हमने गमलों में चाँद-किरण बोई हैं

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कवि‍ता एक ऐसी वि‍धा है जि‍सके माध्‍यम से बहुत कम शब्‍दों में बहुत कुछ कहा जा सकता है। कवि‍ता भाव प्रकटन का सबसे संक्षि‍प्त माध्‍यम होने के साथ ही उतना जटि‍ल भी है। यहाँ जिस ब्लॉग की चर्चा की जा रही है उसमें इसी जटि‍ल माध्‍यम को अत्‍यंत सहजता से ब्‍लॉगर द्वारा अपनी रचनाओं में प्रयोग कि‍या गया है।

सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई जैसे अनेक रचनाकारों ने पद्य के माध्‍यम से अपनी बात कही क्‍यों उस समय गद्य इतना प्रचलि‍त माध्‍यम नहीं था और प्रवचनों का चलन कम था। तब संत लोग ज्ञान की बात भजनों और कीर्तनों के माध्‍यम से कहा करते थे। प्राचीन काल से लेकर आधुनि‍क काल तक कवि‍ता की वि‍धा में कई परि‍वर्तन हुए हैं।

आधुनि‍क काल की कवि‍ताएँ प्रयोगवाद और नई कवि‍ता के रूप में मि‍लती हैं। वॉशिंगटन में रहने वाले राकेश खंडेलवाल ने अपने ब्‍लॉग 'गीतकलश' में अपनी वि‍वि‍ध रंगी कवि‍ताओं को संजोया है। श्री खंडेलवाल वि‍गत आठ वर्षों से अमेरि‍का के वॉशिंगटन में एक गैर लाभकीय संस्‍थान में कार्यरत हैं। साथ ही वे वहाँ की वॉश हिंदी समि‍ति‍ के चेयरमेन भी हैं और नि‍यमि‍त रूप से ब्‍लॉग लि‍खते हैं। श्री खंडेलवाल ने 2005 से अपना ब्‍लॉग लि‍खना शुरू कि‍या और उनकी पहली कवि‍ता से लेकर अब तक की उनकी सभी रचनाओं को ब्‍लॉग जगत का अभूतपूर्व प्रतिसाद मि‍ला है।

शब्द का संयोग ऐसा भाव को मिलता सहारा।
हो छटा राकेश की तो गीत बन जाए सितारा।।

और,

लिखती नाम फूल की पांखुर पर रोजाना शबनम
जमना तट की रेती पर लिखता रहता है मधुबन।

ब्‍लॉगर अपने अपनी लगभग हर कवि‍ता में प्रकृति‍ के वि‍भि‍न्‍न रूपों का सहारा लेकर अपने भावों को रेखांकि‍त कि‍या है। शब्‍दों का चयन वो जि‍स अलौकि‍कता से करते हैं वो नि‍श्चि‍त रूप से एक अद्भुत कल्पनाशक्ति का परि‍चय है। उनकी कवि‍ता के अद्भुत विधान को देखकर लगता है मानो जैसे छायावाद अपने नए रूप में मुखरि‍त हो रहा है।

सम्बन्धों के वटवृक्षों पर उग आती हैं अमर लताएँ
और तुम्हारे बिन मन जुड़ता नहीं तनिक रिश्तों-नातों में

और,

अभिलाषा की हर कोंपल को बीन बहारें साथ ले गईं
जीवन की फुलवारी केवल बंजर की पहचान हो गई

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प्रेम और प्रकृति‍ सौंदर्य की ऐसी व्‍यंजना कवि‍ता जगत में अब वि‍रले ही पढ़ने को मि‍लती है। आनंद, दुख, प्रेम, वि‍रह, प्रतीक्षा जैसे अनेक मानव सुलभ मनोभावों को ब्‍लॉगर ने अपनी कवि‍ताओं में पि‍रोया है। शैली की बात करें तो तुकांत कवि‍ताओं की एक अलग ही शैली को ब्‍लॉगर ने अपनी कवि‍ताओं में गढ़ा है या हो सकता है कि‍ कवि‍त्त का यह चमत्कार उनसे अनजाने में ही गढ़ा गया हो। तुकांत कवि‍ता की एक भि‍न्‍न शैली राकेश जी की कवि‍ताओं में देखने को मि‍लती है।

जीवन के प्रति‍ आशावादी नजरि‍ए को कुछ इस तरह बयाँ करते हैं :

हमने गमलों में सदा चाँद-किरण बोई हैं
और चाहा है खिलें फूल सितारों के ही
हमने आशाएँ दिवाली के दियों में पोईं हैं
और चाहा है रहें राह बहारों की ही।

तो दूसरी ओर नि‍राशा के क्षण ऐसे प्रकट होते हैं :

काजल पहरेदार हो गया
सपने रोके आते-आते
रंग बिखर रह गए हवा में
चित्र रहे बस बन कर खाके
होठों की लाली से डर कर
मन की बात न बाहर आई
कंगन करता रहा तकाजा
लेकिन चुप ही रही कलाई।

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