अंडा मांस तो छोड़िए, पिता के निधन के बाद 2 वक्त की रोटी के लिए अंचिता को करना पड़ता था संघर्ष

शुक्रवार, 12 अगस्त 2022 (13:04 IST)
कोलकाता: हाल में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारोत्तोलक अंचिता शेयुली की मां ने उनकी ट्राफियां और पदकों को अपनी अधफटी साड़ी में लपटेकर दो कमरों के घर में मौजूद एकमात्र बेड के नीचे रखा हुआ है।शेयुली का घर यहां से 20 किमी दूर हावड़ा जिले देयुलपुर में हैं।

जब यह भारोत्तोलक बर्मिंघम में समाप्त हुए राष्ट्रमंडल खेलों से 73 किग्रा वजन वर्ग का स्वर्ण पदक लेकर सोमवार सुबह को घर लौटा तो उनकी मां पूर्णिमा शेयुली ने एक छोटे से स्टूल पर इन ट्राफियों और पदकों को रखा हुआ था।उनकी मां ने अपने छोटे बेटे से अचिंता के अब तक जीते गये पदक और ट्राफियों को रखने के लिये एक अलमारी खरीदने के लिये कहा है।

पहले ही पता था बेटा जीतेगा पदक

पूर्णिमा शेयुली ने पीटीआई से कहा, ‘‘मैं जानती थी कि जब अचिंता आयेगा तो पत्रकार और फोटोग्राफर हमारे घर आ रहे होंगे। इसलिये मैंने ये पदक और ट्राफियां एक स्टूल पर सजा दीं ताकि वे समझ सकें कि मेरा बेटा कितना प्रतिभाशाली है। मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि वह देश के लिये स्वर्ण पदक जीतेगा। ’’

उन्होंने अपने पति जगत शेयुली के 2013 में निधन के बाद अपने बेटों -आलोक और अचिंता- का पालन पोषण करने के लिये कितनी ही मुश्किलों का सामना किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘आज, मेरा मानना कि भगवान ने हम पर अपनी कृपा करना शुरू कर दिया है। हमारे घर के बाहर जितने लोग इकट्ठा हुए हैं, उससे दिखता है कि समय बदल गया है। किसी को भी अहसास नहीं होगा कि मेरे लिये दोनों बेटों को पालना कितना मुश्किल था। ’’

He is Anchita Sheuli.

He has struggled a lot in his life.
'He would cry for eggs, meat but we couldn't afford it' says his mother.

He also lost his father in 2013, when he was just 12 years old. He is a champ! @DeepaAthlete @Media_SAI@ianuragthakur @AshwiniMS_TNIE
1/n pic.twitter.com/gUScJKDVZc

— Sai Ram B  (@SaiRamSays) August 3, 2022
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उन्हें रोज खाना भी मुहैया नहीं करा पाती थी। ऐसे भी दिन थे जिसमें वे बिना खाये सो गये थे। नहीं पता कि मैं खुद को बयां कैसे करूं और क्या कहूं। ’’अचिंता का भाई भी भारोत्तोलक है। उनकी मां ने कहा कि उनके बेटों को साड़ियों पर जरी का काम करने के अलावा सामान चढ़ाना और उतारने का का भी करना पड़ता था।

दोनों भाईयों ने इतनी मुश्किलों के बावजूद भारोत्तोलन जारी रखा। उनकी मां ने कहा, ‘‘मेरे पास अपने बेटों को काम पर भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। वर्ना हमारे लिये जीवित रहना ही मुश्किल हो गया होता। ’’’

अंचिता ने मां और कोच को दिया जीत का श्रेय

बीस साल के भारोत्तोलक अचिंता ने अपनी उपलब्धि के लिये मां और कोच अस्तम दास को श्रेय दिया था।
उन्होंने नयी दिल्ली से पीटीआई से कहा, ‘‘अच्छा काम करके घर लौटना अच्छा महसूस हो रहा है। मैंने जो भी हासिल किया है, वो मेरी मां और मेरे कोच अस्तम दास की वजह से ही है। दोनों ने मेरी जिंदगी में अहम भूमिका निभायी है और मैं आज जो कुछ भी हूं, इन दोनों की वजह से ही हूं। ’’

यह भारोत्तोलक दिल्ली में एक बैठक में हिस्सा लेने के लिये बुधवार को तड़के ही रवाना हो गया।उन्होंने कहा, ‘‘जिंदगी मेरे और मेरे परिवार के लिये कभी भी आसान नहीं रही। पिता के निधन के बाद हमें ‘एक जून की रोटी’ के लिये कमाई करनी पड़ी। अब हम दोनों भाईयों ने कमाना शुरू किया है लेकिन हमारी आर्थिक समस्या को सुलझाने के लिये इतना ही काफी नहीं है। अगर सरकार हमारी समस्या देखे और हमारी मदद करे तभी इसमें सुधार हो सकता है। ’’

Gold no.3 for India  in #CWG2022 #anchitasheuli
Proud Moment pic.twitter.com/TeVkgLSSLK

— KadakkRee (@KadakkRee) August 1, 2022
उनके कोच अस्मत दास से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने पूरा श्रेय अचिंता को दिया। उन्होंने कहा, ‘‘वह मेरे बेटे जैसा है। वह अन्य से अलग है। मैंने उसे आसानी से हार मानते हुए नहीं देखा जिससे उसे इतनी मुश्किलों के बावजूद अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद मिली। ’’ (भाषा)

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी