ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से हैल्थ मैनेजमेंट में मास्टर कर चुके नवीन कुमार ने वेबदुनिया से बातचीत में बताया कि ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगले साल के अंत तक कोविड-19 की वैक्सीन की 100 मिलियन खुराक का उत्पादन होगा। क्योंकि क्वीन्सलैंड के शोधकर्ताओं ने दिग्गज दवा कंपनी सीएसएल के साथ बड़ी साझेदारी की है। यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड (यूक्यू) एवं सीएसएल में साझेदारी के तहत सीईपीआई से सौदा प्रयोगशाला में वैक्सीन के शुरुआती परिणामों को लेकर हुआ है। इसका उद्देश्य घरेलू वैक्सीन का तेजी से विकास करना है।
नवीन कहते हैं कि कोरोना वैक्सीन पर दुनिया में कई संगठन काम कर रहे हैं। फिर भी अभी यह कहना कठिन है कि कब तक दवा का विकास होगा। हालांकि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ओर से किए जा रहे काम पर भरोसा किया जा सकता है। मुझे लगता है कि आने वाले 6 महीने में इसके टीके का विकास होकर यह आम जन के लिए उपलब्ध हो जाएगा।
यह वायरस अन्य वायरस की तुलना में खतरनाक इसलिए है कि वैज्ञानिक समुदाय को इसके बारे में पहले से जानकारी नहीं थी। सीमित ज्ञान के कारण हम बहुत कमजोर हैं। इसके अतिरिक्त हमारे पास न तो कोई इसका उपचार है न ही वैक्सीन। हमारे पास एड्स के टीके भी नहीं हैं, लेकिन थोड़ी सावधानी से एड्स से बचा जा सकता है। इसके विपरीत कोरोना संक्रमण के साथ ऐसा नहीं है। इस वायरस की सबसे खतरनाक बात यह है कि यह अत्यधिक संक्रामक है। स्पर्श के माध्यम से यह फैल रहा है। कई शोधों के अनुसार यह वायरस भी कई प्रकार का है।
कुमार कहते हैं कि WHO ने रोग को महामारी घोषित करने में दिशानिर्देशों का तो पालन किया, लेकिन यह कई देशों के साथ पूर्णत: समन्वय स्थापित नहीं कर पाया। इसके अलावा चीन के प्रति भी इसका पक्षपात पूर्ण रवैया दिखाई दे रहा है।
संक्रमण रोकने के लिए उपयोग में लाई जा रही दवाओं के संबंध में नवीन कहते हैं कि प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चला है कि एचआईवी, गठिया, मलेरिया को रोकने में काम आने वाली दवाओं का उपयोग कोरोना संक्रमण में किया जा रहा है, लेकिन यह संपूर्ण इलाज नहीं है। यह 100 साल की आपदा में से एक है। इसलिए हमें अनुशासित, धैर्यवान एवं संगठित होकर इससे लड़ना चाहिए।