जो नोटबंदी के विरोधी हैं वो ज़रूर पढ़ लें

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016 (20:38 IST)
हाँ, तो बहुत बात हो चुकी सवालों और समस्याओं की। कमोबेश उन सवालों को उठा भी दिया जो नोटबंदी के कारण हो रही तकलीफों से जुड़े हैं। कुछ मन की बातें थीं, कुछ बेमन से। कुछ भय है, कुछ सच है कुछ आक्रोश है। इसे आगे भी आवाज़ देते रहेंगे। इस सबका परत-दर-परत आकलन होता रहेगा। पर मोटा-मोटी मेहनतकश और टैक्स भरने वाला तो ख़ुश है। उसको तो अपने सपनों का भारत बनते हुए दिख रहा है। उसे लगता है कि सचमुच अच्छे दिन आ गए हैं। अब काला धन कमाने वाले उसे मुँह नहीं चिढ़ा पाएँगे। वो बोरियों में पैसे रखने वाले अब फर्राटे से अपनी चमचमाती ऑडी, या बीएमड्ब्ल्यू या मर्सिडीज़ लेकर मेरी मारुति के सामने से नहीं निकल पाएँगे। उसकी कोठियाँ और यूरोप की यात्राएँ मुझे मुँह नहीं चिढ़ाएँगी।
नहीं, ये नहीं कि मुझे उसके गाड़ी, बंगले और सुख सुविधाओं से कोई दिक्कत है। पर अगर वो देश को मिलने वाले पैसे का हक छीनकर, मेरे हक का पैसा छीनकर, इस देश की व्यवस्थाओं को धता बता कर ये ऐश-अय्याशी कर रहा है तो फिर मुझे उससे बहुत दिक्कत है। दिक्कत तो इसी बात से है कि वो मेरी ईमानदारी पर हँसता था। मेरे ईमानदारी से टैक्स भरने की खिल्ली उड़ाता था। मुझे बेवकूफ बताता था। तो मैं तो ख़ुश हूँ। मुझे तकलीफ होगी। पर ये सड़ांध तो साफ़ होगी। 

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तो इस किस्त में सवाल उनके जो नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं – 
1. आप नोटबंदी का विरोध क्यों कर रहे हैं? आपके पास कालाधन है इसलिए? 
- तब तो हम आज आपसे सहानुभूति भी नहीं जता सकते। नहीं इसको किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं ठहरा सकते -  ये सब तो ज़रूरी है। व्यवस्था ही ऐसी थी। टैक्स भरने से क्या होता है, सब नेताओं की जेब में जाता है, ये पैसा भी तो हम बाज़ार में चलाते हैं वगैरह-वगैरह। ये सब लचर तर्क मत दीजिए। आप नंगे हो चुके हैं। अब कोई भी तर्क इस नंगई को ढँक नहीं पाएगा। 
 
2. केवल नोटबंदी से कुछ नहीं होगा। कालधन सिर्फ़ नकदी के रूप में थोड़े ही है इस देश में। कोठी, गाड़ियाँ और व्यापार हैं! 
- तो कहीं से तो शुरू करें। क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें? ये हुआ है तो वो भी होगा। हम क्यों मानें कि केवल नोट पर ही चोट होगी। आय से अधिक दूसरी संपत्तियों की भी जाँच होगी, होनी चाहिए। चूँकि वो नहीं हुआ तो ये भी नहीं करना चाहिए, ये कोई तर्क नहीं। 
 
3. सरकार की तैयारी अधूरी थी। ये एक अच्छा निर्णय है जिसे ग़लत तरीके से क्रियान्वित किया गया। 
- इस बात को कुछ हद तक माना जा सकता है। पर इसमें सबसे बड़ी चुनौती थी गोपनीयता बनाए रखने की। गोपनीयता भंग होने पर तो इस योजना का पूरा मकसद ही विफल हो जाता। जितने लोगों को शामिल किया जाता उतना ही गोपनीयता भंग होने की संभावनाएँ बढ़ जाती। इस लक्ष्यभेदी हमले से जिन पर वार करना था वो ही साफ़ बच निकलते। 
 
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- कुछ सवाल इस योजना पर सवाल उठाने वालों से है– आप ही बता दीजिए कि ऐसे नहीं तो कैसे होना था? पूरे सवा दो लाख एटीएम कैसे पहले से ही तैयार कर लिए जाते? कौन–सा समय सही होता? कैसी तैयारी होनी थी? कैसे 86 प्रतिशत मुद्रा तुरंत बदल जाती? बताइए?
 
4. लोग परेशान हो रहे हैं। अपना ही पैसा नहीं निकाल पा रहे। घंटों कतार में खड़े हैं। कई लोगों की तो मौत भी हो गई। 
- ये इस पूरी प्रक्रिया का सबसे दु:खद पहलू है। पर यही वो तकलीफ है जिससे होकर हमें मंज़िल तक पहुँचना है। 
- जब प्रधानमंत्री ने अपने पहले उद्बोधन में कहा था कि जनता को परेशानी होगी, पर देश के भले के लिए इसे सह लीजिए तो वो ये ही कह रहे थे। ये तकलीफ किन रूपों में आएगी इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाना तो किसी के लिए भी संभव नहीं है। पर हाँ बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए बड़े बलिदान भी देने होते हैं। 
-इसे कुछ लोगों ने जानबूझकर भी बड़ा बनाने की कोशिश की है। अपने पैसे बदलवाने के लिए भाड़े पर लोगों को लाइन में खड़ा किया है। व्यवस्था में छेद ढूंढने वाले तो हर चीज़ का तोड़ ढूंढ लेते हैं। एक अच्छे कदम को अपने स्वार्थ के लिए विफल करने में लग जाते हैं। 
 
5. इस मुद्दे का जमकर राजनीतिक विरोध भी हो रहा है।
- इन राजनीतिक विरोधियों को पहले 24 घंटे में साँप क्यों सूँघ गया था? तब तो दबी ज़ुबान से ही सही, तारीफ ही कर रहे थे। सन्न रह गए थे। अरे, कोई राजनीति में रहकर भी ऐसा कर सकता है क्या? ये तो बस बोलने की बातें होती हैं। फिर अचानक मैदान में क्यों आ गए? कतारें देखकर? भूल कर रहे हो। 
- बात अगर राजनीतिक स्वार्थ की ही है तो भाजपा और संघ के ही कई लोग इस कदम से नाख़ुश हैं। सार्वजनिक रूप से बोल नहीं सकते पर आप अगर जानते हों तो उनके मन की बात पूछ लीजिए। पता चल जाएगा। 
- व्यापारी वर्ग को तो भाजपा का बड़ा समर्थक माना जाता रहा है। मोदीजी की ऐतिहासिक जीत में उनका बड़ा योगदान है। फिर उनको नाराज़ करने से राजनीतिक स्वार्थ कैसे सिद्ध होगा? 
- धुर राजनीतिक विरोधी होने पर भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने इस नोटबंदी का स्वागत किया है। 
- जो ममता बैनर्जी और अरविन्द केजरीवाल इस सारे मामले में विरोध कर रहे हैं, मोर्चा निकाल रहे हैं उन्होंने ख़ुद अपने राज्य में भ्रष्टाचार रोकने के लिए क्या किया? कोई क़दम उठाए? 
- लाइन में लगी जनता की मदद के लिए इन राज्यों में मुख्यमंत्रियों ने स्थानीय स्तर पर क्या इंतजाम किए? कोई मदद की? 
- क्या प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति के बगैर ये कदम उठाया जा सकता था? 
 
6. शादी और बुवाई का समय है। उनको ज़्यादा दिक्कत है। 
- ये निश्चित ही बड़ी समस्या रही। अब उनके लिए भी राहत की घोषणा हुई है। इसके अलावा भी कुछ संबंधों के आधार पर कुछ उधार पर काम चल गया। राहत पहले मिलती तो बेहतर होता पर फिर भी अभी तो काफ़ी समय है। 
- एक बात ये भी है कि लोग शादी के नकली कार्ड छपवाकर भी पैसे निकलवा रहे हैं!! क्या करें यहाँ तो लोग बस तोड़ ढूंढने में लगे रहते हैं। 
 
7. ये सही समय नहीं है। 
- ऐसे कामों के लिए कोई समय सही नहीं होता।
 
8. बैंक और एटीएम की पहुँच बहुत कम है। हम बैंकिंग सुधार नहीं कर पाए और ये क़दम उठा लिया!! 
- तो इतने सालों में ये सब क्यों नहीं हुआ? क्यों गाँव देहात तक बैंक नहीं पहुँच पाई? 
- इसके ठीक होने का इंतज़ार करें तो फिर ये कदम ही उठाना मुश्किल था। 
- नोटबंदी के इस क़दम से लोग बैंकिंग और बिना नकदी के व्यवहार का महत्व समझेंगे, जो उन्हें बरसों पहले ही समझ लेना था। 
- दो ही तरीके हैं – हम रेंगते हुए पहुँचें या एक झटका खाकर उठें और फिर दौड़ते हुए पहुँचें।
 
9. वो बहुत सारा काला धन तो विदेशों में, स्विस बैंक में पड़ा हुआ है!! 
- आज का रखा है क्या? इतने सालों में नहीं आया। 
- हमारे नियंत्रण में हमारा देश है। यहीं से कमा कर बाहर भेजते हैं। जड़ यहाँ है। यहाँ प्रहार होगा तो वहाँ जाएगा तो कैसे? जो अपने हाथ में है वो तो करें! 
 
10. किसका नुकसान हुआ? 
- नकली नोट छापने वालों का।
- आतंकियों का। 
- नक्सलियों का। 
- कश्मीर में पत्थरबाजों को पैसा देने वालों का।
- बोरियों में सालों से इस देश का धन भरकर रखने वालों का।
- टैक्स ना चुकाने वालों का। 
- हाँ, तात्कालिक रूप से इस देश के आम, ईमानदार आदमी, मेहनतकश, रेहड़ी-ठेले वाले, छोटे कारोबारी, व्यापारी, किसानों का नुकसान हुआ है। पर हमारे दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए ये बड़ा वार ज़रूरी था। 
 
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आप इसे अच्छा मानें या बुरा, ये बड़ा क़दम है। बहुत हिम्मत चाहिए। साहस कहें या दुस्साहस। पर हम ये कहते रहें कि इस देश में तो सब ऐसे ही चलेगा, यहाँ कुछ होने वाला नहीं, भ्रष्टाचारियों की मौज है और कोई कदम ही ना उठाएँ तो कैसे चलेगा?
 
अब जब ये क़दम उठाया ही जा चुका है तो पूरी मजबूती से इसके साथ खड़े रहिए। हाँ, तकलीफें, परेशानियाँ भी देखिए, दर्ज कीजिए, हो सके तो कम भी कीजिए। पर अफवाह मत फैलाइए। नुकसान मत पहुँचाइए। उसी आम आदमी का नुकसान होगा जिसके नाम पर आप लड़ना चाहते हैं। 
 
.... और हाँ, और कोई करे ना करे, इतिहास सब दर्ज कर रहा है। (वेबदुनिया न्यूज) 

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