Iran Israel War: ईरान-इजराइल संघर्षविराम होने से मध्यपूर्व में फिलहाल शांति कायम होने की उम्मीदें भले ही बढ़ गई है लेकिन इस दौरान ईरान ने अपनी सैन्य ताकत का जो दुनिया का सामने प्रदर्शन किया है, वह बेहद खतरनाक है। इजराइल के खिलाफ ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस-3 नामक ईरान के अभियान के दौरान उपयोग किए गए अत्याधुनिक हथियारों और उच्च निर्देशित मिसाइलों से यह साफ हो गया है कि वैश्विक प्रतिबंधों से इस शिया देश पर कोई फर्क नहीं पड़ा है और संयुक्त राष्ट्र उसकी सैन्य भागीदारियों को रोकने में नाकाम रहा है। ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स ने इजराइल और अमेरिका के ठिकानों को जिस मजबूती से निशाना बनाया है, उससे मध्यपूर्व के अन्य देशों में भी दहशत बढ़ गई है।
इजराइल के डिफेंस सिस्टम का लोहा पूरी दुनिया मानती है। आयरन डोम इजराइल का सबसे चर्चित डिफेंस सिस्टम है, जो आजमाया और सफल माना जाता था। इसे 4 किलोमीटर से 70 किलोमीटर की दूरी तक दागे गए कम दूरी की रॉकेटों, गोले और मोर्टार को गिराने के लिए डिजाइन किया गया है। आयरन डोम मिसाइल डिफेन्स सिस्टम रडार के जरिए आने वाली रॉकेटों को पहचानता और ट्रैक करता है और ये तय करता है कि कौन-सी रॉकेट आबादी वाले इलाकों पर गिर सकती है। ईरान ने इजराइल पर 450 से अधिक मिसाइलें और 1000 ड्रोन दागे। इसमें कई मिसाइलें रिहायशी इलाकों में गिरी और इजराइल को भारी नुकसान हुआ।
हाइफा इजराइल का तीसरा सबसे बड़ा शहर है, जो आर्थिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, इंटेल जैसी हाईटेक कंपनियों के दफ्तर हाइफा में मौजूद हैं। हाइफा में इजराइल की सबसे बड़ी ऑइल रिफाइनरी है। इस रिफाइनरी पर हमला करके ईरान से इजराइल की सुरक्षा व्यवस्था को भेदने में बड़ी सफलता हासिल की। हाइफा और तेल अवीव जैसे शहरों की घनी आबादी है और वो इजराइली अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। इन दोनों शहरों पर ईरानी मिसाइलें गिरी। आयरन डोम को इजराइली कंपनी राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स और इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज ने अमेरिकी सहयोग के साथ विकसित किया था। इसे 2011 से इजराइल की रक्षा कर रहे इस सिस्टम को भेदकर ईरान से यह बता दिया है कि कोई भी सुरक्षा सिस्टम फूलप्रूफ नहीं हो सकता।
ईरान-इजराइल संघर्ष में उन्नत मिसाइलों का इस्तेमाल कर ईरान ने यह भी बता दिया है कि उसकी सैन्य क्षमताओं को कमतर आंकने की गलती अब दुनिया नहीं कर सकती। मिसाइल प्रौद्योगिकी की ईरानी खरीद पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों और मिसाइल विकास में शामिल संस्थाओं पर प्रतिबंधों का ईरान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। इस समय ईरान के पास मध्य- पूर्व में सबसे बड़ा और सबसे विविध मिसाइल शस्त्रागार है जिसमें हजारों बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलें हैं, जो इजराइल और दक्षिण-पूर्वी यूरोप तक हमला करने में सक्षम हैं।
इससे यह भी साफ हो गया की ईरान लाल सागर और फारस की खाड़ी में ड्रोन, मिसाइलों और बारूदी सुरंगों से जहाजों और बंदरगाहों पर हमला करके वैश्विक तेल जगत के एक प्रमुख मार्ग को बाधित करने की ईरान की क्षमता को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलों की रेंज में इराक, बहरीन, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, जॉर्डन और सीरिया में अमेरिका के सैन्य अड्डे हैं। अमेरिका के ईरान ने कतर स्थित अल-उदीद अमेरिकी सैन्य हवाई अड्डे पर ताकतवर और विनाशकारी हमला कर अमेरिका को यह संदेश दे दिया कि उसकी सैन्य क्षमताएं कितनी मजबूत है। यह बेस अमेरिकी एयरफोर्स का हेडक्वार्टर है और पश्चिमी एशिया पर वह यहीं से नजर रखता है।
ईरान की कई मिसाइलें स्वाभाविक रूप से परमाणु पेलोड ले जाने में सक्षम हैं, जो अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय होना चाहिए। ईरान ने यमन के हूथी विद्रोहियों जैसे प्रॉक्सी को भी मिसाइलें हस्तांतरित की हैं जिन्होंने सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में नागरिक लक्ष्यों पर हमला करने के लिए और लाल सागर से गुजरने वाले वाणिज्यिक जहाजों को परेशान करने के लिए उनका इस्तेमाल किया है।
ईरान ने 2015 में सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि उसके पास 2,000 किलोमीटर तक मार करने वाली अत्याधुनिक मिसाइलें है। ईरान ने फत्ताह-1 को हाइपरसोनिक मिसाइल बताया है। ईरान के पास खेबर शेकन एक बहु-युद्धक बैलिस्टिक मिसाइल है। खेबर शेकन, ईरान की सबसे उन्नत लंबी दूरी की मिसाइल तकनीकों में से एक है। यह मिसाइल पश्चिमी ईरान से इजराइल तक पहुंचने में सक्षम है। यह बढ़ी हुई सटीकता के लिए एक उपग्रह-निर्देशित प्रणाली और युद्धाभ्यास योग्य वारहेड का उपयोग करने में सक्षम है।
1979 में ईरानी क्रांति के बाद अमेरिका ने ईरान के खिलाफ विभिन्न आर्थिक, व्यापार, वैज्ञानिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का ईरान की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ा। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से मुस्लिम दुनिया का ईरान के साथ रिश्ता खराब रहा है। प्रथम खाड़ी युद्ध से लेकर सुन्नी-शिया विभाजन तक तेहरान और उसके खाड़ी पड़ोसियों के बीच मौलिक मतभेद मौजूद हैं।
1984 में अमेरिकी विदेश विभाग ने ईरान को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी गतिविधियों के लिए समर्थन देने के लिए आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश घोषित किया था। इस घोषणा के साथ ही उस पर व्यापक अमेरिकी प्रतिबंध भी लगाए गए थे। 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 1803 पारित किया। इससे ईरान पर परमाणु संबंधी प्रतिबंधों का विस्तार हुआ। 2013 में अमेरिकी कांग्रेस ने ईरान स्वतंत्रता एवं प्रसाररोधी अधिनियम के तहत ईरान में कारोबार करने वाली कंपनियों के खिलाफ प्रतिबंधों के खतरे को और बढ़ा दिया।
करीब ढाई दशक पहले ईरान ने अवैध रूप से 6 सोवियत निर्मित एयर लॉन्च क्रूज मिसाइलें हासिल की थीं जिनकी रेंज 2,500 किलोमीटर तक बताई जाती थी। अब ईरान बहुत आगे बढ़ गया है। दुनिया को यह भी चिंता है कि जो देश आतंकी समूहों को बैलिस्टिक मिसाइलें दे सकता है, वह मौका आने पर परमाणु हथियार भी दे देगा। ईरान के हुती विद्रोही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पर हमले कर चुके हैं।
ईरान और उसके धार्मिक नेता के इरादे धार्मिक उन्माद के जरिए सांस्कृतिक टकराव बढ़ाने वाले रहे हैं। ईरान के परमाणु ठिकानों को खत्म करने के अमेरिका और इजराइल के अभियान को यूरोप और मध्य-पूर्व के कई देशों का समर्थन हासिल है। हालांकि ईरान को रोकना बेहद कठिन है, क्योंकि रूस और चीन जैसी शक्तियां उसके साथ हैं, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों की परवाह नहीं करतीं। बहरहाल, दुनिया को यह समझना होगा कि यदि ईरान को रोका नहीं गया तो इसके वैश्विक प्रभाव बेहद विध्वंसक हो सकते हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)