कोविड की महामारी के घातक रूप लेने एवं देशभर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की जानें जा रहीं हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार देश में ऑक्सीजन की कमी नहीं है लेकिन इसकी आपूर्ति को लेकर दिक्कत थी। इसे देखते हुए 15 अप्रैल के बाद रेलवे की रो-रो सेवा और हाल में भारतीय वायुसेना के परिवहन विमानों से द्रवीकृत मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति शुरू की गई है।
रेलवे के सूत्रों ने बताया कि मेडिकल द्रवीकृत ऑक्सीजन क्रायोजेनिक और खतरनाक रसायन होता है और इसका परिवहन अत्यधिक सावधानीपूर्वक करना पड़ता है। इस गैस के परिवहन करने के लिए बने टैंकर 40 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक की गति से नहीं चल पाते हैं क्योंकि गति को बढ़ाने या घटाने में बहुत झटका नहीं लगना चाहिए अन्यथा कोई दुर्घटना होने की आशंका रहती है।
रेलवे के सूत्रों ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार के अनुरोध के बाद रेलवे ने तुरंत काम शुरू कर दिया। कलंबोली में केवल 24 घंटे में रैंप बनाया गया। रो-रो सेवा के आवागमन के लिए रेलवे को कुछ स्थानों पर घाट सेक्शन, रोड ओवर ब्रिज, टनल, कर्व्स, प्लेटफॉर्म कैनोपीज़, ओवर हेड इक्विपमेंट आदि विभिन्न बाधाओं पर विचार करने के बाद एक खाका तैयार किया गया। यह तय किया गया कि 3320 मिलीमीटर ऊंचाई वाले टैंकर को टी-1618 फ्लैट वैगनों पर रखकर यह दुरूह कार्य किया जाएगा। इसके लिए वसई मार्ग उचित रहेगा।
चूंकि कलंबोली और विशाखपट्टनम के बीच की दूरी 1850 किमी से अधिक है, जो इन टैंकरों द्वारा केवल 50 घंटों में पूरी की गई थी। 100 से अधिक टन एलएमओ वाले 7 टैंकरों को 10 घंटे में लोड किया गया और केवल 21 घंटे में वापस नागपुर ले जाया गया। रेलवे ने कल नागपुर में 3 टैंकरों को उतार दिया है और शेष 4 टैंकर आज सुबह 10.25 बजे नासिक पहुंच गए यानी नागपुर से नासिक की दूरी केवल 12 घंटे में पूरा की।
इसी प्रकार से बोकारो से चली गाड़ी ने वाराणसी और लखनऊ में एलएमओ टैंकर पहुंचाए। ट्रेनों के माध्यम से ऑक्सीजन का परिवहन लंबा लेकिन तेज है। रेलवे द्वारा परिवहन में दो दिन लगते हैं जबकि सडक मार्ग द्वारा 3 दिन लगते हैं। ट्रेन दिन में 24 घंटे चलती है, ट्रक ड्राइवरों को रोड पर हाल्ट लेने की जरूरत होती है। इससे टैंकरों को रोजाना 10 घंटे तक ही चलाना संभव होता है।