8 दिनों में 312 की कोरोना से मौत के बाद सवाल, क्या लाकडाउन से ही इसे रोका जाएगा?

सुरेश एस डुग्गर

शनिवार, 8 मई 2021 (14:49 IST)
जम्मू। मई महीने के पहले 8 दिनों में 312 लोगों की जान कोरोना ले चुका है। पिछले महीने में 30 दिनों में 289 लोगों की जान गई थी। ऐसे में बदतर होते हालात और चर्रमर्रा चुकी चिकित्सा व प्रशासनिक व्यवस्थाओं के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कोरोना से लड़ने को सिर्फ लाकडाउन का ही हथियार बचा है।

जम्मू कश्मीर के 16 जिलों में गत सोमवार से लाकडाउन समाप्त हो गया लेकिन जम्मू समेत चार जिलों में इसे पहले गुरुवार और उसके बाद अब सोमवार सुबह 7 बजे तक बढ़ा दिया गया है। गत बुधवार 7 बजे से सांबा जिले में भी लाकडाउन लागू है। ऐसे में इस समय प्रदेश के 5 जिले लाकडाउन में है लेकिन इसके बावजूद कोविड-19 के केसों के ग्राफ में न स्थिरता नजर आती दिख रही है और न ही कहीं कोई गिरावट।

जम्मू कश्मीर के सरकारी अस्पतालों में बिस्तर लगातार भरते जा रहे हैं। प्रमुख अस्पताल लगभग मरीजों से भर चुके हैं। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू में 419 बिस्तरों की क्षमता कर दी गई है मगर इसमें से 410 पर मरीज भर्ती हैं।

वहीं सीडी अस्पताल में 110 में 85, गांधीनगर अस्पताल में 76 में से 72 , जीएमसी राजौरी में 150 में से 100 बिस्तरों पर मरीज भर्ती हैं। जम्मू संभाग में कुल 2142 बिस्तरों में 1185 पर मरीज भर्ती हैं। वहीं कश्मीर में एसएमएचएस में 232 ममें से 209, स्किम्स सौरा में सभी 276, सीडी में 94 में से 93 बिस्तरों पर मरीज भर्ती हैं। कश्मीर में 2260 में से 1426 बिस्तरों पर मरीज भर्ती हैं।

कोरोना का दूसरा सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि लाकडाउन से कश्मीर में मानसिक रोगों के मामले भी बढ़े हैं। लोगों ने अपने आप को घरों में कोविड के डर के कारण चारदीवारी में बंद किया हुआ है। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि इससे लोगों में मानसिक रोग बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है।

मनारोग अस्पताल श्रीनगर के एचओडी डा. मोहम्मद मकबूल डार का कहना है कि लगातार घर में बैठने और कोरोना के भय के कारण मानसिक रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। लाकडाउन लगने से घाटी में मानसिक रोग बढ़ रहे हें। पांच तरह की समस्या होती है। इनमें अवसाद, चिंता, अपने आप को समाज से अलग रहना तथा भय प्रमुख हैं। अवसाद में रहने वाले मरीजों का मूड हमेशा खराब रहता है।

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