठी माता की पूजा होती है। इस वर्ष यह पर्व 8 नवंबर से 11 नवंबर तक चलेगा। आओ जानते हैं कि इन 4 दिनों में क्या क्या किया जाता है।
1. संतान के सुख के लिए रखती हैं व्रत : छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगाने के लिए करती हैं। मान्यता अनुसार इस दिन निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं छठ मैया।
2. छठ पूजा सामग्री : लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, प्रसाद रखने के लिए बांस की दो 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता और पजामा।
3. नहाय खाय : इस पर्व की शुरुआत नहाय खाये से होती है जिसमें साफ-सफाई और शुद्ध शाकाहारी भोजन सेवन का पालन किया जाता है। नहाय खहाय के बाद सूर्य और छठी मैया को घर में स्थापित कर उनका पूजा किया जाता है।
4. खरना : दूसरे दिन खरना में महिलाएं नित्यकर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनती हैं और नाक से माथे के मांग तक सिंदूर लगाती हैं। दिनभर व्रत रखने के बाद शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर साठी के चावल और गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार करती हैं। पूजा के बाद उसे ही खाती है और घर के अन्य सदस्यों को प्रसाद रूप में इसे दिया जाता है।
Moryayi chath 2021
5. निर्जला व्रत : खराने के भोजन को ग्रहण करने के बाद ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। छठ के दौरान महिलाएं लगभग 36 घंटे का व्रत रखती हैं जो उषा के सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही पारण करती हैं।
6. छठी माइया का आगमन : मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मइया) का आगमन हो जाता है।
7. सूर्य को अर्घ्य : छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का प्रचलन और उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। इस दिन सभी महिलाएं नदी, तालाब या जलाशय के तट पर सूर्य को अर्घ्य देकर उसकी पूजा करती है।
8. चार दिनों का पर्व : यह पर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है। 8 नवंबर से ही नहाय खा से इस पर्व की शुरुआत होती है। 9 नंबर को खरना, 10 नवंबर को सांध्य अर्घ्य और 11 नवंबर को उषा काल का अर्घ्य दिया जाएगा। तीसरा दिन और चौथा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है जिसे सांध्य और उषा अर्घ्य कहा जाता है।
9. संध्या अर्घ्य : षष्ठी के दिन ही छठ पूजा और पर्व रहता है। इस दिन संध्या अर्घ्य का महत्व है। इस दिन कार्तिक शुक्ल की षष्ठी होती है। संध्या षष्ठी को अर्घ्य अर्थात संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और विधिवत पूजन किया जाता है। इस समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसीलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देने का लाभ मिलता है। कहते हैं कि शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है। शाम को बांस की टोकरी में ठेकुआ, चावल के लड्डू और कुछ फल रखें जाते हैं और पूजा का सूप सजाया जाता है और तब सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसी दौरान सूर्य को जल एवं दूध चढ़ाकर प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा भी की जाती है। बाद में रात्रि को छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
10. उषा अर्घ्य : उषा अर्घ्य अर्थात इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। षष्ठी के दूसरे दिन सप्तमी को उषाकाल में सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है जिसे पारण कहते हैं। अंतिम दिन सूर्य को वरुण वेला में अर्घ्य दिया जाता है। यह सूर्य की पत्नी उषा को दिया जाता है। इससे सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है। पूजा के बाद व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है। यह छठ पर्व का समापन दिन होता है।