Supreme court ने कहा, प्रवासी मजदूरों के स्वास्थ्य और प्रबंधन के मुद्दों पर वह विशेषज्ञ नहीं

भाषा

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020 (15:12 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोरोना वायरस महामारी के मदेनजर 21 दिन के लॉकडाउन की वजह से पलायन करने वाले कामगारों के स्वास्थ्य और उनके प्रबंधन से जुड़े मुद्दों से निबटने के विशेषज्ञ नहीं है और बेहतर होगा कि सरकार से जरूरतमंदों के लिए हेल्पलाइन शुरू करने का अनुरोध किया जाए। 
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
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पलायन करने वाले कामगारों के जीवन के मौलिक अधिकार की रक्षा और लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार हुए श्रमिकों को उनका पारिश्रमिक दिलाने के लिए सामाजिक कार्यकताओं हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज ने दायर की थी। 
 
शीर्ष अदालत ने इससे पहले एक जनहित याचिका पर सरकार से जवाब मांगा था और उसने इस स्थिति से निबटने के बारे में उसके जवाब पर संतोष व्यक्त किया था। पीठ ने कहा था कि सरकार स्थिति पर निगाह रखे है और उसने इन कामगारों की मदद के लिए हेल्पलाइन भी शुरू की है।
 
पीठ ने इस याचिका की सुनवाई 13 अप्रैल के लिए स्थगित कर दी और कहा कि हम सरकार के विवेक पर अपनी इच्छा नहीं थोपना चाहते। हम स्वास्थ्य या प्रबंधन के विशेषज्ञ नहीं है और सरकार से कहेंगे कि शिकायतों के लिए हेल्पलाइन बनाए। पीठ ने कहा कि वह इस समय बेहतर नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती और वैसे भी अगले 10-15 दिन के लिए नीतिगत फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती।
 
इससे पहले सुनवाई शुरू होते ही याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि 4 लाख से अधिक कामगार इस समय आश्रयगृहों में हैं और यह कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए परस्पर दूरी बनाने का मखौल बन गया है।
 
उन्होंने कहा कि अगर उन्हें आश्रयगृहों में रखा जा रहा है और उनमें से किसी एक व्यक्ति को भी कोरोना वायरस का संक्रमण हो गया तो फिर सारे इसकी चपेट में आ जाएंगे। उन्होंने कहा कि इन कामगारों को अपने अपने घर वापस जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। उनके परिवारों को जिंदा रहने के लिए पैसे की जरूरत है, क्योंकि वे इसी पारिश्रमिक पर निर्भर हैं।
 
भूषण ने कहा कि 40 फीसदी से ज्यादा कामगारों ने पलायन करने का प्रयास नहीं किया और वे शहरों में अपने घरों में रहे रहे हैं लेकिन उनके पास खाने-पीने का सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं है। इस पर पीठ ने कहा कि उसे बताया गया है कि ऐसे कामगारों को आश्रयगृहों में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है और ऐसी स्थिति में उन्हें पैसे की क्या जरूरत है?
 
केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार स्थिति पर निगाह रखे है और उसे मिलने वाली शिकायतों पर ध्यान भी दे रही है। इसके लिए कॉल सेंटर बनाया गया है। गृह मंत्रालय और मंत्री हेल्पलाइन की निगरानी भी कर रहे हैं।
 
इस दौरान पीठ ने कहा कि न्यायालय ऐसी शिकायतों की निगरानी नहीं कर सकता कि किसी आश्रयगृह में कामगारों को दिया गया भोजन खाने योग्य नहीं था। (भाषा)

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