रायपुर। प्रदेश में पिछड़े वर्ग की आधे से अधिक आबादी को देखते हुए भाजपा ने एक तिहाई से कुछ कम सीटों पर इस वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया है। सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित प्रदेश की 46 सीटों में 26 स्थानों पर भाजपा ने साहू और कुर्मी समाज के नेताओं को मैदान में उतारा है। अनुसूचित जनजाति के बाद भाजपा पिछड़ा वर्ग के सहारे सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ने की तैयारी में है।
प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी 51 प्रतिशत के करीब है। इसमें साहू और कुर्मी समाज की बहुलता है। प्रदेश की करीब तीस विधानसभा सीटों में इन समाजों का दबदबा है और वहाँ वे नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। प्रत्याशी चयन करते समय भाजपा कोरग्रुप की बैठक में इस बात को लगातार रेखांकित किया जाता रहा कि इस वर्ग की अनदेखी से पार्टी को नुकसान हो सकता है। इसके कारण ही अंतिम समय पर रायपुर ग्रामीण से अन्य दावेदारों की अनदेखी करते हुए समाज में करीब बीस साल से सक्रिय नंदकुमार साहू को उम्मीदवार बनाने का फैसला करना पड़ा।
2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों की बदौलत सत्ता तक पहुँचने वाली भाजपा ने इस वर्ग का खास ख्याल रखा है। परिसीमीन में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पाँच सीटों के विलुप्त होने के बाद समाज का प्रतिनिधित्व बनाए रखने के लिए भाजपा ने अनारक्षित तीन स्थानों से आदिवासी नेताओं को चुनाव मैदान पर उतारा है। इसी प्रकार की रणनीति अनुसूचित जाति के लिए अपनाई गई है।
इस वर्ग के लिए आरक्षित दस सीटों के अलावा अनारक्षित एक सीट से अनुसूचित जाति के नेता को चुनाव लड़ाया जा रहा है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि आदिवासियों के अलावा पिछड़ा वर्ग ही प्रदेश में बहुलता वाला ऐसा वर्ग है, जिसे संतुष्ट कर सत्ता तक पहुँचा जा सकता है। प्रत्याशी चयन करते समय भाजपा ने 'बनिया मारवाड़ी वाली पार्टी' होने का चेहरा ठीक करने की कोशिश की है। इस बार अग्रवाल समाज के पाँच तथा जैन समाज के तीन नेताओं को मौका दिया है। इसी तरह पौन प्रतिशत आबादी वाले ब्राह्मण समाज को सात स्थान देकर सवर्णों को संतुष्ट करने की कोशिश की गई है। (नईदुनिया)