ब्रिटिश राज का उगता-डूबता सूरज

भारत में ब्रिटिश राज की परंपरा की तरह प्रिंस और क्वीन का अभिवादन होता रहता है लेकिन ब्रिटेन में अब राजपरिवार के 380 करोड़ पाउंड्स के भारी खर्च को बोझ मानकर विवादों का गुबार उठने लगा है। लोग भी आर्थिक मंदी से त्रस्त हैं। मतलब यह कि अब 'ब्रिटिश साम्राज्य' में अँधेरा अधिक है और रोशनी की उम्मीदें भारत जैसे देशों से हैं। शायद वे सही उम्मीद कर रहे हैं।

दिवाली की धूमधाम दुनिया के किसी भी त्योहार से अधिक खुशियाँ बाँटती लगती है। सुदूर छोटे गाँव की कच्ची झोपड़ी के बाहर टिमटिमाते दीयों से लेकर दिल्ली-मुंबई की संपन्नतम बस्तियों में जगमगाती बिजली की रोशनी भारत के बारे में एक नया विश्वास जगाती है। तभी तो सर्वाधिक शक्तिशाली और संपन्न कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दिवाली के बाद भारत के नए बहीखाते से अधिक लाभ पाने के लिए स्वयं दिल्ली दरबार में पहुँचना आवश्यक समझा है। निश्चित रूप से भारत में गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, भ्रष्टाचार के अँधेरे गलियारे हैं लेकिन करोड़ों लोग और लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रकाश विश्व को चकित कर रहा है।
एक समय था जब कहा जाता था कि "ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज कभी नहीं डूबता।"

इस धारणा की वजह यह थी कि दुनिया के विभिन्न देशों में ब्रिटिश साम्राज्य की छत्रछाया थी, जहाँ सूर्योदय-सूर्यास्त के घोड़े बिलकुल विपरीत दिशा में दौड़ते रहते थे। लेकिन अब ऐसा लगता है कि ब्रिटिश, फ्रेंच, जर्मन, जापान, चीन और अमेरिका में भी यह महसूस हो रहा है कि हिमालय से निकलते सूर्य और गंगा-यमुना की कल-कल धारा से निकले जल से निकलने वाली अपार ऊर्जा का थोड़ा-थोड़ा अंश उन्हें व्यापारिक वरदान में मिलने लगे।

इस बात को आप भावुकताभरी अतिरंजित अभिव्यक्ति न समझें, क्योंकि पिछले दिनों अपनी लंदन-यात्रा में मुझे पश्चिमी ब्रिटिश राज में समस्याओं के अंबार की अँधेरी गलियाँ देखने को मिलीं। लंदन योरप का ही नहीं अमेरिका, अफ्रीका, एशिया को प्रभावित करते रहने वाला बड़ा केंद्र रहा है। 1978 से 2010 के बीच कुछ अवसरों पर मुझे ब्रिटेन जाने के अवसर मिले हैं। इसलिए पिछले 20 वर्षों में आए भारी बदलाव और बिगड़ी हालत का एहसास आसानी से हो सकता है।

हवाई अड्डों से ही शुरू करें- हम अपने भोपाल, रायपुर, राँची, लखनऊ, पटना और कुछ महीने पहले तक दिल्ली हवाई अड्डों की दुर्दशा पर बोलते-लिखते रहे हैं, लेकिन एयर इंडिया के विमान से लंदन के सबसे बड़े हीथ्रो हवाई अड्डे के टर्मिनल-3 पर पहुँचते ही ऐसा लगता है कि भारत के किसी पुराने बस स्टैंड या स्टेशन पर पहुँच गए हों। छत पर लटकते तार, बस स्टैंड पर लगी रस्सियों और पुरानी टेबल-कुर्सियों पर अँगरेज आव्रजन अधिकारियों की बजाय अधिकांश भारतीय या दक्षिण एशियाई चेहरे, सामान ढोने के लिए निहायत घिसी-पिटी ट्रॉलियाँ और पिटे-पिटाए फटिचर से दिख रहे अँगरेज स्त्री-पुरुष।

यूँ हवाई अड्डे के कुछ हिस्से ठीक लगते हैं। फिर भी दिल्ली के नए इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का टर्मिनल-3 कई गुना सुंदर और भव्य हो गया है। भारत से आने वालों के लिए सत्तर के दशक में हवाई अड्डे पर ब्रिटिश अधिकारियों के चेहरों पर अजीब-सा अवमानना का भाव स्पष्ट दिखता था। इस बार हमारे पासपोर्ट-वीसा को उलटने-पलटने वाले अधिकारी ने बड़े सम्मान के साथ कहा कि "क्या आठ दिन लंदन में रहेंगे । यहाँ इतना क्या है?

हमने उसे दिलासा दिया कि "सचमुच ज्यादा नहीं है और सोचते हैं आसपास के नगरों की झलक देख लेंगे।" अब हवाई अड्डे पर हमारे भाई सफाई करते कम दिखाई देते हैं, ड्यूटी फ्री शॉप को नियंत्रित करते ही नहीं पूरे लंदन की बैंकिंग व्यवस्था, सॉफ्टवेयर कंपनियाँ, चिकित्सा व्यवस्था, परिवहन व्यवस्था को संभालने की 30-40 प्रतिशत जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। वित्तीय कंपनियों में शीर्ष पदों पर भारतीय युवा बैठे हुए हैं।

पहले कभी साउथ हॉल क्षेत्र को प्रवासी भारतीयों की बस्ती माना जाता था लेकिन अब लंदन की अधिकांश बस्तियों में भारतीय-पाकिस्तानी, ईरानी, अफगानी, अफ्रीकी छाए हुए दिखते हैं। जब अँगरेज जा रहे थे तो उनके कई घमंडी नेता और अफसर कहते थे कि उनके हटने के बाद ये लंगोटी वाले राज-काज नहीं कर पाएँगे और हालत बुरी होगी । 63 साल बाद अब भारतीय यह कह सकते हैं कि यदि भारतीय मूल के लोग लंदन छोड़ दें तो एक हफ्ते में ही वहाँ सब कुछ ठप हो जाएगा।

विदेशी मूल के लोगों के इतने बड़े योगदान के बावजूद ब्रिटेन की हालत खस्ता होने के लिए वहीं के अदूरदर्शी नेता, सामंती मानसिकता वाले अधिकारी-व्यापारी और पुरानी रूढ़ियों-हठधर्मिता की मानसिकता से प्रभावित लोग जिम्मेदार हैं। जहाँ देखो, वहाँ समस्याएँ। हम भारत जैसे सवा अरब के विकासशील देश में शैक्षणिक सुविधाओं की कमियों पर आक्रोश व्यक्त करते हैं, वहाँ अकेले लंदन में दो महीने पहले शुरू हुए शिक्षा-सत्र में लगभग दो लाख युवाओं को कॉलेज-विश्वविद्यालयों में प्रवेश नहीं मिल सका है।

यही नहीं, पिछले सप्ताह ही ब्रिटिश सरकार ने कॉलेजों की वार्षिक फीस लगभग तीन गुना बढ़ा दी और हाहाकार मच गया है। छात्र, माता-पिता और शिक्षक, सड़कों पर सरकार के विरुद्ध सुबह से शाम तक जुलूस निकालते हुए दिखाई दिए। सरकार ने इस सप्ताह जनता की मूलभूत सुविधाओं के बजट में लगभग 7 अरब 50 करोड़ पाउंड्स की कटौती कर दी है। अंदाज लगा लीजिए भारतीय मुद्रा में करीब 500 अरब रुपयों से अधिक की कटौती से जनता का हाल क्या होगा?

हमारे देश में तो आधुनिक हवाई अड्डों और विमान कंपनियों तक में कर्मचारियों की छँटनी मुश्किल हो रही है, वहाँ इस साल सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगभग पाँच लाख लोगों को छँटनी का फरमान थमाया जा रहा है। अपनी ममताजी और उनकी सरकार रेल किराया बढ़ाने को ही तैयार नहीं होती, वहाँ ब्रिटेन में रेल किरायों में तीस प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी गई है। देश की संपूर्ण परिवहन व्यवस्था के खर्च में 21 प्रतिशत की कटौती का ऐलान हो गया है।

मजेदार बात यह है कि आतंकवादी खतरों तथा अपराधों की संख्या बढ़ने के बावजूद गृह मंत्रालय की कानून-व्यवस्था, मशीनरी तथा न्याय-तंत्र के खर्च में 23 प्रतिशत की कटौती होने जा रही है। इसी तरह निजी आय करदाताओं से विभिन्न मदों में वसूली बढ़ाई जा रही है। पिछले दो वर्षों में बंगलों और फ्लैटों के दाम कई गुना गिर गए। हर सड़क और मोहल्ले में मकानों के बेचने-किराए पर देने संबंधी पट्टियाँ लगी मिल रही हैं। ब्रिटिश सांसदों के घोटालों का लगातार भंडाफोड़ हो रहा है। घर का पता गलत बताकर कुछ हजार पाउंड्‍स की बेईमानी के मामले भी सामने आ रहे हैं। प्रधानमंत्री ही नहीं, दोनों बड़े राजनीतिक दल कमजोर हालत में है।

अपनी राजधानी दिल्ली में कुछ अर्से पहले शुरू हुई मेट्रो के थोड़े अटकने-लटकने, कभी-कभार दो घंटे फँस जाने पर हम अपने अखबार और टेलीविजन चैनलों पर प्रमुख खबरें बना देते हैं। संपन्न, शक्तिशाली लंदन में शनिवार-रविवार को भूमिगत मेट्रो रेल व्यवस्था बुरी तरह चरमराई रहती है। हमें उन दिनों में मेट्रो के डिब्बे दिल्ली की पुरानी बसों से अधिक खचाखच भरे हुए मिले। कई स्टेशनों पर गंदगी, टूटी बोतलें और डिब्बे, बदहवास दौड़ते-भागते लोग परिवहन और सामाजिक हालत की व्यथा साबित करते हैं।

दूसरी तरफ दो वर्ष बाद 2012 में होने वाले ओलिम्पिक के लिए 9 अरब पाउंड्‍स का बजट रखा गया है। लेकिन ब्रिटिश परंपरा-संस्कृति की याद दिलाने वाली नेशनल गैलरीज और सांस्कृतिक केंद्रों के खर्चों में 15 प्रतिशत की कटौती होने जा रही है। भारत में बीबीसी को बड़े उत्साह और सम्मान से देखा जाता है लेकिन बीबीसी लंदन की हिन्दी प्रसारण सेवाओं में व्यापक छँटनी तो जारी है, बीबीसी की स्थानीय ब्रिटिश और वर्ल्ड पसारण सेवाओं में बड़े पैमाने पर छँटनी तथा खर्च में कटौती हो रही है। बड़े पुराने अखबारों के साइज भी छोटे हो गए हैं और नए रूप में दिखने लगे हैं।

रेडियो-टीवी की लाइसेंस फीस, केबल-डिश कनेक्शन फीस की बढ़ोतरी होने पर संभव है लोग अपने कम्प्यूटर से दिल बहला लें, लेकिन चिकित्सा सुविधा और आकाश में राख छाने के प्रदूषण से राहत का इंतजाम कैसे होगा? अव्यवस्था की पराकाष्ठा यह है कि पिछले दिनों एक अत्याधुनिक पनडुब्बी स्काई ब्रिज के पास भटक गई तथा चट्‍टान से टकराते-टकराते बची। एक अरब पाउंड्‍स की यह नौसैनिक पनडुब्बी गुप्त ऑपरेशन के लिए तैयार हुई है लेकिन इस तरह सतह पर आ जाने के कारण किसी पुराने जहाज की तरह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गई।

ब्रिटेन से अत्याधुनिक हथियार खरीदने को तैयार भारत सरकार जरा सावधान रहे। ब्रिटेन ने दो दशक पहले वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर टिका दिए थे, जो निहायत खराब साबित हुए। भारत में ब्रिटिश राज की परंपरा की तरह प्रिंस और क्वीन का अभिवादन होता रहता है लेकिन ब्रिटेन में अब राजपरिवार के 380 करोड़ पाउंड्‍स के भारी खर्च को बोझ मानकर विवादों का गुबार उठने लगा है। मतलब यह है कि अब 'ब्रिटिश साम्राज्य' में अँधेरा अधिक है और रोशनी की उम्मीदें भारत जैसे देशों से है।
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