आर्तनाद में बदलता एक राजनीतिक आलाप

-रवींद्र व्या
सुरेश चिपलूणकर के ब्लॉग पर तीसरे मोर्चे की बासी कढ़ी, बेकाबू महँगाई और पाखंडी वामपंथी शीर्षक से एक विचारोत्तेजक राजनीतिक टिप्पणी पढ़ने को मिली। यह हमारे महान लोकतांत्रिक देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के इतने सालों बाद भी नागरिक दो दलों की लगभग एक जैसी दिशाहीन और सत्तालोलुपता राजनीति के शिकार रहे हैं।

एक तरफ देश की आजादी में अपनी-अपनी महती भूमिका निभाने वाली अखिल भारतीय पार्टी कांग्रेस कालांतर में परिवारवाद और तुष्टीकरण में ही अपनी सारी ऊर्जा जाया करती रही है, वहीं भाजपा ने जेपी आंदोलन और जनता पार्टी से पैदा हुई सार्थक और प्रतिरोध की राजनीति को आज बुरी तरह हिंसक और साम्प्रदायिक बना दिया है और लोकतंत्र के आदर्शों और मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाई हैं।

एक साझी और गंगा-जमुनी संस्कृति के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करते हुए यह पार्टी आज नरेंद्र मोदी के रूप में अपने सबसे क्रूर और भयावह चेहरे के साथ सामने है।

आज जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, वर्ल्ड बैंक और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ सरकार की नीतियों को बदलने-प्रभावित करने में जुटी हुई हैं और एक हद तक उन्हें कामयाबी भी हासिल हो रही हो तब ऐसे समय में उसका तीखा विरोध या प्रतिरोध करने के लिए हमारी राष्ट्रीय राजनीति में कोई ठोस और सार्थक हस्तक्षेप नहीं दिखाई देता। इस गहराते अंधेरे में वामपंथी दल एक उम्मीद की रोशनी की तरह दिखाई दे रहे थे लेकिन यह नीच ट्रेजेडी है कि वे भी इस संसदीय लोकतंत्र में सत्तालोलुपता के शिकार हो गए और उस रोशनी को भी बुझाने में संलग्न हो गए, जिसे एक मशाल बनना था।

सिंगुर और नंदीग्राम उस रोशनी का एक खौफनाक अंधेरा है जिसके कारण वामपंथी दलों से मोहभंग और तेज होने लगता है। जाहिर है ऐसे में वामदलों को सामने आते चुनाव के मद्देनजर अपनी जर्जर होती मौजूदगी का गहरा अहसास होने लगा है और यही कारण है उन्होंने वही पुराना आलाप छेड़ा है, जो भारतीय राजनीति के आर्तनाद में बदल चुका है।

इसमें कोई दो मत नहीं कि असहमति का स्वर उससे निकलती प्रतिरोध की ताकत किसी भी लोकतंत्र को सेहतमंद बनाती है। भारतीय राजनीति में तीसरा मोर्चा या तीसरी शक्ति को प्रतिरोध की वह ताकत बनना था।

यह तब और भी जरूरी हो जाता है, जब हमारी दो बड़ी पार्टियाँ लगभग अराजक होती जा रही हों लेकिन एक दो उदाहरण छोड़ दिए जाएँ तो यह कहने में कतई संकोच नहीं किया जाना चाहिए कि तीसरी शक्ति की बात बहुधा सत्ता में अपना हिस्सा हथियाने की कवायद से प्रेरित होती है। वामपंथियों का तीसरा मोर्चा के लिए नए आलाप को इसी आलोक में देखा जाना चाहिए।

URL : http://sureshchiplunkar.mywebdunia.com/articles/1207049040000.htm

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