मुंबई। देश में कोरोना वायरस महामारी के रोकथाम के लिए जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो मुंबई के प्रसिद्ध डब्बावाले अपने गांव की ओर लौट गए और वहीं जीवन चलाने के लिए रास्ते तलाश करने लगे। उनमें से कुछ ने खेती का रास्ता अपनाया लेकिन चक्रवाती तूफान निसर्ग उनके घरों के साथ-साथ खेतों को भी नुकसान पहुंचाया। इन लोगों अब भविष्य की चिंता सता रही है।
तालेकर ने कहा, हमारी सेवाएं पूरी तरह से उपनगरीय ट्रेनों पर निर्भर है। हम लोकल ट्रेनों का परिचालन शुरू होने तक सेवा शुरू नहीं कर सकते हैं। कौन जानता है कि ट्रेन सेवा कब शुरू होगी, जुलाई या अगस्त में? ग्राहकों की प्रतिक्रिया कैसी होगी, यह भी अनिश्चित है।
उन्होंने कहा, शहर के ज्यादातर इमारतों, हाउसिंग सोसाइटिज ने रिश्तेदारों तक के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। क्या वे हमें खाना पहुंचाने और डब्बे ले जाने की मंजूरी देंगे, भले ही हम कितना भी मास्क और सेनिटाइजर के इस्तेमाल का ख्याल रखें।
मुंबई में किसी भी आम दिन में 5,000 डब्बावाले कार्यालय जाने वालों को खाना पहुंचाते रहे हैं। ये सभी समय के पाबंद और तेजी के लिए जाने जाते हैं। 1998 में फॉर्ब्स पत्रिका ने इन्हें ‘सिक्स सिग्मा’ रेटिंग से नवाजा था। (भाषा)