ईसा मसीह के जन्म, सूली और उनके जीवन काल के 13 से 29 वर्ष के बीच के जीवन एवं सूली के बाद के जीवन पर हमेशा चर्चा होती रही है। इसको लेकर विवाद भी है। कई शोधकर्ता उनके भारत भ्रमण की बात भी करते हैं तो कुछ शोधकर्ता यह मानते हैं कि उनका चेहरा वैसे नहीं था जैसा कि चित्रों में दिखाया जाता है। इसी बीच उनके जन्म के समय को लेकर भी विवाद उठा है।
बाइबल में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अरली क्रिश्चियानिटी में भी इसका कोई जिक्र नहीं मिलता है। बाइबल में यीशु मसीह के जन्म की कोई निश्चित तारीख नहीं दी गयी है। बाइबल में यीशु के जन्म के समय की दो घटनाओं का जिक्र मिलता है जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि उनका जन्म कब हुआ था।
1.पहली घटना यह कि यीशु के जन्म के कुछ ही समय पहले सम्राट ऑगस्टस ने यह आदेश जारी किया कि उसके राज्य के सभी लोग अपना अपना नाम दर्ज कराएं। यीशु के माता पिता नाम दर्ज कराने ही जा रहे थे कि रास्ते में यीशु का का जन्म हुआ।-। (लूका 2:1-3)। चूकिं अधिकर लोगों को पहले पैदल ही सफर करना होता था तो यह संभव नहीं था कि ऑगस्टस कड़ाके की ठंड में यह आदेश देता। इससे पहले से भड़की जनता और भड़क जाती।
2.दूसरी घटना घटना के अनुसार उस वक्त चरवाहे मैदानों में रहकर रात को अपने झुंडों (भेड़ों) की रखवाली कर रहे थे।- (लूका 2:8)। इसका यह मतलब यह कि उस वक्त कड़ाके की ठंड नहीं थी। 'डेली लाइफ इन द टाइम ऑफ जीसस' नामक किताब में यह उल्लेख मिलता है कि ‘फसल के एक हफ्ते पहले’ यानी करीब मार्च के मध्य से लेकर नवंबर के मध्य तक भेड़ों के झुंड खुले मैदान में रहते थे। यही किताब में लिखा है कि 'सर्दियों के दौरान वे (चरवाहें और भेड़े) अंदर ही रहते थे।
पिछले वर्ष बीबीसी पर एक रिपोर्ट छपी थी उस रिपोर्ट के अनुसार यीशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर एकराय नहीं है। कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते। और अगर गड़रिये मैथुन काल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता।
इतिहासकारों के अनुसार रोमन काल से ही दिसंबर के आखिर में पैगन परंपरा के तौर पर जमकर पार्टी करने का चलन रहा है। यही चलन ईसाइयों ने भी अपनाया और इसे नाम दिया 'क्रिसमस'। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के हवाले से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि चर्च के नेतृत्व कर्ता लोगों ने यह तारीख शायद इसलिए चुनी ताकि यह उस तारीख से मेल खा सके, जब गैर-ईसाई रोमन लोग सर्दियों के अंत में 'अजेय सूर्य का जन्मदिन मनाते' थे।'
हालांकि यह तय करना अभी बाकी है कि यीशु का जन्म सदियों में हुआ था या वसंत में?