छत्तीसगढ़ : नौ मंत्रियों की चुनावी किस्मत दांव पर

शनिवार, 16 नवंबर 2013 (15:59 IST)
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रायपुर। छत्तीसगढ़ में दूसरे एवं आखिरी चरण में 19 नवंबर को होने वाले मतदान में राज्य के 9 मंत्रियों, विपक्ष के नेता तथा विधानसभा अध्यक्ष की चुनावी किस्मत दांव पर है।

राज्य के अधिकांश मंत्री, विपक्ष के नेता तथा विधानसभा अध्यक्ष कड़े चुनावी मुकाबले में फंसे हैं। त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे कुछ मंत्री अभयदान मिलने की उम्मीद पाले हुए हैं तो कड़े चुनावी मुकाबले में फंसे नेता प्रतिपक्ष रवीन्द्र चौबे अपने चुनाव क्षेत्र साजा के बाहर प्रचार के लिए निकलने का साहस नहीं जुटा पाए हैं।

राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल रायपुर दक्षिण सीट से फिर चुनाव मैदान में हैं। उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस की प्रत्याशी एवं रायपुर की महापौर किरणमयी नायक से है। अग्रवाल अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से रायपुर नगर सीट से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई रायपुर दक्षिण सीट से उन्होंने 2008 में पहली बार चुनाव लड़कर सफलता हासिल की थी।

अग्रवाल की गणना अपराजेय के रूप में होती रही है। इस बार उनके खिलाफ महापौर नायक को उतारकर कांग्रेस ने उन्हें घेरने तथा कड़ी टक्कर देने का प्रयास किया है। चुनावी प्रबंधन में माहिर माने जाने वाले अग्रवाल के सामने संसाधनों के मामले में श्रीमती नायक कमजोर पड़ रही हैं, पर उनका भी जनसंपर्क तेज है।

राज्य की राजनीतिक रूप से अतिसंवेदनशील मानी जाने वाली इस सीट पर आचार संहिता के उल्लंघन के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं। चुनाव आयोग ने इस सीट को विशेष निगरानी वाली सीट माना है और उसके प्रेक्षक लगातार सक्रिय हैं। कांग्रेस प्रत्याशी की कई शिकायतों को सही पाते हुए कार्रवाई भी हुई है।

अग्रवाल जहां लगातार जीत का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं तो श्रीमती नायक उनकी राह को रोकने में पूरी ताकत लगा रही हैं। भाजपा का प्रचार ज्यादा आक्रामक है। दोनों प्रत्याशी जीत के दावे कर रहे हैं, पर जानकारों का मानना है कि प्रत्याशी की छवि के साथ चुनावी प्रबंधन की इस सीट पर अहम भूमिका होगी।

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राज्य के उद्योग मंत्री राजेश मूणत रायपुर पश्चिम सीट से फिर मैदान में हैं। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर वह दूसरी बार किस्मत आजमा रहे हैं। परिसीमन से पूर्व वह रायपुर ग्रामीण सीट से पहली बार 2003 में निर्वाचित हुए थे। उनके खिलाफ कांग्रेस ने युवा प्रत्याशी विकास उपाध्याय को मैदान में उतारा है। उपाध्याय पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।

मूणत को साफ-सुथरे और युवा प्रत्याशी उपाध्याय से कड़ी टक्कर मिल रही है। कांग्रेस के परंपरागत वोटों के सिवा उन्हें युवाओं का भी अच्छा समर्थन मिल रहा है। मूणत जहां क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों के आधार पर वोट मांग रहे हैं वहीं उपाध्याय भ्रष्टाचार, भाजपा प्रत्याशी की कार्यशैली एवं परिवर्तन के नाम पर वोट मांग रहे हैं।

राजनीतिक जानकारों के अनुसार मूणत एवं उपाध्याय में सीधा और कड़ा मुकाबला है। चुनाव प्रचार एवं प्रबंधन में मूणत आगे हैं। मूणत की आक्रामक कार्यशैली से उनके प्रति नाराजगी भी है। उपाध्याय को विनम्र छवि का भी लाभ मिल रहा है हालांकि वे संसाधनों में मूणत की अपेक्षा कमजोर हैं। जानकारों का मानना है कि इस बार मूणत की राह आसान नहीं है।

राज्य के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले मुंगेली सीट से फिर मैदान में उतरे हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के चन्द्रभान बारमते से है। मोहले और बारमते में सीधा मुकाबला बताया जा रहा है। बारमते पूर्व विधायक हैं और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समर्थक हैं।

मोहले मुंगेली को जिला बनवाने तथा विकास कार्यों के बूते पर समर्थन मांग रहे हैं जबकि अनुसूचित जाति का आरक्षण कम किए जाने के बारे में वे संतोषजनक उत्तर नहीं दे पा रहे हैं।

कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा आरक्षण के साथ भ्रष्टाचार और रमन सरकार के कामकाज का मुद्दा उठाया जा रहा है। दोनों ही प्रत्याशी जीत के प्रति आश्वस्त हैं, पर जानकार मोहले की स्थिति बेहतर मान रहे हैं।

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राज्य के कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू अपनी परंपरागत अभनपुर सीट से फिर मैदान में हैं। इस सीट पर उनका मुकाबला परंपरागत प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू से है। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने अभनपुर नगर पंचायत अध्यक्ष राधाकृष्ण टंडन को मैदान में उतारकर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया है।

भाजपा ने अपने सर्वेक्षणों में मंत्री साहू की छवि क्षेत्र में अच्छी नहीं होने के कारण उनका टिकट काटने का संकेत दिया था वहीं वे स्वयं पार्टी पर चुनाव क्षेत्र बदलने का दबाव बनाए हुए थे। पार्टी ने उन्हें टिकट तो दे दी, पर क्षेत्र नहीं बदला।

इलाके के सतनामी समाज में बहुत अच्छा आधार रखने वाले टंडन ने पिछले चुनाव में कांग्रेस में रहते हुए मंत्री साहू की मदद की थी जिसके बाद भी वे बहुत मामूली मतों से जीत पाए थे। इस बार टंडन स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं। अगर वे ज्यादा वोट हासिल करते हैं तो मंत्री की राह आसान हो जाएगी अन्यथा उन्हें फिर विधानसभा में पहुंचने में मुश्किल हो सकती है।

विधानसभा अध्यक्ष धरम कौशिक फिर चुनावी मैदान में बिल्हा सीट से मैदान में उतरे हैं। इस बार फिर उनका मुकाबला परंपरागत प्रतिद्वंदी कांग्रेस के सियाराम कौशिक से है। दोनों 1 -1 चुनाव जीत चुके हैं।

विधानसभा अध्यक्ष ने क्षेत्र में विकास काम करवाए हैं लेकिन उनके नजदीकी लोगों के खनन के ठेकों तथा सरकारी तंत्र में दखल और विरोधियों को परेशान करने को लेकर उनके प्रति क्षेत्र में नाराजगी बताई जा रही है।

उन्हें कांग्रेस के सियाराम कौशिक से कड़ी टक्कर मिल रही है। इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए बसपा ने बिल्हा नगर पंचायत के अध्यक्ष जगदीश कौशिक को मैदान में उतारा है। जानकारों का मानना है कि अंतत: मुकाबला धरम कौशिक एवं सियाराम कौशिक में सिमटेगा।

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राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल बिलासपुर सीट से फिर मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी और बिलासपुर की महापौर वाणी राव से है। अग्रवाल लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।

दो बार से उनका मुकाबला अनिल टाह से था जबकि इस बार पार्टी ने उम्मीदवार बदल दिया है। अग्रवाल ने बिलासपुर में काफी काम किया है, पर भूमिगत नाली को लेकर उनके खिलाफ थोड़ा माहौल रहा है।

व्यवस्थित प्रचार अभियान चला रहे अग्रवाल लोगों की इस मसले पर नाराजगी दूर करने के प्रयास में हैं। अगर वे सफल नहीं होते तो उन्हें जहां नुकसान हो सकता है वहीं कांग्रेस प्रत्याशी को इसका लाभ मिल सकता है।

राज्य के जल संसाधन मंत्री हेमचंद यादव दुर्ग सीट से फिर मैदान में हैं। उनका मुकाबला एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा से है। वोरा कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के पुत्र हैं और लगातार 3 बार यादव से चुनावी शिकस्त खा चुके हैं।

पिछला चुनाव वे 1 हजार वोट से भी कम से हार गए थे। इस बार फिर उनका मुकाबला यादव से है। इस बार मुकाबला सीधे की बजाय छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के राजेन्द्र साहू ने त्रिकोणीय बना दिया है।

साहू मंच के प्रत्याशी के रूप में बहुत मामूली मत से महापौर का चुनाव हार गए थे। 3 बार चुनाव हारे वोरा के प्रति इस बार सहानुभूति का माहौल था, पर मंच के प्रत्याशी ने मुकाबले को कड़ा बना दिया है। संसाधनों को मामले में तीनों मजबूत हैं। जानकारों का मानना है कि इस सीट पर जीत-हार का अंतर बहुत कम होगा।

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राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री रामविचार नेताम रामानुजगंज सीट से फिर मैदान में हैं और उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी वृहस्पति सिंह से है। नेताम एवं सिंह परंपरागत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं और पिछले चुनाव में भी इनके बीच कांटे का मुकाबला हुआ था।

नेताम महज कुछ हजार मत से चुनाव जीत सके थे। नेताम पिछले 10 वर्षों से मंत्री हैं और संसाधनों के साथ ही चुनावी प्रबंध में भी वे आगे हैं, पर इस बार माहौल उनके खिलाफ बताया जा रहा है।

राजनीतिक जानकारों के अनुसार पिछला चुनाव भी उन्होंने संसाधनों के साथ ही चुनावी प्रबंध के बूते पर जीता था और इस बार भी इसी बूते पर ताकत झोंकी है, पर इस बार मतदाताओं की नाराजगी के साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी की सजगता से भी जूझना पड़ रहा है। उनके कुछ नजदीकी कार्यकर्ता मतदाताओं को नोट बांटते गिरफ्तार किए जा चुके हैं। जानकारों के अनुसार इस चुनाव में नेताम कड़े मुकाबले में फंसे हैं।

राज्य के राजस्व मंत्री दयालदास बघेल फिर नवागढ़ सीट से मैदान में उतरे हैं। भाजपा के सर्वे में उनकी छवि बेहतर नहीं होने के कारण उनका टिकट खतरे में था लेकिन बाद में पार्टी ने उन पर विश्वास जताया। उन्हें रमन मंत्रिमंडल में सबसे कमजोर मंत्रियों में शुमार किया जाता रहा है।

इस बार उनका मुकाबला परंपरागत प्रतिद्वंदी फिर पूर्व मंत्री डीपी धृतलहरे से है। इस बार धृतलहरे कांग्रेस की बजाय छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस ने यहां से अनिता पात्रे को टिकट दिया है। इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बताया जा रहा है जिसमें धृतलहरे की स्थिति बेहतर बताई जा रही है। चुनावी प्रबंधन ही कोई उलटफेर कर सकता है।

विधानसभा में विपक्ष के नेता एवं कांग्रेस विधायक दल के नेता रवीन्द्र चौबे अपनी परंपरागत सीट साजा से फिर मैदान में हैं। वे भी कड़े मुकाबले में फंसे हैं और उनकी विधानसभा पहुंचने की डगर बहुत मुश्किलभरी है। इस बार फिर सत्तारूढ़ भाजपा ने उनके खिलाफ लाभचंद बाफना को मैदान में उतारा है।

लगातार कई बार से इस सीट से चुनाव जीत रहे चौबे पिछला चुनाव बहुत कम अंतर से जीते थे। इस बार उनकी राह और परेशानीभरी है। उनकी राह को पूर्व मंत्री कुर्रे ने कांग्रेस से बगावत कर मैदान में उतरकर मुश्किल बना दिया है।

छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने साहू को प्रत्याशी बनाया है। मंच के प्रत्याशी से ज्यादा भाजपा को नुकसान होने की चर्चा है। अगर मंच प्रत्याशी ने भाजपा का ज्यादा नुकसान नहीं किया और कुर्रे ने सतनामी वोटों में बड़ी सेध लगाई तो चौबे का विधानसभा पहुंचना मुश्किल हो जाएगा।

कड़े मुकाबले में फंसे चौबे वैसे तो राज्य में कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में हैं और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत के साथ पार्टी का राज्य में जगह-जगह लगे होर्डिंग एवं विज्ञापनों में चेहरा है, पर वे साजा से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं। (वार्ता)

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