इंदौर/भोपाल। आज शिक्षक दिवस है। आज के दिन शिक्षकों के सम्मान में बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। समाज के निर्माण में शिक्षकों के योगदान को याद किया जाता है। लेकिन क्या यह सम्मान सिर्फ एक दिन का है, क्या आज शिक्षकों पर शैक्षणिक कार्यों के अलावा अन्य कार्यों को करने का ऐसा दबाव है जिससे उनकी क्षमताओं पर असर पढ़ने के साथ बच्चों का भविष्य भी प्रभावित हो रहा है। मूल रूप से शिक्षकों का मूल काम पढ़ाना है, लेकिन आज शिक्षकों को पढ़ाने की जगह अन्य कार्यों में धड़ल्ले से लगाए जाता है। अगर देखा जाए तो साल भर शिक्षक अपने पढ़ाने के मूल कार्य के अलावा अन्य कार्यों में अधिक व्यस्त रहता है।
वेबदुनिया ने शिक्षक दिवस पर शिक्षकों के जीवन के इस अनछुए पहलु को छूने की कोशिश की।
वेबदुनिया ने अपनी पड़ताल में जब शिक्षकों से उनके गैर शैक्षणिक कामों के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने अपनी पहचान नहीं उजागर करने पर बताया कि एक ओर जहां शिक्षकों पर बेहतर रिजल्ट लाने का दबाव होता है वहीं उनको साल भर शैक्षणिक कार्य करने के साथ अन्य प्रकार की ड्यूटी भी करनी होती है। जैसे शिक्षकों को चुनाव में पहले बीएलओ का कार्य करने के साथ मतदाता सूची तैयार करनी होती है। इसके बाद चुनाव के वक्त वोटिंग कराना और फिर काउंटिग कराने की जिम्मेदारी भी शिक्षकों के कंधे पर होती है। इसके साथ स्कूलों मिडडे मील तैयार करना और अपनी देखरेख में बच्चों को बंटवाना भी उसकी जिम्मेदारी होता है। इसके साथ जनगणना का कार्य करने के साथ-साथ जिला प्रशासन की ओर से सौंपे गए अन्य कार्यों को भी उनको करना होता है।
आजाद अध्यापक शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष भरत पटेल कहते हैं कि शिक्षकों को शैक्षणिक कार्य के अलावा अन्य कार्यों में लगाए जाने से उसका जो मूल कार्य पढ़ाना है वह प्रभावित होता है। इसके साथ शिक्षकों को कई स्तर से आदेश मिलने से अक्सर उनके सामने कन्फ्यूजन की स्थिति हो जाती है। जैसे शिक्षकों को कलेक्टर स्तर, एडीएम स्तर पर और राज्य शिक्षा केंद्र और डीईओ दफ्तर से अलग-अलग स्तर पर निर्देश दिए जाते है, जिससे पूरी व्यवस्था बिगड़ जाती है। हैरत कि बात है शिक्षकों से अन्य कार्य कराने के लिए कई बार सिर्फ मौखिक स्तर पर या सोशल मीडिया स्तर पर ही आदेश जारी होते है जिससे शिक्षक अपनी व्यथा किसी को बात भी नहीं कह सकता। ऐसे में हमारी मांग है कि शिक्षकों को एक ही स्तर के अधिकारी से आदेश दिए जाना चाहिए।
वेबदुनिया से बातचीत में भरत पटेल कहते हैं कि शिक्षक का मूल काम बच्चों को पढ़ाना है, लेकिन अन्य कार्यों में लगे होने के चलते पढ़ाई प्रभावित होती है। शिक्षकों को अन्य कामों को छोड़कर उसकी योग्यता के अनुसार पढ़ाने का मौका देना चाहिए। अगर एक शिक्षक अपनी योग्यता के अनुसार पढ़ा दें तो बच्चा दक्ष हो जाता है।
वहीं मध्यप्रदेश शिक्षक संघ के प्रांतीय महामंत्री क्षत्रवीर सिंह राठौर कहते हैं कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से मुक्त रखा जाए। शिक्षकों को अन्य कार्यों में लगाए जाने से परीक्षा परिणाम प्रभावित है। वहीं परीक्षा परिणाम प्रभावित होने पर शिक्षकों को दंडित भी किया जाता है। शिक्षक संघ ने इस संबंध में कई बार सरकार को इस संबंध में अनुरोध है कि जनगणना और आम चुनाव जैसे राष्ट्रीय कार्यों के अलावा अन्य कार्यों में नहीं लगाया जाए है। मध्यप्रदेश में शिक्षकों को राजस्व काम में लगाने साथ एक समय तो उनकी ड्यूटी पशुओं की गणना में लगाई जा चुकी है।
चुनौतियां भी कम नहीं : सीएम राइज महाराजा शिवाजी राव स्कूल की प्राचार्य हर्षा पंडित कहती हैं आज के दौर में बच्चों में अनुशासन बनाए रखना शिक्षकों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। मोबाइल और सोशल मीडिया पर बच्चों की सक्रिता से उनकी एकाग्रता भंग हो रही है। एकलव्य आदर्श विद्यालय के प्रधान अध्यापक भूपेश यादव कहते हैं कि समय के साथ शिक्षा के क्षेत्र में काफी बदलाव हुए हैं। आज हर परिजन अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर तो बनाना चाहता है, बच्चे के सर्वांगीण विकास की ओर किसी का ध्यान नहीं है।
उच्च श्रेणी शिक्षक प्रदीप झा कहते हैं कि डिजिटल क्लास रूम पर प्राथमिक स्तर पर जोर देना चाहिए ताकि ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल सके। जब वे उच्च कक्षाओं में पहुंचेंगे तो उन्हें मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। वहीं, संजय बिल्लौरे कहते हैं कि हमने ब्लैक बोर्ड से लेकर डिजिटल क्लास रूम तक का सफर तय कर लिया है। इसका लाभ बच्चों को मिल रहा है। सहायक प्राध्यापक डॉ. रागिनी दीक्षित कहती हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में कई तरह की चुनौतियां हैं। एआई के बाद सूचनाओं का अंबार लग गया है, लेकिन लाइब्रेरियां सूनी हो गई हैं। विद्यार्थियों में पढ़ने रुचि घटी है। कोटा विद्यार्थियों की आत्महत्याएं दुखद हैं। इन पर रोक लगाने के प्रयास होने चाहिए।
पिछले 5 साल में 29 हजार सरकारी स्कूल बंद
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा था— मेरी कोशिश है कि सरकारी स्कूलों को ऐसा बना दूं कि हर ग़रीब का बेटा-बेटी बेहतर शिक्षा प्राप्त कर पाएं
कैसे घटे स्कूल : मुख्यमंत्री के इस बयान के ठीक विपरीत हकीकत कुछ ओर ही है। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, भारत सरकार की वेबसाइट के मुताबिक वर्ष 2015-16 में मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या 1,21,976 थी, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 92,695 रह गई। यानी पिछले 5 सालों में 29,281 सरकारी स्कूल बंद हो गए।
क्यों घट गए शिक्षक : वर्ष 2015-16 में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या 3,44,372 थी, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 3,03,935 रह गई। यानी 40,437 शिक्षकों की कमी हुई है।
पंजीकृत विद्धार्थी : वर्ष 2015-16 में मध्यप्रदेश में सरकारी स्कूलों में 1,03,60,550 छात्र-छात्राएं पंजीकृत थे। ये आंकड़ा वर्ष 2021-22 में घटकर 94,29,734 रह गया। साफ है कि सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के एनरोलमेंट में 9,30,816 की कमी आई है।
सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की स्थिति लड़कियों के लिए शौचालय : मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में उपलब्ध सुविधाओं की स्थिति सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015-16 में मध्य प्रदेश के 4 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की सुविधा नहीं थी। वर्ष 2021-22 तक इसमें मात्र 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अभी भी मध्यप्रदेश के 1,770 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं है।
विद्धार्थियों के लिए पुस्तकालय : 2015-16 में 10% स्कूलों में पुस्तकालय नहीं थे, जो आंकड़ा वर्ष 2021-22 में बढ़कर 36% हो गया। यानी 26% की बढ़ोतरी हुई है। मध्यप्रदेश के 33,623 स्कूलों में पुस्तकालय नहीं है।
बिजली सुविधा : वर्ष 2015-16 में मध्यप्रदेश के 84 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में बिजली की सुविधा नहीं थी। 2021-22 में इसमें थोड़ा सुधार हुआ और ये आंकड़ा 84 प्रतिशत से घटकर 57 प्रतिशत तक हो गया। लेकिन अभी भी प्रदेश के 52 हजार 888 स्कूलों में बिजली नहीं है।
पानी की सुविधा : 2015-16 में मात्र 3 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं थी, लेकिन ये 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़कर 34 प्रतिशत हो गया। प्रदेश के 31 हजार 426 सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है। इसी तरह 56 प्रतिशत स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं थी। साल 2021-22 में इसमें थोड़ा सुधार हुआ, हालांकि अभी भी 39 प्रतिशत स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है। इसी तरह मध्यप्रदेश के 35 हजार 822 सरकारी स्कूलों में मेडिकल सुविधा नहीं है।
प्रदेश में स्कूलों की स्थिति
- प्रदेश के 10 हजार से ज्यादा स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे।
- प्रदेश में 40 हजार के करीब अतिशेष शिक्षक स्कूलों में खाली बैठे।
- प्रदेश के 2621 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं।
इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में स्कूलों की स्थिति
- भोपाल के ग्रामीण क्षेत्र फंदा और बैरसिया में 9 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है, जबकि 41 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक है। भोपाल के अन्य स्कूलों में 1159 सरप्लस हैं जो खाली बैठे हैं।
-इंदौर में 11 स्कूल जहां एक भी शिक्षक नहीं है। 45 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक जबकि 1669 शिक्षक खाली बैठे हैं।
-ग्वालियर में 23 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है। 137 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे। वहीं 1215 टीचर खाली बैठे।
-जबलपुर में 15 स्कूलों में एक भी टीचर नहीं। 135 में स्कूलों में सिर्फ एक टीचर। 966 टीचर सरप्लस हैं।