क्रिसमस : आज्ञाकारिता का पर्व

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हमारे लिए एक बालक उत्पन्न होगा, हमें एक पुत्र दिया जाएगा, प्रभुता उसके कंधों पर होगी और उसका नाम अपूर्व परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, शाश्वत पिता, शांति का राजकुमार रखा जाएगा। ईसा मसीह के जन्म से लगभग 675 वर्ष पूर्व यह भविष्यवाणी यथायाह नबी द्वारा की गई थी। प्रभु येसु का जन्म अपने पिता की आज्ञाओं को पूर्ण करने तथा मानव को पाप की राह से दूर करने हेतु हुआ था। उनके जन्म में जिन लोगों ने मुख्य भूमिका निभाई वे ईश्वर के आज्ञाकारी थे।

जकरियस (जकरयाह) :- इस क्रम में सबसे पहले थे जकरियस (जकरयाह), जिनको बुढ़ापे में पुत्र प्राप्ति हुई थी, और जिसका नाम उन्होंने योहन बपतिस्ता (यूहन्ना) रखा था। वह येसु की सेवकाई के लिए मार्ग प्रशस्त करने के लिए पैदा हुआ था। योहन ने ही धार्मिक संस्कार के द्वारा येसु को पानी का बपतिस्मा दिया था।

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मरियम :- येसु की माता मरियम आज्ञाकारी तथा धार्मिक कन्या थी। एक कुँवारी का माँ बनना कोई साधारण बात नहीं थी। यह जिंदगी भर प्रताड़ना सहने वाली बात थी। परंतु स्वर्गदूत ने उसे दर्शन देकर कहा- 'देख तू गर्भवती होगी और एक पुत्र को जन्म देगी, तू उसका नाम येसु रखना। पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा और परमप्रधान का सामर्थ्य तुझ पर आच्छादित होगा। इसी कारण वह जो पवित्र पुत्र उत्पन्न होगा परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।' मरियम इसे स्वीकार करते हुए कहती हैं- 'देख, मैं तो प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार ही मेरे साथ हो।' प्रथम स्त्री हेवा (हव्वा) पाप में गिरने की दोषी है तो मरियम उद्धारकर्ता येसु को जन्म देने के लिए धन्य है।

यूसुफ :- येसू का सांसारिक पिता यूसुफ एक धर्मी नवयुवक था। वह साधारण परिवार से था तथा बढ़ई था। येसु के जन्म की भविष्यवाणी से वह अनभिज्ञ था और विवाह पूर्व मरियम को गर्भवती पाने पर उसे चुपचाप त्याग देना चाहता था। परंतु स्वर्गदूत स्वप्न में उससे कहता है- 'हे यूसुफ, दाऊद के पुत्र। तू मरियम को अपनी पत्नी बनाने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। वह पुत्र को जन्म देगी और उसका नाम येसु रखना, क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।

यूसुफ ने येसु के जन्म के पूर्व और बाद में भी बहुत कष्ट सहे। पहली बार स्वर्गदूत ने उन्हें बेथलेहेम से बालक तथा उसकी माता को लेकर मिस्र देश जाने, दूसरी बार सपरिवार इसराइल तथा तीसरी बार परमेश्वर की चेतावनी पाकर गलीली के नाजरेथ गाँव जाने का आदेश दिया।

सिमोन (शमोन):- 'वह भी एक धर्मी मनुष्य था पवित्र आत्मा द्वारा उस पर यह प्रकाट किया गया था कि 'जब तक तू प्रभु के मसीह को न देख ले, तब तक मृत्यु को न देखेगा।' परमेश्वर पवित्र आत्मा द्वारा उसे येसु को दिखाना चाहता है। जब मंदिर में येसु को अर्पित करने के लिए लाया जाता है तब वह मुक्तिदाता येसु के दर्शन करता है तथा उसका जीवन धन्य हो जाता है। उसकी इच्छा पूरी होती है और यह संभव हो पाया सिमोन की आज्ञाकारिता के कारण।

ज्योतिष :- ज्योतिषियों की भूमिका भी येसु के जन्म की घटना की एक मुख्य कड़ी है। उन्होंने अपनी बुद्धि, ज्ञान व समझ से ग्रहों, नक्षत्रों व तारों के परिचालन से यह जान लिया कि पूर्व में जो तारा दिखाई दिया है, वह नए राजा के जन्म का संदेश दे रहा है। ज्योतिषीगण येसु को दंडवत करने, उसकी आराधना करने तथा भेंट चढ़ाने हेतु अपने देश से निकलते हैं। तारा जहाँ ठहरता है ज्योतिषी भी वहीं रुककर बालक येसु को उसकी माता मरियम के साथ पाकर, भूमि पर गिरकर उसको दंडवत करते हैं तथा सोना, लोबान और गंधरस की भेंट चढ़ाते हैं। स्वप्न में चेतावनी पाकर वे तीनों ज्योतिषी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए दूसरे मार्ग से अपने देश चले जाते हैं।

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गब्रिएल (जिब्राइल), चरवाहे :- स्वर्गदूत गब्रिएल, जकरियास और मरियम के पास संदेशवाहक के रूप में भेजा गया था। यूसुफ और चरवाहों के पास भी स्वर्गदूतों को भेजा गया था, परंतु इन स्वर्गदूतों के नामों का उल्लेख नहीं है। स्वर्गदूतों ने ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए चरवाहों को येसु के जन्म की जानकारी दी, जिससे चरवाहों ने अपने तारणहार के दर्शन किए। ये सभी स्वर्गदूत प्रभु येसु के जन्म के समय यहाँ उपस्थित थे।

ज्योतिषियों को भी चरवाहों ने मार्गदर्शन दिया, जिससे वे राजकुमार येसु के दर्शन कर पाए। इस प्रकार क्रिसमिस आज्ञाकारिता का पर्व भी है। उपरोक्त सभी पात्रों ने ईश्वर की आज्ञा का पालन किया। येसु ने हमारे उद्धार के लिए मानवरूप में जन्म लिया। हमारी जिम्मेदारी है कि उसके जन्म व बलिदान को व्यर्थ न जाने दें, तब ही यह क्रिसमस पर्व सार्थक होगा।

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