छठ पर्व के दिनों में अवश्य करें षष्ठी देवी स्तोत्र का पाठ
भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं। जिन्हें संतान नहीं होती, उन्हें यह संतान देती है, संतान को दीर्घायु प्रदान करती है। बच्चों की रक्षा करना भी इनका स्वाभाविक गुण धर्म है। मूल प्रकृति के छठे अंश से यह प्रकट हुई हैं तभी इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा है। यह ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं और कार्तिकेय की प्राणप्रिया हैं।
यह देवसेना के नाम से भी जानी जाती हैं। इन्हें विष्णुमाया तथा बालदा अर्थात पुत्र देने वाली भी कहा गया है। भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रुप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं। वह उनकी रक्षा करने के साथ उनका भरण-पोषण भी करती हैं। बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं। कहा जाता है कि जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की पूजा की जाती है। यह अपना अभूतपूर्व वात्सल्य छोटे बच्चों को प्रदान करती है। बिल्ली इनकी सवारी है और एक बालक को गोद में ले रखा है और दूसरे बालक की अंगुली पकड़ रखी है।
षष्ठी देवी पूजा विधि
जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्त होने में बाधा आती है उन्हें रोज इस षष्ठी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। संतान के इच्छुक दंपत्ति को शालिग्राम शिला, कलश, वटवृक्ष का मूल अथवा दीवार पर लाल चंदन से षष्ठी देवी की आकृति बनाकर उनका पूजन नित्य प्रतिदिन करना चाहिए। सबसे पहले देवी का ध्यान निम्न मंत्र के द्वारा करें...
ध्यान के बाद ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा इस अष्टाक्षर मंत्र से आवाहन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्राभूषण, पुष्प, धूप, दीप, तथा नैवेद्यादि उपचारों से देवी का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही देवी के इस अष्टाक्षर मंत्र का यथाशक्ति जप करना चाहिए। देवी के पूजन तथा जप के बाद षष्ठीदेवी स्तोत्र का पाठ श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। इसके पाठ से नि:संदेह संतान की प्राप्ति होगी।