कुर्सी वाले दौड़े कुर्सी के पीछे

- राजेश दुबे, रायपुर। विभिन्न मंडलों और निगमों में अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे भाजपा के चार नेता विधायक बनने के लिए चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं। टिकट की दौड़ में मंडलों और निगमों के करीब दो दर्जन से अधिक पदाधिकारी थे, लेकिन पार्टी ने केवल चार अध्यक्षों को मौका दिया है। प्रत्याशी नहीं बनाए जाने से वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडे पार्टी छोड़कर निर्दलीय मैदान में कूद पड़े हैं। वहीं संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष चिंतामणि महाराज ने भी टिकट नहीं मिलने पर बगावती तेवर अपना रखे हैं।

निगम, मंडल और आयोगों की कुर्सी में बैठे भाजपा पदाधिकारियों ने विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। अपने पसंदीदा क्षेत्रों के साथ उन्होंने संगठन के सामने अपना दावा पेश किया था। इसमें अधिकतर स्थान पर भाजपा के विधायक थे। इन दावों को देखकर पार्टी संगठन की चिंता बढ़ गई थी, लेकिन पहले पर्यवेक्षकों और फिर प्रदेश चुनाव समिति ने केवल चार पदाधिकारियों को ही चुनाव लड़ने के लिए हरी झंडी दिखाई।

संगठन ने सबसे पहले पर्यटन मंडल के अध्यक्ष संतोष बाफना के नाम पर सहमति जताई। उन्हें जगदलपुर से प्रत्याशी बनाया गया है। वहाँ से हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष और प्रदेश भाजपा के मंत्री किरणदेव भी दौड़ में थे, लेकिन चयनकर्ताओं ने बाफना पर दाँव लगाना बेहतर समझा। इसी तरह पिछड़ा वर्ग के अध्यक्ष नारायण चंदेल को भी टिकट देने में संगठन को अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी।

पर्यवेक्षकों ने जाँजगीर-चांपा से पैनल में एकमात्र नाम चंदेल का ही दिया था। लगभग यही स्थिति वैशालीनगर से रही, जहाँ दुर्ग महापौर सरोज पांडे को मैदान में उतारने के लिए संगठन के तकरीबन सभी पदाधिकारियों में शुरू से ही एकराय थी। पैनल में भी सुश्री पांडे का अकेला ही नाम था।

ब्रेवरेज कार्पोरेशन के अध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने को प्रत्याशी बनाने के लिए प्रदेश व केंद्रीय चुनाव समिति को काफी माथापच्ची करनी पड़ी। उन्हें रायपुर उत्तर से प्रत्याशी बनाया गया है। इस सीट के लिए तीन सशक्त दावेदार थे। कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दबाव के कारण संगठन को उपासने को प्रत्याशी बनाने का फैसला करना पड़ा।

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