Mother Teresa Death: भारत रत्न और नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित ईसाई रोमन कैथोलिक नन एवं संत मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे में हुआ था। मात्र 18 वर्ष की उम्र में लोरेटो सिस्टर्स में दीक्षा लेकर वे सिस्टर टेरेसा बनीं थी। फिर वे भारत आकर ईसाई ननों की तरह अध्यापन से जुड़ गईं। बाद में उन्होंने समाज सेवा का रास्ता अपनाया।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी : मदर टेरेसा ने 24 मई 1937 को अंतिम प्रतिज्ञा ली। नन की प्रतिज्ञा लेने के बाद उन्हें मदर की उपाधि दी गई। इसके बाद से वे पूरे विश्व में मदर टेरेसा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस दौरान 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और तत्पश्चात 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की। मदर टेरेसा ने भारत में निर्मल हृदय और निर्मला शिशु भवन के नाम से आश्रम खोलें, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। मानवता की महान प्रतिमूर्ति और शांति की दूत कहलाने वाली मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर 1997 को हो गया था। मिशनरीज ऑफ चैरिटी की कलकत्ता में स्थापना की थी। आज 120 से अधिक देशों में मानवीय कार्य के लिए जाना जाती है चैरिटी। मिशनरी संपूर्ण जगत में गरीब, बीमार, असहाय, वंचित लोगों की सेवा और सहायता में अपना योगदान देते हैं। इतना ही वह एड्स पीड़ित लोगों की सहायता भी करते हैं।
पुरस्कार और सम्मान : विश्वभर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों की वजह से व गरीबों और असहायों की सहायता करने के लिए मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हुए। साल 1962 में भारत सरकार ने उनकी समाजसेवा और जनकल्याण की भावना की कद्र करते हुए उन्हें 'पद्मश्री' से नवाजा। साल 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से अलंकृत किया गया।
धन्य' घोषित किया : जिस आत्मीयता के साथ उन्होंने दीन-दुखियों की सेवा की उसे देखते हुए पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर 2003 को रोम में मदर टेरेसा को 'धन्य' घोषित किया था। 4 सितंबर 2016 में इसको लेकर भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कैथलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु, पोप फ्रांसिस, प्रभु यीशू की प्रर्थना के साथ 'दीनहीनों का फ़रिश्ता' कहलाने वाली मदर टेरेसा को कैथलिक संप्रदाय का संत घोषित किया गया था।