नई दिल्ली। कोरोनावायरस (Coronavirus) के इस संकट में जहां बहुत से लोग दवाओं और अन्य जरूरी सामान को कई गुना ऊंचे दामों पर बेचकर मानवता को दागदार करने का काम कर रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र के कोल्हापुर में ऑटो चलाने वाले जितेन्द्र शिंदे इसे मानव मात्र की सेवा का अवसर मानकर हर दिन औसतन 40 जरूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाकर अपने मां-बाप की सेवा न कर पाने का मलाल कम कर रहे हैं।
जितेन्द्र शिंदे का फोन दिनभर घनघनाता है। कहीं किसी को अस्पताल जाना है तो जितेन्द्र उसे तत्काल अस्पताल पहुंचाते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी दूर जाना पड़े, मरीज ठीक हो जाए तो उसे खुशी-खुशी उसके घर भी पहुंचाते हैं, बदकिस्मती से कोरोना से पीड़ित किसी मरीज की मौत हो जाए और उसकी मृत देह को शमशान पहुंचाने वाला कोई न हो तो जितेन्द्र उसे उसके अंतिम पड़ाव तक भी ले जाते हैं और उसके धर्म के अनुसार उसके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करते हैं। यही नहीं प्रवासी मजदूरों को खाना खिलाने और उनकी घर वापसी में मदद के काम में भी जितेन्द्र बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
जितेन्द्र सिंह ने बताया कि वह मात्र 10 बरस के थे, जब उनके माता-पिता का देहांत हो गया। उन्हें इस बात का दुख हमेशा सालता रहा कि वे आखरी वक्त में अपने माता-पिता की सेवा नहीं कर पाए। कोरोना काल में उन्होंने मानवता की सेवा का बीड़ा उठाकर अपने दिल के इस बोझ को कम करने का प्रयास किया।
मदद के इस सिलसिले की शुरुआत के बारे में पूछने पर शिंदे बताते हैं कि मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह में उन्हें एक प्रवासी मजदूर का फोन आया, जिसे कोरोना के लक्षण थे। शिंदे उसे तत्काल कोल्कापुर के सीपीआर अस्पताल ले गए। कुछ दिन बाद उसी व्यक्ति का फोन दोबारा आया और उसने बताया कि वह कोरोना को मात देने में कामयाब रहा।
इस एक कॉल के बाद शिंदे को वह सुकून मिल गया, जिसकी उन्हें बरसों से तलाश थी। फिर तो यह सिलसिला ही चल निकला। दिन हो या रात शिंदे मदद मांगने वाले को निराश नहीं करते और आपदा में फंसे किसी भी मजबूर की मदद करने का अवसर हाथ से जाने नहीं देते।(भाषा)