सरफराज को तेंडुलकर कहकर दबाव न डालें

ND
सच पूछिये तो भारत और ऑस्ट्रेलिया के हैदराबाद वाले मैच के बाद मैं ऑस्ट्रेलियाई सिस्टम का प्रशंसक हो गया। हम यहाँ सचिन और उनके बेहतरीन क्रिकेट की चर्चा नहीं करेंगे। वे असाधारण के भी परे हैं, दिव्य हैं। वे अब बल्लेबाजी इंजॉय नहीं करते, पर उन्हें बल्लेबाजी इंजॉय करती है। आइए अलौकिक छोड़ें और लौकिक पर चर्चा करें।

अगर हम ऑस्ट्रेलियन टीम पर ध्यान दें तो वे अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ भारत नहीं आए हैं। ऑस्ट्रेलियाई खेमे के तीन सशक्त खिलाड़ी (माइकल क्लार्क, नॉथन ब्रैकन, ब्रेड हैडिन) चोटग्रस्त हैं, जो 15 खिलाड़ियों का दल आया था उसमें से भी 5 खिलाड़ियों को लौटना पड़ा।

इनमें भी विशेषकर ब्रेट ली जैसे गेंदबाज का लौटना बहुत बड़ा झटका था। वर्तमान ऑस्ट्रेलियाई टीम अपने आठ मुख्य खिलाड़ियों के बिना खेल रही है। वहीं तुलनात्मक रूप से हम अपनी पूर्ण टीम के साथ खेल रहे हैं, जहीर खान को छोड़।

ऑस्ट्रेलिया ने श्रृंखला जीतकर दिखा दिया कि उनकी बेंच स्ट्रैंथ लाजवाब है। जरा सोचिए क्या भारतीय टीम बिना शीर्षक्रम के खिलाड़ियों के खेल सकती है। मेरा उत्तर है ना। अगर हमारे 11 मुख्य खिलाड़ियों में से 5 हटा दें तो शायद हमें बांग्लादेश से भी संघर्ष करना पड़े। हमारी बेंचस्ट्रैंथ इतनी कमजोर है यह सोचकर निराशा होती है।

गौर करने योग्य यह भी है कि हमारा देश आज हर क्षेत्र में विकास कर रहा है। हालाँकि उस प्रतिशत में हम खेल में बहुत धीमें चल रहे हैं। कुछ कमजोरियाँ हैं जिस पर हम बाद में विचार करेंगे।

PTI
आइए थोड़ा सकारात्मक रुख करें और 12 वर्षीय सरफराज खान के रिकॉर्ड के बारे में बात करें। इतनी कम उम्र में 439 रन बनाना दुर्लभ है। अब बेहतर होगा कि लोग तेंडुलकर कहकर उन पर दबाव न डालें। उन्हें नन्हे पक्षी की तरह स्वच्छंद उड़ान भरने दें, खेलने दें, खिलने दें।

खेल यात्रा अनवरत है बिलकुल जीवन की ही तरह। हर व्यक्ति विशेष है, अलग है, सबका डीएनए अलग है। सरफराज खान भी अलग हैं उन्हें फोटोकॉपी ना बनाएँ।

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