टी-20 की चकाचौंध में गुम होता घरेलू टूर्नामेंट

- अमित कुमा
आईपीएल, चैंपियंस लीग जैसे ग्लैमर और पैसों से भरे तमाशे आज भले ही आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं, लेकिन घरेलू टूर्नामेंट 'रणजी ट्रॉफी' को 2009-10 में मुस्कुराने के लिए कई लम्हें हैं। आजादी से पहले शुरू हुआ यह राष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट अपनी प्लैटिनम जुबली मना रहा है।

रणजी ट्रॉफी क्रिकेट टूर्नामेंट के 75 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अपने 76वें साल में पहुँचा यह टूर्नामेंट लगता है अब बूढ़ा हो चला है। पहले जहां खिलाड़ियों के लिए घरेलू टूर्नामेंट में प्रदर्शन करना अनिवार्य हुआ करता था, वहीं अब अपनी पहचान खोता जा रहा है
चार नवंबर 1934 को शुरू हुए इस टूर्नामेंट को 75 साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन अपने 76वें साल में पहुंचा यह टूर्नामेंट लगता है अब बूढ़ा हो चला है। पहले जहां खिलाड़ियों के लिए घरेलू टूर्नामेंट में प्रदर्शन करना लाजमी हुआ करता था, वहीं अब यह अपनी पहचान खोता जा रहा है।

न जाने कितने खिलाड़ी घरेलू टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद चयनकर्ताओं का दिल नहीं जीत पा रहे हैं। युवा प्रतिभाओं को तलाशने के लिए शुरू किया गया यह टूर्नामेंट ऐसा लगता है कि जैसे बीसीसीआई के लिए अब महज खानापूर्ति रह गया है। दूसरी ओर ट्‍वेंटी-20 के तमाशा टीम इंडिया में प्रवेश पाने के लिए वाइल्ड कार्ड बन गया है।

कैसे शुरू हुआ रणजी : इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया की तर्ज पर रणजी टूर्नामेंट की शुरुआत 1934-35 में किया गया। पहला रणजी ट्रॉफी 1934-35 में खेला गया और तब इस टूर्नामेंट का नाम 'द क्रिकेट चैंपियनशिप ऑफ इंडिया' सोचा गया था, लेकिन बाद में 'रणजी' के नाम से जाने जाने वाले नवानगर के जामसाहिब रणजीत सिंह के नाम पर इस टूर्नामेंट का नाम 'रणजी ट्रॉफी' रख दिया गया।

रणजीत सिंह को न केवल इंग्लैंड टेस्ट टीम में खेलने का सौभाग्य प्राप्त है, बल्कि आज भी वह एक बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में जाने जाते हैं। हर वर्ष आयोजित होने वाले इस टूर्नामेंट की ट्रॉफी पटियाला के महाराज एचएच भूपिंदर सिंह ने बीसीसीआई को दान किया। इस प्रथम श्रेणी घरेलू टूर्नामेंट का पहला फाइनल मुबंई (पहले बंबई) और नादर्न इंडिया के बीच हुआ, जिसमें मुंबई आक्रामक तरीके से नादर्न इंडिया को हरा पहला रणजी ट्रॉफी चैंपियन बना।

रणजीत सिंह को न केवल इंग्लैंड टेस्ट टीम में खेलने का सौभाग्य प्राप्त है, बल्कि आज भी वह एक बेहतरीन बल्लेबाज के रूप में जाने जाते हैं। हर वर्ष आयोजित होने वाले इस टूर्नामेंट की ट्रॉफी पटियाला के महाराज एचएच भूपिंदर सिंह ने बीसीसीआई को दान किया
ट्रॉफी के 75 सालों में आज भी मुंबई टीम 38 जीत दर्ज करने के साथ चैंपियनशिप की सबसे प्रभावशाली टीम रही है। इसमें 1958-59 से 1972-73 तक लगातार 15 जीत दर्ज करने का कारनामा भी शामिल है। उसके बाद कर्नाटक 1973-74 में मुंबई को सेमीफाइनल में हराकर न केवल रणजी ट्रॉफी विजेता बना, बल्कि यह बात भी साबित कर दिया कि यह ट्रॉफी किसी एक टीम की जागीर नहीं। यह एक ऐसा टूर्नामेंट है जिसका मकसद देश के हर हिस्से से छुपी प्रतिभाओं को सामने लाना है।

चयन का आधार था घरेलू टूर्नामेंट : क्रिकेट की समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति यह अच्छी तरह से जानता है कि अगर किसी खिलाड़ी को टीम इंडिया में जगह बनानी है, तो घरेलू टूर्नामेंट में प्रदर्शन करना होगा। सचिन तेंडुलकर, राहुल द्रविड़, महेंद्र सिंह धोनी, वीवीएस लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों ने घरेलू टूर्नामेंटों में गजब का प्रदर्शन कर टीम में अपनी जगह पक्की की।

सचिन तेंडुलकर ने अपने पहले रणजी, दलीप ट्रॉफी और ईरानी ट्रॉफी में शतक जमाकर चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा। वहीं द्रविड़ ने कर्नाटक की ओर से खेलते हुए रनों का अंबार लगाया। वीवीएस लक्ष्मण ने तो खुद को एक बार नहीं, बल्कि कई बार साबित किया है। अक्सर टीम से बाहर कर दिए जाने वाले इस वैरी वैरी स्पेशल खिलाड़ी ने घरेलू टूर्नामेंटों में तिहरे शतक जमाकर चयनकर्ताओं को मजबूर किया कि उन्हें टीम में शामिल किया जाए।

इस हैदराबादी बल्लेबाज ने घरेलू क्रिकेट में 80 की औसत से रन बनाए हैं। 1999-2000 में लक्ष्मण ने रणजी के एक सीजन में 1415 रन बनाकर टीम इंडिया में वापसी की। इस दौरान उन्होंने 353 रनों की मैराथन पारी भी खेली।

लीग कल्चर ने बदली तस्वीर : इंडियन क्रिकेट लीग को नेस्तानाबूत करने के लिए बीसीसीआई ने भारतीय बाजार में इंडियन प्रीमियर लीग नामक मिसाइल दागी। इसका निशाना भी अचूक रहा। आईपीएल का रंग ऐसा चढ़ा कि लोग सबकुछ भुला बैठे। पैसे, ग्लैमर और चौके छक्कों की बरसात वाला टूर्नामेंट अचानक ही लोगों के सिर चढ़ बैठा। ऐसा होना लाजमी भी था क्योंकि दर्शकों के लिए क्रिकेट मनोरंजन का साधन है और आईपीएल से बढ़िया तमाशा भला और कहां देखने को मिलता।

लेकिन चयनकर्ता भी इस ँधी में बह निकले, यह थोड़ा अटपटा लगा। इस लीग कल्चर ने अचानक ही तस्वीर बदल दी। पहले जहाँ चयनकर्ताओं की निगाहें घरेलू टूर्नामेंट में प्रतिभा तलाशती नजर आती थी। वे जब चीयरलीडर्स के ठुमकों के बीच टीम इंडिया के लिए खिलाड़ी चुनने लगे हैं। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में बुरी तरह से फेल होने के बाद गुस्साए कप्तान धोनी की खीझ चयनकर्ताओं पर उतर चुकी है। हार के बाद धोनी ने कहा था सिर्फ ट्‍वेंटी-20 मैचों को देखकर टीम चुनना बंद कर देना चाहिए।

फटाफट क्रिकेट, झटपट मौके : आईपीएल के पहले सत्र में पंजाब का तेज गेंदबाज मनप्रीत गोनी महेंद्र सिंह धोनी की चेन्नई टीम से खेले। गेंदबाजी भी अच्छी की। अचानक ही उसे टीम इंडिया में शामिल कर लिया गया। गोनी खुद भी हैरान थे, जो काम घरेलू सत्र नहीं कर पाया, वो आईपीएल ने कर दिया।

पिछले कई सीजन से सौराष्ट्र की ओर से सराहनीय प्रदर्शन कर रहे ऑलराउंडर रवींद्र जडेजा पर भी चयनकर्ताओं की नजर तब तक नहीं पड़ी, जब तक उसने राजस्थान रॉयल्स को खिताब जिताने में अहम भूमिका नहीं निभाई। हाल ही में टीम इंडिया में वापसी के लिए प्रयासरत आरपी सिंह और रोहित शर्मा को भी आईपीएल-2 में अच्छे प्रदर्शन का इनाम मिल चुका है। हालाँकि वे उसे बरकरार नहीं रख पाए।

पहले दिल्ली और अब हरियाणा से खेलने वाले लेग स्पिनर अमित मिश्रा को भी वापसी का वरदान आईपीएल ने ही दिया। आईपीएल के पहले सत्र में डेयर डेविल्स की ओर से हैट्रिक जमाकर उन्होंने अपना दावा पेश किया। वहीं चोट की वजह पिछले सत्र में अधिकतर समय बाहर बैठने वाले दिल्ली के तेज गेंदबाज आशीष नेहरा भी आईपीएल के दम पर टीम में वापसी करने में सअफल रहे। इरफान पठान के बड़े भाई यूसुफ पठान भी राजस्थान रॉयल्स की ओर से अपना दम दिखाकर टीम इंडिया के सदस्य बने।

दिन ब दिन गिरता स्तर : अफसोस यह टूर्नामेंट अपनी चमक खोता जा रहा है। इसका स्तर बढ़ने के बजाय गिरता जा रहा है। टूर्नामेंट की तैयारियों के लिए किस कदर की लापरवाही बरती जाती है, यह तो जगजाहिर है। न तो अच्छी पिचें, न अच्छे स्टेडियम और न ही अच्छी अंपायरिंग। 75 साल पहले जिस मकसद को लेकर रणजी टूर्नामेंट की शुरुआत की गई थी, वह कहीं गुम होता नजर आ रहा है।

बीसीसीआई भले ही दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड हो, लेकिन घरेलू टूर्नामेंट के प्रति वह हमेशा ढुलमुल रवैया अपनाता रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की पिचों के बजाय घरेलू टूर्नामेंट जिन पिचों पर होते हैं, उसका खामियाजा खिलाड़ियों को भुगतना पड़ रहा है। घरेलू पिचों पर रनों का अंबार लगाने वाली खिलाड़ी विदेशी पिचों पर जाकर बुरी तरह फेल हो जाते हैं। नतीजन उनका करियर शुरु होने के पहले ही खत्म हो जाता है।

बदलाव की जरूरत : अगर बीसीसीआई को इन घरेलू टूर्नामेंट का स्तर बढ़ाना है तो खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय मैचों में ब्रेक देने की जरूरत है, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी घरेलू टूर्नामेंट में खेलकर उसके स्तर को बढ़ाएँ।

इसके अलावा बीसीसीआई को इन टूर्नामेंटों के लिए अच्छे विकेट, प्रैक्टिस के लिए अच्छी विकेट आदि देने की आवश्यकता है। अब देखना है कि बीसीसीआई रणजी के प्लेटिनम जुबली के अवसर पर इसकी खोती चमक को वापस लाने के लिए क्या कमाल दिखाता है।

वेबदुनिया पर पढ़ें