लड़के के लिए विवाह से पूर्व सेक्स अधर्म नहीं है?

शादी से पूर्व हर सेक्स बलात्कार नहीं क्योंकि....

दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि विवाह के वादे के आधार पर दो एडल्ट्स के बीच का सेक्स बलात्कार नहीं है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेन्द्र भट ने कहा कि कोई महिला, विशेषकर कामकाजी महिला जो विवाह के आश्वासन पर सेक्स करती है तो ऐसा वह अपनी रिस्क पर करती है। उसे बलात्कार नहीं माना जा सकता।

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क्या है मामला

29 वर्षीय युवक निवासी पंजाब के ‍विरुद्ध एक युवती द्वारा मई 2011 में बलात्कार का आरोप लगाया गया। शिकायत दर्ज कराने के 1 महीने बाद युवक को गिरफ्तार किया। युवती एक निजी कंपनी में प्रशासनिक काम कर रही थी।

महिला ने आरोप लगाया कि जुलाई, 2006 में वेबसाइट पर इंटरनेट के जरिए इस युवक के संपर्क में आई और इसके बाद आरोपी ने विवाह करने का वादा करते हुए कई बार उससे शारीरिक संबंध स्थापित किए।

जब 2008 में वह गर्भवती हो गई तो इस युवक ने उससे विवाह करने की बजाय उस पर गर्भपात कराने का दबाव डाला और कहा कि उसकी बहनों की शादी हो जाने के बाद वह उससे विवाह कर लेगा। बहनों की शादी होने के बावजूद उसने उसके साथ विवाह नहीं किया। इसकी बजाय उसने और उसके माता-पिता ने उसे गालियां दीं और उसका उत्पीड़न किया।

हालांकि आरोपी ने महिला के दावे का विरोध किया और कहा कि सोशल नेटवर्किंग के जरिए वे दोस्त बने और इसके बाद कभी-कभी मिलते थे, लेकिन उसने कभी भी उसके साथ सेक्स नहीं किया।

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कौन सच, कौन गलत

कौन सच है और कौन गलत यह तो वे दोनों ही जानते हैं जो इसमें शामिल थे लेकिन इस केस का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। इस मामले के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि पक्ष-विपक्ष दोनों दोषी हो सकते हैं लेकिन अदालत की यह टिप्पणी हर मामले के लिए मुनासिब नहीं कही जा सकती। एक सामान्य लड़की भावनात्मक स्तर पर कमजोर होती है। कुछ तो कुदरती तौर पर वह भावुक होती है दूसरे छल-कपट से दूर वह नि:स्वार्थ प्रेम करती है।

प्रेम के लिए सर्वस्व देने वाली लड़की को अगर धोखा मिले तो दुनिया की अदालत भी उसे ही कटघरे में खड़ा करती है कि उसने धर्म विरुद्ध काम किया ही क्यों? यानी सारे धर्म उसी के लिए हैं। लड़के लिए विवाह से पूर्व सेक्स अधर्म नहीं है।

सवाल यह भी है कि उसके विश्वास की हत्या हुई, उसके प्यार को छला गया, उसकी कोमल भावनाओं का शिकार कर उसके शरीर के साथ खेला गया तब भी दोषी वही है। जिसने चालाकी से यह क्रूर खेला है वह निर्दोष है। बरसों से यही तो होता आ रहा है कि लड़के लड़की के साथ 'सबकुछ' कर ले तब भी ना उनकी आत्मा पर बोझ होता है ना ही उनकी जिंदगी में कोई हलचल होती है जबकि एक लड़की का पूरा वजूद हिल जाता है।

उसके दिल-दिमाग-देह से लेकर आत्मा तक में तूफान आ जाता है बावजूद इसके वह एक विश्वास की कच्ची डोर थामे रखती है कि चलो शादी तो इसी से होगी लेकिन वही जब शादी से इंकार कर दे तो वह बिखर जाती है क्योंकि अपने मन और शरीर को एक बार किसी को देने के बाद किसी और के बारे में सोचना भी उसके लिए पाप हो जाता है।

वही व्यक्ति उसके 'शरीर के इस्तेमाल' के बाद जब हर अदालत से बरी हो जाए तो सोचने में आता है कि स्त्री की स्वतंत्रता, अधिकार और सुरक्षा आखिर किस स्तर तक पहुंची है?

क्यों तैयार हो जाती है शादी से पूर्व सेक्स के लिए लड़कियां पढ़ें अगले पेज पर

क्यों एक लड़की शादी से पूर्व सेक्स के लिए तैयार हो जाती है जबकि समूची सामाजिक व्यवस्था शादी के बाद ही सेक्स करने की इजाजत देती है। इसका संवेदनशील पक्ष सिर्फ यही है कि एक लड़की, लड़के पर इतना भरोसा कर रही है कि वह शादी के वादे को शादी से भी बढ़कर मान रही है ऐसे में वादे को तोड़ने वाला दोषी हुआ या धोखा खाने वाली लड़की? शरीर उसका खिलौना बना, आत्मा उसकी छली गई, धोखा उसे मिला और सजा भी उसे ही मिली।

क्या पढ़ी-लिखी लड़की भावुक नहीं हो सकती

अदालत का यह तर्क भी हास्यास्पद है कि लड़की पढ़ी-लिखी और कामकाजी है तो शादी से पहले सेक्स उसकी अपनी 'रिस्क' पर होता है। अदालत के इस तर्क को दो स्तरों पर देखा जा सकता है-

एक तो भावनात्मक रूप से मूर्ख लड़कियां मात्र वादे के भरोसे अपने आपको अपने मित्र के हवाले करने से पहले कम से कम एक बार सोचेगी।

दूसरा यह कि पढ़ी-लिखी और कामकाजी होने भर से कोई होशियार, समझदार और व्यावहारिक हो जाए यह कतई जरूरी नहीं। प्यार और दैहिक संबंधों का मामला किसी पढ़ाई-लिखाई से ताल्लुक नहीं रखता। कई बार कम पढ़ी-लिखी लड़कियां इन ‍'विशेष मामलों' में शहरी और कामकाजी लड़कियों से कहीं आगे पाई गई है।

ग्राम स्तर पर ‍विवाह पूर्व गर्भपात के आंकड़े डरा देने वाले हैं। पिछले दिनों मध्यप्रदेश की एक सरकारी योजना के तहत होने वाली शादी के दौरान कई 'लाड़लियां' गर्भवती पाई गई। तो क्या यह कहा जाएगा कि सब की सब अपनी मर्जी के खिलाफ इस अवस्था में पहुंची और अगर मामला शहर का है तो सब लड़कियां इस अवस्था के लिए स्वयं जिम्मेदार है क्योंकि वे पढ़ी-लिखी है?

यह मामला बेहद नाजुक है। अत: इसे किसी एक मामले को आधार बना कर नहीं देखा जा सकता। अदालत की इस तरह की टिप्पणी बेतुकी और बेमानी है।

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