देशभर में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है। कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या के आगे स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। मरीजों के लिए अस्पतालों में बेड्स नहीं है, ऑक्सीजन की कमी है। यहां तक कि जीवन रक्षक दवाओं के लिए भी मरीजों के परिजन दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
उनकी मजबूरी ना तो ब्यूरोक्रेट्स समझ रहे हैं और ना ही नेता। जहां से भी ऑक्सीजन, इंजेक्शन और दवाएं मिलने की खबर आती है, तड़पते कोरोना मरीज को राहत पहुंचाने की आस में परिजन उस दर पर पहुंच जाते हैं। हालांकि अधिकांश लोग इस भागदौड़ के बाद भी हताश ही होते हैं।
क्या कसूर था इस महिला का : ऐसा ही कुछ नोएडा की एक महिला तीमारदार के साथ हुआ। CMO के पास मदद के लिए पहुंची महिला ने गिड़गिड़ाते हुए अधिकारी से इंजेक्शन मांगा, इस पर उसे जेल भिजवाने तक की धमकी दे दी गई।
क्या कसूर था इस महिला का? वह तो बेबस थी, उसे किसी ने अधिकारी से मिलने की सलाह दी और वह CMO साहब के पास दौड़ी चली आई। क्यों साहब ने मदद मांग रही इस महिला के साथ इस तरह बर्ताव किया?
#WATCH Noida | Families of #COVID19 patients touch the feet of Chief Medical Officer (CMO) Deepak Ohri, requesting him that they be provided with Remdesivir.
डीएम साहब को ये क्या हुआ : कुछ इसी तरह का बर्ताव पश्चिमी त्रिपुरा में डीएम शैलेश कुमार यादव ने भी एक शादी समारोह में किया। उन्होंने सोमवार की रात आयोजित एक विवाह समारोह में रेड डालकर जिस तरह का निरंकुश और अमानवीय व्यवहार किया है, उसकी सर्वत्र आलोचना हो रही है। अगर कोई गलती करता है तो उसे सजा मिलनी चाहिए पर क्या डीएम साहब का सजा देने का तरीका सही था।
डीएम ने मांगी माफी : इस मामले में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देब ने राज्य के चीफ सेक्रेटरी को जांच के आदेश दे दिए गए हैं। वहीं त्रिपुरा भाजपा विधायक दल ने सरकार को ज्ञापन देकर जिला कलेक्टर शैलेश कुमार यादव को तत्काल प्रभाव से निलंबित किए जाने की मांग की। चौतरफा विरोध के बाद साहब ने पूरी घटना के लिए माफी मांग ली।
In #Tripura,#Agartala how DM is treated the people is shameful.
They are simply questioning him, and his response is like an uneducated person..
Can he show the same power to the local Counselors, MLA's or MP's? Or its just reserved for common people? pic.twitter.com/q1iejWYx7H
बड़ा सवाल : इन 2 घटनाओं में ब्यूरोक्रेट्स का गुस्सा और बेबसी दोनों ही नजर आ रही है। इन जोर आम लोगों पर तो चल जाता है पर उस समय जुबान क्यों नहीं खुलती जब दबंग नेता अपने समर्थकों के साथ खुलेआम कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं। उनके चेहरों पर ना तो मास्क दिखता है और ना ही वे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं।
हाल ही में हुए कई राज्यों में चुनाव हुए पर क्या देशभर में किसी भी अधिकारी ने किसी नेता की कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं करने पर क्लास ली? इंजेक्शन की काला बाजारी, उसमे पानी मिलाकर बेचने वालों के खिलाफ क्या कोई बड़ी कार्रवाई हुई? अगर नहीं हुई तो आम आदमी को सबक सिखाने का झूठा नाटक क्यों किया जा रहा है?