संक्रमण की त्रासदी से जूझ रही दुनिया को सिर्फ कोरोना वायरस की वैक्सीन का इंतजार है। यह इंतजार हालांकि बहुत हद तक खत्म हो चुका है। खबर है कि अमेरिका की प्रमुख दवा कंपनी फाइजर को कोरोना के खिलाफ असरकार वैक्सीन बनाने में सफलता मिली है। फाइजर इंक ने 18 नवंबर 2020 को दावा किया कि उनके द्वारा बनाई गई कोरोना वैक्सीन अपने अंतिम चरण के ट्रायल में 95 फीसदी कारगर साबित हुई है।
वैक्सीन के इस काम को अंतिम रूप देने के लिए करीब 43 हजार वॉलिंटियर्स पर इसे आजमाया गया। इस परीक्षण के बाद वैक्सीन के अच्छे-बुरे परिणाम भी सामने आए हैं।
कंपनी के मुताबिक सुरक्षा संबंधी जरूरी दो महीने का डाटा इकट्ठा कर लिया है और जल्द ही अमेरिकी नियामक संस्था के पास वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल के लिए आवेदन किया जाएगा।
वैक्सीन को लेकर हैं कई सवाल!
हालांकि वैक्सीन को लेकर कई सवाल भी हैं, जिनके बारे में जानना बेहद जरुरी है। अभी दुनिया में कौन-कौन से देशों की कंपनियां वैक्सीन पर काम कर रही हैं, वैक्सीन कैसे काम करती है, भारत में यह किस तरह से कारगर होगी, कितने तापमान पर इसे रखा जाता है, भारत में यह कैसे मैनेज और वितरित होगी, क्या इसके कोई दुष्परिणाम है आदि।
अब तक कितने देश, कितनी कंपनियां कर चुकी वैक्सीन पर काम?
वैक्सीन बनाने की दिशा में चल रहे प्रयासों की बात करें, तो दुनियाभर में अब तक कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो चुके हैं।
दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में भी ट्रायल हो चुका है।
भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड और जायडस कैडिला भी अपना परीक्षण कर चुका है। इसे को-वैक्सीन का नाम दिया गया था।
इसके अलावा तक़रीबन आधा दर्जन भारतीय कंपनियां कोविड-19 के वायरस के लिए वैक्सीन विकसित करने में अभी भी जुटी हुई हैं।
यूरोप में दुनिया का पहला ट्रायल ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड में शुरू हुआ था। ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन का पहला ह्यूमन ट्रायल क़ामयाब रहा था। नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ और मोडेरना इंक में डॉ. फाउची और उनकी टीम ने इस वैक्सीन को विकसित किया था।
इसके अलावा रूस के इंस्टिट्यूट फ़ॉर ट्रांसलेशनल मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी के डायरेक्टर वादिम तरासोव ने दावा किया था कि रुस ने दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है
ये भी कर रहे वैक्सीन पर काम
MRNA-1273 वैक्सीन
मॉडर्ना थेराप्युटिक्स एक अमरीकी बॉयोटेक्नॉलॉजी कंपनी है, जिसका मुख्यालय मैसाचुसेट्स में है। इस वैक्सीन के दो क्लीनिकल ट्रायल पूरे हो चुके हैं।
INO-4800 वैक्सीन
अमरीकी बॉयोटेक्नॉलॉजी कंपनी इनोवियो फ़ार्मास्युटिकल्स का मुख्यालय पेन्सिल्वेनिया में है। इनोवियो फ़ार्मास्युटिकल्स की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, पहले फ़ेज़ के नतीजे सकारात्मक रहे हैं।
AD5-nCoV वैक्सीन
चीनी बॉयोटेक कंपनी कैंसिनो बॉयोलॉजिक्स वैक्सीन पर काम कर रहा है। इस प्रोजेक्ट में कैंसिनो बॉयोलॉजिक्स के साथ इंस्टीट्यूट ऑफ़ बॉयोटेक्नॉलॉजी और चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ मिलिट्री मेडिकल साइंसेज़ भी काम कर रहे हैं।
LV-SMENP-DC वैक्सीन
चीन के ही शेंज़ेन जीनोइम्यून मेडिकल इंस्टीट्यूट में एक और ह्यूमन वैक्सीन LV-SMENP-DC का परीक्षण भी चल रहा है। इन सभी वैक्सीन के अलग-अलग चरणों के ट्रायल्स जारी हैं।
मॉडर्ना और फाइजर-बायोटेक
फिलहाल अमेरिकी बायोटेक कंपनी मॉडर्ना और फाइजर-बायोटेक तीसरे चरण की सफलता दुनिया के लिए उम्मीद बनकर उभरी है।
फाइजर जर्मनी की उसकी पार्टनर कंपनी बायोएनटेक एसई के साथ मिलकर वैक्सीन पर काम कर रही है। यह वैक्सीन हर उम्र और नस्ल के लोगों के लिए प्रभावी है। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, जो एक संकेत है कि वैश्विक स्तर पर टीकाकरण किया जा सकता है। फाइजर के मुताबिक वैक्सीन 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में 94 फीसद तक प्रभावी असर दिखा रही है।
कलेक्शन, डिस्ट्रिब्यूशन तापमान और खुराक
फाइजर के मुताबिक फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना की वैक्सीन का कलेक्शन और परिवहनमायनस 70 डिग्री सेल्सियस तापमान पर होगा।
फाइजर और मॉडर्ना कंपनियों की वैक्सीनमें से मॉडर्ना की वैक्सीन 5 दिन रेफ्रिजरेटर तापमान पर और फाइजर की वैक्सीन 30 दिन रेफ्रिजरेटर तापमान पर रह सकती है, वहीं 12 घंटे तक कमरे के तापमान पर रखाव होगा।
जहां तक खुराक की बात है तो मॉडर्ना की वैक्सीन की तीन सप्ताह में दो खुराक होगी और फाइजर की चार सप्ताह में दो बार खुराक होगी।
क्या वैक्सीन से खतरा भी है?
वैक्सीन की उम्मीद के साथ वैक्सीन को लेकर खतरों का अंदेशा भी बताया जा रहा है। फाइजर और मॉडर्ना के वैक्सीन mRNA टेक्नोलॉजी से बने हैं। इसे लेकर कई वैज्ञानिक सवाल उठा रहे हैं। रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर का कहना है कि इस टेक्नोलॉजी में वैक्सीन सीधे-सीधे मरीज के जेनेटिक मटेरियल के साथ छेड़छाड़ करता है। उस व्यक्ति के जेनेटिक मटेरियल को बदल देता है। यह प्रक्रिया अनैतिक है। इससे जो जेनेटिक नुकसान पहुंचेगा, उसे ठीक करना मुश्किल हो जाएगा। कैनेडी का कहना है कि वैक्सीन के लक्षणों का आप इलाज नहीं कर सकेंगे।
हालांकि, कई विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि वैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल्स के आधार पर लाइसेंस दिया जाता है, जिसमें शॉर्ट-टर्म सेफ्टी देखी जाती है। इम्यून रिस्पॉन्स पैदा करने की क्षमता देखी जाती है। यह भी देखा जाता है कि वह किसी वायरस से बचाने में सफल हो रहे हैं या नहीं। फाइजर/बायोएनटेक के ट्रायल्स में 43,538 लोगों को वैक्सीन लगाई गई। आधे लोगों को वैक्सीन लगाई और आधे लोगों को प्लेसेबो। अप्रैल और मई में ही डोज दे दिए गए थे। अब तक उन्हें कोई साइड-इफेक्ट नहीं हुए हैं।
कैसे काम करती है वैक्सीन? विज्ञानी वायरस के जनेटिक कोड से पता लगाया जाता है कि कोशिकाओं से क्या विकसित होगा। इसके बाद उसे लिपिड में कोट किया जाता है। जिससे कि वो शरीर की कोशिकाओं में आसानी से प्रवेश कर सके।
वैक्सीन कोशिकाओं में एंट्री करती है और उन्हें कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटिन पैदा करने के लिए प्रेरित करती है।
यह रोग प्रतिरोधी प्रणाली को एंटीबॉडी पैदा करने और टी-सेल को एक्टिव करने के संकेत देती है, जिससे संक्रमित कोशिकाओं को खत्म किया जा सके।
इस तरह मरीज कोरोना वायरस से लडता है और एंटी बॉडी और टी-सेल संक्रमण को खत्म करती है।
भारत में कैसे होगा वितरण और रखाव
जैसा कि कहा जा रहा है फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन परिवहन मायनस 70 डिग्री पर ही हो सकेगा, ऐसे में भारत, अफ्रीका समेत और भी दूसरे गर्म देशों में इसका एक जगह से दूसरी जगह तक परिवहन कैसे होगा, इस बारे में अभी कोई स्थिति स्पष्ट नहीं है। यानि अगर दिल्ली से वैक्सीन को वहां से 200 किमी की दूरी पर किसी शहर या गांव में भेजना होगा तो क्या साधन और उसके स्टोरेज के लिए क्या उपकरण का इस्तेमाल होगा। इस बारे में अभी कोई तैयारी या योजना नजर नहीं आ रही है। वितरण को लेकर भी संशय है। कहां पहले वितरित होगी, किन लोगों को पहले वैक्सीन दी जाएगी, डिस्ट्रिब्यूशन पॉलिसी क्या होगी, इस बारे में भी कोई चर्चा नहीं है।
किसने बनाई थी दुनिया की पहली वैक्सीन
इतिहास में प्लेग, चेचक, हैजा, टाइफाइड, टिटनेस , रेबीज, टीबी, पोलियो जैसी कई महामारी फैली थीं, जिनकी वजह से लाखों-करोड़ों लोगों की जान गई थी। अध्ययन और शोध बताते हैं कि किसी भी संक्रामक बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण बहुत ही प्रभावी और कारगर उपाय है।
चेचक, पोलियो और टिटनस जैसे रोगों से निजात टीकाकरण से ही मिली थी। चेचक दुनिया की पहली बीमारी थी, जिसके टीके की खोज हुई। 1976 में अंग्रेज चिकित्सक एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया।
ए़डवर्ड जेनरवह एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे। विश्व में इनका नाम इसलिए भी प्रसिद्ध है कि इन्होंने 'चेचक' के टीके का आविष्कार किया था। एडवर्ड जेनर के इस आविष्कार से आज करोड़ों लोग चेचक जैसी घातक बीमारी से ठीक हो रहे हैं।
रेबीज भी एक ऐसी बीमारी है, जिसका संक्रमण जानलेवा होता है। प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने रेबीज के टीके का सफल परीक्षण किया। उनकी इस खोज ने मेडिकल की दुनिया में क्रांति ला दी और मानवता को एक बड़े संकट से बचा लिया था। उन्होंने डिप्थेरिया, टिटनेस, एंथ्रेक्स, हैजा, प्लेग, टाइफाइड, टीबी समेत कई बीमारियों के लिए टीके विकसित किए थे।