क्‍या Tax Terrorism की वजह से सुपर रिच छोड़ रहे भारत? आम भारतीय की भी हालत खराब

Indian Tax System: एक भारतीय नागरिक को कदम-कदम पर सरकार को टैक्‍स देना पड़ता है। इनकम टैक्‍स, हाउस टैक्‍स, कपड़े खरीदने पर टैक्‍स, रेस्‍टोरेंट में खाना खाने पर टैक्‍स और यहां तक कि रोड पर चलने के लिए टोल टैक्‍स और रोड टैक्स चुकाना पड़ता है। कुल मिलाकर एक भारतीय टैक्‍स पेयर जीवनभर अपनी कमाई एक हिस्‍सा टैक्‍स के रूप में सरकार को देता रहता है। एक तरह से भारत में सरकार आम आदमी की इनकम में पार्टनर है।
यह भी सही है कि टैक्‍स की इसी व्‍यवस्‍था से ही देश का सिस्‍टम संचालित होता है। लेकिन सवाल यह है कि टैक्‍स के रूप में इतनी राशि देने के बदले टैक्‍स पेयर्स को सरकार से क्‍या मिलता है। सरकार टैक्‍स पेयर्स की आय में तो पार्टनर है, लेकिन उसके घाटे में उसके साथ नहीं, ऐसा क्‍यों?

भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था में निरंतर कमाई यानि स्थिर आय वाले लोगों को कम आय वाले या वंचितों की मदद करने में सहयोग करना चाहिए। बावजूद इसके इनकम टैक्स देने वाले एक वर्ग को यह लगता है कि उन्हें बदले में सरकार से क्या मिल रहा? टैक्‍स-पेयर्स यह सोच रहा है कि आखिर सरकार की उसके जीवन में क्‍या भूमिका है? भारत में प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष तौर पर कई तरह के टैक्‍स लगते हैं, लेकिन खासतौर से इनकम टैक्‍स को लेकर लोगों के जेहन में कई तरह के सवाल हैं।

वेबदुनिया ने जब कुछ नागरिकों से चर्चा की तो ज्‍यादातर टिप्‍पणियों में यह सामने आया कि जब हम सबकुछ खुद ही कर रहे हैं तो सरकार की हमारे जीवन में क्‍या भूमिका है। मसलन, हम अपने बच्‍चों को प्राइवेट स्‍कूल या कॉलेज में पढ़ाते हैं, हम प्राइवेट नौकरी करते हैं। प्राइवेट अस्‍पतालों में ही इलाज करवाते हैं। प्राइवेट बसों और फ्लाइट में सफर करते हैं। घर का टैक्‍स चुकाते हैं, इनकम टैक्‍स भरते हैं, रोड पर चलने के लिए न सिर्फ रोड टैक्‍स बल्‍कि टोल टैक्‍स भी चुकाते हैं। इस पूरी सामाजिक व्‍यवस्‍था को गौर से देखें तो नजर आता है कि समाज के ज्‍यादातर हिस्‍से ने अपने जीने के लिए एक समानांतर (पेरेलल) व्‍यवस्‍था बना ली है या बन गई है। ऐसे में सवाल यह है कि आदमी के जीवन में सरकार की क्‍या भूमिका है? आखिर हम किस चीज को सरकार कहते या मानते हैं?

क्‍यों उठती है इनकम टैक्‍स खत्‍म करने की बात?
भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी जैसे और भी विशेषज्ञ देश में पर्सनल इनकम टैक्स की जरूरत पर सवाल उठाते रहे हैं। वे इसे खत्‍म कर देने के पक्ष में हैं। तमाम जानकार यह भी कहते हैं कि भारत में इनकम टैक्स देने वाले को सरकार की तरफ से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता है, बल्‍कि इसके उलट टैक्‍स-पेयर को प्रताड़ना का ही शिकार होना पड़ता है।

क्‍या कहते हैं टैक्‍स विशेषज्ञ?
टैक्‍स बनाम सामाजिक सुरक्षा : वड़ोदरा गुजरात में सीए केडी शर्मा  एफसीए चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं एवं एक लिस्टेड कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट रह चुके हैं। उन्‍होंने वेबदुनिया को चर्चा में बताया कि हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करते हैं। कोई भी वस्तु ले लीजिए, चाहे वो खेल हो मनोरंजन या सेवा। सब के लिए कुछ न कुछ टैक्‍स लगता है। टैक्‍स देने के बाद भी अगर हम सामाजिक सुरक्षा की बात करें तो यह लगभग न के बराबर है। हां, कुछ हद तक बीपीएल वर्ग को नरेगा, स्वास्थ्य, राशन सामग्री आदि के रूप में कुछ सुरक्षा मिलती है, हालांकि यह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। जबकि सबसे बुरी मार मध्यम वर्ग के वेतनभोगी लोगों पर पड़ी है जो बहुत महंगी शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं से जूझ रहे हैं। न ही उन्‍हें पेंशन मिलती है। जबकि हकीकत में मध्‍य वर्ग ही हमारी अर्थव्यवस्था के वास्तविक स्तंभ हैं, हालांकि वे ही सबसे ज्‍यादा उपेक्षित हैं। अब सरकार को चाहिए कि अपनी सभी कल्याणकारी योजनाओं को तर्कसंगत बनाए। जिससे मध्यम वर्ग को एक बेहतर और स्वस्थ जीवन मिल सके।

Tax Terrorism : क्‍यों देश छोड़ रहे सुपर रिच?
मणिपाल ग्रुप के चेयरपर्सन मोहनदास पई ने कुछ समय पहले टैक्‍स सिस्‍टम से जुड़ी एक खबर को ट्विटर पर शेयर करते हुए कहा था कि अमीर भारतीयों का विदेशों के लिए पलायन चिंताजनक है। उन्‍होंने कहा था कि इसके लिए टैक्स टेररिज्म (Tax Terrorism) जिम्मेदार है। बता दें कि टैक्स टेररिज्म एक ऐसा टर्म है, जिसे किसी देश की काफी ऊंची टैक्‍स व्यवस्था की आलोचना में करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पई का आशय था कि अमीर भारतीयों के पलायन की वजह भारत में लगने वाला ज्यादा टैक्स है।

हेनले प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन (Henley and Partners Report) की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल यानी 2023 में 6 हजार 500 सुपर रिच लोग देश छोड़ सकते हैं। यही रिपोर्ट बताती है कि 2022 में भारत के 8 हजार  अरबपतियों ने अपना वतन छोड़ दिया है। इसके पीछे हालांकि हेल्‍थ, एजुकेशन, लिविंग स्‍टैंडर्ड, आबोहवा और रेजिडेंट बाई इंवेस्टमेंट हैं, लेकिन टैक्‍स भी एक वजह है।

विदेश मंत्री जयशंकर ने भी संसद में बताया है कि 2023 में जून तक 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी, जबकि 2011 से अब तक 17.50 लाख से अधिक लोग अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ चुके हैं। उन्होंने बताया कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी जबकि 2021 में उनकी संख्या 1,63,370 और 2020 में 85,256 थी। उससे पहले 2019 में 1,44,017 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी। हालांकि इनमें सभी तरह के लोग हैं। 

इन देशों में नहीं लगता है इनकम टैक्स
यूएई, मोनाको, बहरीन, ब्रुनेई, केमन आइलैंड, बहामास, बरमूडा जैसे करीब 15 देशों में इनकम टैक्स नहीं लगता है। हालांकि ये देश तेल या अन्य स्रोतों, संसाधनों से भारी कमाई करते हैं और दूसरे ये बहुत छोटे देश हैं। ओईसीडी ने भी इस तरह का प्रयास शुरू किया है कि हर देश कम से कम टैक्स लगाएं। सिंगापुर, चीन जैसे देशों में इनकम टैक्स पर निर्भरता कम है।

क्‍या कहते हैं आम टैक्‍स- पेयर्स
इंदौर में एक निजी कोचिंग सेंटर में पढ़ाने वाले हरविंदर सिंह विरदी ने वेबदुनिया को चर्चा में बताया कि अधिकांश भारतीय इनकम टैक्स इसलिए नहीं देते, क्योंकि उन्‍हें पता है कि उन्‍हें अपनी जिम्मेदारी निभाने का सरकार से कोई इनाम नहीं मिलने वाला है। इस सोच के पीछे यही वजह है कि सरकार टैक्‍स तो लेती है, लेकिन बदले में नागरिक को कुछ नहीं देती। खासतौर से इनकम टैक्‍स वसूलने के मामले में।

सरकार मुझे क्‍या देती है?
एक निजी सॉफ्टवेअर कंपनी में काम करने वाले राजीव सिंह ने वेबदुनिया को बताया- मैं इनकम टैक्‍स चुकाता हूं, रोड टैक्‍स भरता हूं। जीएसटी देता हूं। इसके बदले सरकार मुझे क्‍या सुविधा देती है। क्‍या सरकार को मुझे एक ईमानदार टैक्‍स-पेयर होने के नाते कुछ सुविधाएं नहीं देना चाहिए? इसके इतर अगर कल से मैं टैक्‍स भरने की स्‍थिति में नहीं रहा तो मेरा क्‍या होगा। क्‍या सरकार मुझे किसी तरह की रियायत या आर्थिक मदद देगी?

भारत में सरकार नागरिक की इनकम में पार्टनर है
इंदौर में व्‍यापारी राकेश जैन भारत और अमेरिका की सरकार में यही अंतर है। भारत में सरकार नागरिक के बिजनेस और नौकरी में पार्टनर बन जाती है और इनकम टैक्‍स के रूप में अपना हिस्‍सा वसूलती है। लेकिन इसके बदले में सरकार अपने नागरिक को कुछ नहीं देती। भारतीय नागरिक जीवनभर टैक्‍स ही चुकाता रहता है। जबकि इसके उलट अमेरिका में सरकार टैक्‍स तो वसूलती है, लेकिन रिटायर्टमेंट के बाद पेंशन देती है। या कम से कम संकट के समय में अपने नागरिकों का आर्थिक रूप से ख्‍याल रखती है। भारत में टैक्स-पेयर सरकार से ये उम्‍मीद नहीं रख सकता।

इंदौर के अकाउंटेंट अनिल जायसवाल ने बताया कि भारत में व्‍यक्‍ति उठने से लेकर सोने तक सरकार को टैक्‍स जमा करता है। प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष टैक्‍स ने आदमी का जीना मुश्‍किल कर दिया है। लगातार बढ़ती महंगाई और टैक्‍स की वजह से आम आदमी का बजट पूरी तरह से गड़बड़ा गया है। तेजी से बढ़ती इन्‍फ्लेशन की वजह से समझ नहीं आ रहा कि व्‍यक्‍ति निवेश करे या घर चलाएं।

करदाता का पैसा आखिर जाता कहां है?
एक मीडिया कंपनी में काम करने वाले नागरिक ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर बताया कि बारिश के मौसम में असल रूप में मालूम पड़ता है कि करदाता का पैसा आखिर जाता कहां है। हर शहर में हम देख रहे हैं कि पानी सड़कों पर लबालब भरा हुआ है। मुंबई से लेकर दिल्ली तक हर साल यह ही हाल है। हम सड़क पर चलने का टैक्‍स देते हैं, लेकिन थोड़ी सी बारिश से सड़कों पर पानी भर जाता है। घर के आगे सड़क बनाना सरकार का काम है, लेकिन लोग अब इसे भी पैसा देकर और निगम का श्रम लेकर बनवाने को मजबूर हैं। सुविधाएं ना के बराबर हैं और टैक्स हर वस्तु का है। ये कैसा टैक्‍स सिस्‍टम है।

यह भेदभाव क्‍यों?
गरीब, आरक्षित और समाज के निचले तबके से आने वाले वर्ग को सरकार तमाम तरह की सुविधाएं देती है। उनके लिए कई योजनाएं लेकर आती है। यह वर्ग कोई टैक्‍स भी नहीं देता है। वहीं, मध्‍यमवर्गीय नौकरीशुदा व्यक्‍ति अपनी आय से सरकार को टैक्‍स देता है। लेकिन बदले में उसे कुछ नहीं मिलता। यहां तक कि ताउम्र टैक्‍स जमा करने वाले एक टैक्‍सपेयर को बुर्जुग हो जाने पर पेंशन के रूप में भी इतना कम पैसा मिलता है कि वो उसके दो वक्‍त की रोटी के लिए भी काम नहीं आता। सवाल यह है कि टैक्‍स पेयर्स को सरकार इग्‍नोर क्‍यों करती है।

भारत में दो तरह के टैक्‍स हैं
प्रत्यक्ष कर | Direct Taxes
ये वो Tax होते हैं, जिन्हें सरकार सीधे आपसे वसूल लेती हैं। जैसे Income Tax, प्रॉपर्टी टैक्स, Corporate Tax, प्रोफेशनल टैक्स, TDS, TCS, कैपिटल गेन टैक्स वगैरह। इन्हें प्रत्यक्ष कर यानी Direct Taxes इसलिए कहते हैं, क्योंकि इन्हें जिस व्यक्ति पर लगाया जाता है, Direct उसी से वसूला भी जाता है। इन्हें भरने वाला आगे चलकर किसी और पर उसका भार ट्रांसफर नहीं कर सकता। टैक्स की भाषा में कहें तो कराघात (Impact of Tax) और करापात Incident of Tax दोनों समान व्यक्ति पर होता है। इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स ऐसे ही टैक्स हैं।

अप्रत्यक्ष कर | Indirect Taxes
ये वो Tax होते हैं जिन्हें सरकार आपसे अप्रत्यक्ष तौर पर (Indirectly) वसूल करती है। मतलब यह कि Government ने पहले किसी और से टैक्स वसूल लिया, फिर Tax चुकाने वाले ने आगे चलकर किसी और से टैक्स की भरपाई कर ली। इस तरह, अप्रत्यक्ष कर, वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में शामिल करके वसूले जाते हैं। Excise Duty, Service Tax, मनोरंजन कर आदि इसी श्रेणी के Tax हैं। हाल ही में आया GST भी इसी तरह का अप्रत्यक्ष कर है। आर्थिक भाषा में कहें Indirect Taxes में कराघात (Impact of Tax) और करापात (Incident of Tax)  दोनों अलग-अलग व्यक्ति पर होता है।

अगर आप एक सीमा से ज्यादा सैलरी पाते हैं तो आपका TDS कट जाता है। इसी तरह, एक निश्चित सीमा से अधिक ब्याज, किराया, कमीशन, इनाम वगैरह पर भी सरकार TDS कटवा लेती है और कुछ खास तरह की खरीदारियों पर TCS वसूल लेती है। इसी तरह एक सीमा से अधिक बिजनेस इनकम होने पर भी आपको एडवांस टैक्स चुकाना पड़ता है। इसी तरह वस्तुओं (Goods) और सेवाओं (Services) के बिजनेस पर GST टैक्स चुकाना पड़ता है। एक निश्चित सीमा से अधिक आमदनी पर Surcharge और Cess भी लिए जाते हैं। इस तरह से हम देखते हैं कि सरकार, अलग-अलग तरह की आमदनियों पर अलग-अलग तरीकों से टैक्स वसूलती है।

सरकार टैक्स क्यों लगाती है?
सरकार को अपने सिस्‍टम को ठीक तरह से संचालित करने के लिए धन की जरूरत पड़ती है। विभिन्न सरकारी योजनाओं और उनसे जुड़े विभागों के संचालन के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। देश और राज्यों के विकास के लिए और जनता को सुविधाएं देने के लिए धन की जरूरत पड़ती है। ये पैसे सरकार, मुख्य रूप से टैक्सों के माध्यम से ही वसूलती है।

चाहे बात बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली पानी वगैरह के लिए खर्च की हो या सरकारी कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन, भत्ते वगैरह देने की। विकास और कल्याणकारी योजनाओं के मुद्दे हों या लोंगों के लिए स्वास्थ्य व बीमा सुविधाएं पहुंचाने की हो। लोगों को शिक्षा व रोजगार सुविधाओं के लिए, वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए, सैन्य व रक्षा संबंधी खर्चों के लिए, कानून व व्यवस्था कायम रखने के लिए, आकस्मिक व आपदा नियंत्रण संबंधी खर्चों आदि के लिए सरकार को धन की जरूरत होती है।

कुल मिलाकर देश में कई तरह से टैक्‍स वसूला जाता है, जिससे टैक्‍स पेयर्स के मन में सवाल भी है कि आखिर इतना टैक्‍स वसूलने के बाद भी टैक्‍स पेयर्स के लिए कोई सरकारी योजना या सरकार की तरफ से कोई सपोर्ट सिस्‍टम क्‍यों नहीं है?

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