Life in the times of corona: मद्धिम जरूर हुआ है लेकिन डूब नहीं सकता ‘ब्रिटेन का सूरज’

ब्रिटेन का सूरज मद्धिम पड़ रहा है, इसे जल्दी ही अपनी पूर्ण आभा के साथ लौटना होगा। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन कोविड-19 से लगातार जूझते हुए अस्पताल में भर्ती किए गए हैं।

जिस दिन प्रधानमंत्री के भी कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबर आई, कई लोग बहुत फूट-फूट कर रोए, बहुतों का आत्मविश्वास धराशायी हो गया, कुछ लोग अवसाद की गिरफ़्त में आ गए। इतनी पीड़ा तो देश की जनता ने तब भी महसूस नहीं की थी, जब प्रिंस चार्ल्स के संक्रमित होने की ख़बरें आई थीं, क्योंकि लोग जानते थे कि क्वीन और प्रधानमंत्री अब भी लोगों के तारणहार बनकर दृढ़ता से उनके पीछे खड़े हैं।
 
यहां लाखों लोग करीब दो सप्ताह से अपने-अपने घरों में बंद हैं, कुछ महत्वपूर्ण कर्मचारी जैसे बुज़ुर्गों की देखभाल करते केयर वर्कर, डॉक्टर, नर्स, हॉस्‍प‍िटल स्टाफ़, फार्मासिस्ट, बस और लॉरी ड्राइवर, डाक विभाग रॉयल मेल व सुपरस्टोर में काम करने वाले, पुलिस के और अन्य आपातकालीन विभाग के लोग ही अपने वाहन के साथ सड़कों पर अनथक भागते दिखते हैं, ये जानते हुए भी कि मौत हर वक्त इन्हें अपने जाल में फंसाने की ताक़ में बैठी है।

इन दो सप्ताहों के अप्रत्याशित लॉकडाउन के बाद कई लोगों ने इन स्थितियों से जुड़े सवालों का जवाब देने की कोशिश की है। एक हेड टीचर की 80 वर्षीय बुज़ुर्ग मां घर पर आजकल बिल्कुल अकेली हैं जिनकी देखभाल करने वाला अब कोई नहीं, क्योंकि पड़ोस में रह रही उनकी बेटी लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रही हैं और खुद अब भी कामकाजी होते हुए, अपनी मां से दूरी बना रही हैं।

चूंकि वे खुद तो संक्रमण का खतरा उठा ही रही हैं तो उम्र के आखिरी पड़ाव पर बैठी अपनी मां को हर खतरे से दूर रखना चाहती हैं। अब वे केवल फेसटाइम के जरिए अपनी मां का हाल जान रही हैं और उन्हें मुस्कुराता हुआ देखकर सुकून की एक लंबी सांस भर लेती हैं।

एक अन्य टीचर ने बताया कि बच्चों को ऑनलाइन अध्ययन में व्यस्त रखने के लिए तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्हें ऐसे कई कार्य सौंपे गए हैं जो उन्हें इस तरह से व्यस्त रखें कि मनोवैज्ञानिक तौर पर वे न केवल मज़बूत रहें बल्कि उनका बौद्धिक विकास भी अनवरत जारी रहे। बच्चे ऑनलाइन अपनी टीचर से जुड़े हैं, उसके सुझाव और आदेशों का पालन कर रहे हैं। बच्चे ऊब, आलस्य से दूर होकर प्रकृति, पारिवारिक एकता, सहयोग और निस्वार्थ प्रेम को पहले से काफ़ी बेहतर ढंग से समझ रहे हैं। इस महामारी ने शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र से ज़रूर पंगा लिया है लेकिन मन का प्रतिरक्षा तंत्र अब भी इससे अछूता और अक्षुण्ण है।

देश में कुछ म्यूसीशियन जो स्ट्रीट पर अपने संगीत से मनोरंजन कर आजीविका का बंदोबस्त करते थे, संकट में हैं। उनके बच्चे छोटे से घरों से, जिनमें खिड़कियां सड़कों पर खुलती हैं, खाली सड़कों को अपना गीत सुनाते हैं। जब इससे मन भर जाता है तो फुटपाथ को अपना प्लेग्राउंड बना लेते हैं। ऐसे ही और रोज़गारों से जुड़े लोग सरकार और उसकी योजनाओं से मिलने वाले लाभ को बहुत उत्साह और आशा से देखते हैं।

हसीना नामक एक युवती महत्वपूर्ण विभाग की कर्मचारी हैं, इस वक़्त खुद प्रेग्नेंट हैं और लगभग दो वर्ष के एक बच्चे को उसके पापा की देखभाल में छोड़कर जाती हैं। उनके पास काम न करने या अवकाश लेने का अवसर है लेकिन वे इस वक़्त को कड़ा इम्तिहान मानकर चलती हैं, साथ ही समाज और देश के कल्याण को सर्वोपरि मानती हैं। उनकी बस एक ही समस्या है कि घर आकर अब पहले की तरह अपने बेटे को गले नहीं लगा सकतीं। ब्रिटेन में ऐसे निस्वार्थ मानवता की सेवा में समर्पित कई उदाहरण हैं।

आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने हालात की नज़ाकत समझते हुए एक शिफ्ट में डॉक्टर के तौर पर काम करने का निर्णय लिया है। राजनीति में आने से पहले वे डॉक्टर ही हुआ करते थे। इसलिए तमाम चुनौतियों से निपटने की साझेदारी में उन्होंने अपने आपको फिर से इस काम के लिए रजिस्टर किया है।

आज जिजीविषा, जुनून, दृढ़ता और विवेक से काम लेते हुए संवेदनशील लोगों का समूह ही ब्रिटेन से संक़ट के बादल छांट सकता है। अब तक ख़बर आ चुकी है कि प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को आईसीयू में शिफ़्ट किया गया है और उनकी हालत बिगड़ रही है। ब्रिटेन को इस वक़्त सहानुभूति की नहीं दुआओं और खालिस मदद की दरकार है। ब्रिटेन का सूरज इतनी आसानी से डूब नहीं सकता, इस देश ने पहले भी बड़ी समस्याओं और चुनौतियों का डटकर सामना किया है।

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