सौरव गांगुली का पलटवार

-प्रवीण सिन्ह

बंगाल टाइगर सौरव गांगुली का एक विज्ञापन के जरिए दिया गया वह संदेश एक बार फिर जेहन में आ गया जिसमें उन्होंने कहा था, 'आप अपने 'दादा' को भूल तो नहीं गए। मैं वापस टीम में जरूर आऊँगा।' इस संदेश में उनकी बेचारगी झलक रही थी, लेकिन सौरव के जाँबाज प्रदर्शन और उनके आत्मविश्वास को भला इतनी जल्दी और इतनी आसानी से कोई कैसे भुला सकता है।

  सौरव का अंदाज और अपने आलोचकों को जवाब देने का तरीका औरों से अलग है। सौरव ने मोहाली टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे टेस्ट में अपने उन आलोचकों को करारा जवाब दिया जिन्होंने यह मान लिया था कि अब उनका तूफानी दौर समाप्त हो गया है      
सौरव का अंदाज और अपने आलोचकों को जवाब देने का तरीका औरों से अलग है। सौरव ने मोहाली टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे टेस्ट में अपने उन आलोचकों को करारा जवाब दिया जिन्होंने यह मान लिया था कि अब उनका तूफानी दौर समाप्त हो गया है क्योंकि उनकी नजरें और फुटवर्क कमजोर हो गए हैं।

दादा ने मोहाली में शतक ठोककर दिखा दिया कि उनमें अभी बहुत क्रिकेट बचा है। उन आलोचकों को भी अब आत्मग्लानी हो रही होगी जिन्होंने हल्ला मचा-मचा कर सौरव पर संन्यास लेने का दबाव बढ़ा दिया।

दूसरी ओर, किरण मोरे व दिलीप वेंगसरकर जैसे चयनकर्ताओं ने जब-तब उन्हें बलि का बकरा बनाया जिससे आजिज आकर अंततः सौरव को संन्यास लेने की घोषणा करनी पड़ी। सौरव का शतक उन चयनकर्ताओं के लिए भी एक सबक है। कोई भी खिलाड़ी ताउम्र क्रिकेट नहीं खेल सकता और न ही सौरव की ऐसी कोई मंशा रही होगी, लेकिन सौरव को जिस तरह से जबरन विदा किया जा रहा है, वह उचित नहीं है।

भारतीय चयनकर्ताओं को अपने स्टार खिलाड़ियों को सम्मानजनक ढंग से विदाई देने का शऊर आना चाहिए। सिर्फ किसी जूनियर खिलाड़ी को टीम में शामिल करने के नाम पर किसी सीनियर विशेष को "निशाना" नहीं बनाया जा सकता है।

  मोहाली टेस्ट के पहले दो दिनों में भारतीय बल्लेबाजों का पूरी तरह से दबदबा रहा। उसमें निश्चित तौर पर सौरव का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा। भारतीय पारी में एकमात्र शतक मारने की वजह से नहीं, बल्कि सौरव की धैर्यपूवर्क पारी ने भारत को मजबूत स्थिति में पहुँचाया      
भारतीय टेस्ट टीम की कैप आसानी से न तो किसी को सौंपी जा सकती है और न ही बेवजह छीनी जानी चाहिए। सीनियरों को जिस तरह से टीम में बने रहने के लिए निरंतर अच्छा प्रदर्शन करने की सलाह दी जाती है, ठीक उसी तरह जूनियरों को भी टीम में दावेदारी पेश करने करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करना होगा। विश्वास मानें, अगर कोई जूनियर लगातार उनसे बेहतर प्रदर्शन करता रहे तो न सौरव या सचिन जैसे सम्मानित खिलाड़ी घिसट-घिसट कर टीम के लिए बोझ बने रहेंगे और न ही मीडिया या क्रिकेट प्रशासक उन्हें टीम में बने रहने देंगे।

बहरहाल, मोहाली टेस्ट के पहले दो दिनों में भारतीय बल्लेबाजों का पूरी तरह से दबदबा रहा। उसमें निश्चित तौर पर सौरव का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा। भारतीय पारी में एकमात्र शतक मारने की वजह से नहीं, बल्कि सौरव की धैर्यपूवर्क पारी ने भारत को मजबूत स्थिति में पहुँचा दिया। उनकी पारी में कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि उनके पांव इतने थक गए हैं कि उन्हें टीम से धक्का दे दिया जाए।

उनकी रनों की भूख और भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलिया से ऊपर रखने की चाहत अब भी उतनी ही दिखी जितनी वह 2001 में अपनी कप्तानी में दिखाया करते थे। सौरव की जूझने की क्षमता और विश्व की नंबर एक ऑस्ट्रेलिया ई टीम को हराने का उनका आत्मविश्वास ही उनका कद औरों से कहीं बड़ा कर देता है।

सौरव ने भारतीय टीम को एक इकाई के रूप में संगठित करने के अलावा अपने साथी खिलाड़ियों में जीत का जज्बा पैदा करने का सराहनीय प्रसास किया है। सौरव से पहले जितने भी भारतीय कप्तान हुए, उन्होंने विदेशी दौरे पर जीत दर्ज करने का दावा नहीं किया।

लेकिन सौरव ने न केवल दावा किया, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और पाकिस्तान को उसकी धरती पर हराने का कारनामा कर दिखाया। जाहिर है सौरव एक जुझारू खिलाड़ी और आक्रामक कप्तान रहे हैं जिन्हें आसानी से न तो नकारा जा सकता है और न आसानी से भुलाया जा सकता है।

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