ब्रिस्बेन। नेचर माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में मानव आंत में जीवित वायरस की 54118 प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनमें से 92 प्रतिशत अब से पहले अज्ञात मानी जाती थीं। कैलिफोर्निया स्थित ज्वाइंट जीनोम इंस्टिट्यूट और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के हमारे साथियों ने पाया कि इनमें से अधिकतर प्रजातियां बैक्टीरिया खोर होती हैं। ये वायरस बैक्टीरिया को 'खाते' हैं, लेकिन मानव कोशिकाओं पर हमला नहीं कर सकते।
हममें से अधिकांश लोग जब वायरस का नाम सुनते हैं तो हम उन जीवों के बारे में सोचने लग जाते हैं जो हमारी कोशिकाओं को कंठमाला, खसरा या फिलहाल मौजूद कोविड-19 जैसी बीमारियों से संक्रमित करते हैं। हमारे शरीर में और विशेषकर पेट में इन सूक्ष्म परजीवियों की एक बड़ी संख्या है, जो उनमें पाए जाने वाले रोगाणुओं को लक्षित करती है।
हाल ही में हमारी आंत में रहने वाले सूक्ष्म जीवों (माइक्रोबायोम) के बारे में जानने में बहुत रुचि पैदा हुई है। ये सूक्ष्म जीव न केवल भोजन को पचाने में हमारी मदद करते हैं, बल्कि इनमें से कई की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
वे रोगजनक बैक्टीरिया से हमारी रक्षा करते हैं, हमारे मानसिक स्वास्थ्य को व्यवस्थित करते हैं, बाल अवस्था में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं और वयस्क होने पर प्रतिरक्षा नियमन में निरंतर भूमिका निभाते हैं।
यह कहना उचित है कि मानव आंत अब ग्रह पर सबसे अच्छी तरह से अध्ययन किया जाने वाला सूक्ष्म जीव पारिस्थितिकी तंत्र है। फिर भी उसमें पाई जाने वाली 70 प्रतिशत से अधिक सूक्ष्म जीव प्रजातियां अभी तक प्रयोगशाला में विकसित नहीं हुई हैं।
हमारे नए अनुसंधान में, हमने और हमारे सहयोगियों ने 24 अलग-अलग देशों के लोगों से लिए गए मल के नमूनों-मेटाजेनोम से कम्प्यूटेशनल रूप से वायरल अनुक्रमों को अलग किया। हम इस बात का अंदाजा लगाना चाहते थे कि मानव मल में वायरस किस हद तक अपनी जगह बना चुके हैं।
इस प्रयास के परिणामस्वरूप मेटागेनोमिक गट वायरस कैटलॉग बनाया गया, जो इस प्रकार का अब तक का सबसे बड़ा संसाधन है। इस कैटलॉग में 189,680 वायरल जीनोम की जानकारी दी गई है, जो 50,000 से अधिक विशिष्ट वायरल प्रजातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उल्लेखनीय रूप से, इन वायरल प्रजातियों में से 90 फीसदी से अधिक विज्ञान के हिसाब से नई हैं। वे सामूहिक रूप से 450,000 से अधिक अलग-अलग प्रोटीन को एनकोड करती हैं। हमने विभिन्न विषाणुओं की उप-प्रजातियों का भी अध्ययन किया और पाया कि अध्ययन में शामिल किए गए 24 देशों में कुछ चौंकाने वाले पैटर्न देखे गए।(द कन्वरसेशन)