दुबई की चमक-दमक में छिपी एक अमानवीय कहानी...

दुबई की चमक-दमक के पीछे कितनी अमानवीय कहानियां छिपी हैं, यह कोई नहीं जानता। भारतीय उपमहाद्वीप के मजदूर खाड़ी देशों में अपने परिवार को समृद्ध बनाने का ख्वाब लेकर जाते हैं, मगर हकीकत में गांठ का भी गंवा देते हैं। ...और साथ ही शुरू होती है कि कभी न खत्म होने वाले दर्द की कहानी। यह कहानी भी ऐसे ही मजदूरों की पीड़ा को बयान करती है, जो खाड़ी देशों में नारकीय जीवन जी रहे हैं और जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। 

इस दुनिया में तीन तरह के दुबई हैं और ये तीनों ही एक दूसरे के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। यहां उन लोगों का दुबई है जोकि अपना देश छोड़कर यहां रहने आते हैं। दूसरा दुबई उन लोगों का है जोकि अमीरात के रहने वाले हैं और जिनके प्रमुख शेख मोहम्मद हैं। और इनके अलावा, तीसरी तरह का भी दुबई है जिसमें इस शहर को बनाने वाले वे विदेशी लोग रहते हैं जोकि यहां किसी ना किसी तरह से फंसे हुए हैं और यहां से निकल नही पाते हैं।

यह लोग आपको सहज ही दिखाई नहीं पड़ते।‍ आप उन्हें हरकहीं गंदगी भरी नीले रंग की वर्दियों में देखते हैं, इनके अफसर लोग इन पर चिल्लाते रहते हैं और ये अपराधियों की तरह चेन में बंधे किसी अपरा‍धी‍ गिरोह के लोग दिखाई देते हैं, लेकिन आपको इनको ना देखने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह एक मंत्र है : शेख ने शहर बनवाया, शेख ने शहर बनवाया। लेकिन मजदूर? कैसे मजदूर?

दुबई बनाने वाले लाखों मजबूरों को प्रत्येक शाम को उनके निर्माणस्थल से बसों में भरकर एक बड़े कंक्रीट के जंगल में पहुंचाया जाता है जो कि शहर से एक घंटे की दूरी पर है। यहां इन सबको मुर्गियों के दड़बेनुमा कमरों में भर दिया जाता है। कुछेक वर्षों पहले तक यह हालत थी कि इन लोगों को जानवरों को ले जाने वाले ट्रकों में लाया, ले जाया जाता था लेकिन चूंकि विदेशी लोगों की नजरों में यह बात बुरी लगती थी इसलिए इन लोगों को छोटी धातु की बसों में लाया, ले जाया जाता है जोकि मजदूरों को रेगिस्तान की गर्मी में ग्रीनहाउस की तरह लगती हैं। इन मजदूरों के शरीर इस तरह पसीना निकलता रहता है मानो स्पंज को धीरे-धीरे निचोड़ा जा रहा हो।

मलबे के पैबंद लगीं मीलों तक एक जैसी कंक्रीट इमारतों को सोनापुर का नाम दिया गया है। इसका अर्थ होता है सोने का शहर लेकिन यहां करीब 3 लाख लोगों को ठूंस-ठूंसकर रखा जाता है। मैं एक कैम्प में रुकता हूं जहां से पसीने और नाली में बहने वाले गंदे पानी की तेज गंध आ रही है। लोग घुटनों के बल चारों ओर बैठ जाते हैं, वे अपने साथ होने वाले व्यवहार को सुनाने के लिए किसी को भी सभी कुछ बताने के लिए तैयार हैं।

दुबला पतला 24 वर्ष का साहिनाल मुनीर बांग्लादेश के डेल्टा इलाके से आया है, वह कहता है कि यहां तक आपको लाने के लिए वे कहते हैं कि दुबई स्वर्ग है। जब आप यहां आते हैं और महसूस करते हैं कि आप नर्क में आ गए हैं। चार वर्ष पहले दक्षिणी बांग्लादेश में साहिनाल के गांव में एक रोजगार दिलाने वाला एजेंट आया था। उसने गांव के लोगों से कहा कि वहां पर वे लोग निर्माण स्थलों पर मात्र नौ बजे से पांच बजे तक काम करके एक महीने में 40 हजार टका (700 पाउंड) कमा सकते हैं।

 

55 डिग्री में हाड़तोड़ काम और वेतन सिर्फ 500 दिरहम... पढ़ें अगले पेज पर...

 


यह ऐसा स्थान है जहां ठहरने का बहुत अच्छा इंतजाम, खाने का बहुत अच्छा प्रबंध है और वहां उन्हें अच्छी तरह से रखा जाता है। 

यहां तक पहुंचने के लिए मात्र उन्हें इतना करना है कि वर्क वीजा के लिए अग्रिम 2लाख 20 हजार टका (2300 पाउंड) की राशि देनी होगी। इस फीस का भुगतान वे पहले छह महीनों में आसानी से कर सकते हैं। इसलिए साहिनाल ने इस स्वर्ग में पहुंचने के लिए अपनी पारिवारिक जमीन बेच दी, एक स्थानीय साहूकार से कर्जा भी ले लिया।

जैसे ही वह दुबई हवाई अड्‍डे पर पहुंचा, उसकी कंपनी के लोगों ने उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया। इसके बाद उसने अपना पासपोर्ट कहीं भी नहीं देखा है। इसके बाद उससे सख्ती से कहा गया कि वह अब से रेगिस्तान की गर्मी में प्रतिदिन 14 घंटे काम करेगा।

जहां गर्मियों में पारा 55 डिग्री तक पहुंच जाता है और पश्चिमी देशों के पर्यटकों से कहा जाता है कि वे पांच मिनट के लिए भी बाहर की गर्मी में ना रहें। उसे प्रतिमाह 500 दिरहम (90 पाउंड) की मजदूरी मिलती थी। जितनी राशि का उससे वायदा किया गया था यह राशि उसकी एक चौथाई से भी कम थी। कंपनी ने उससे कहा कि अगर तुम्हें यह काम पसंद नहीं है तो घर चले जाओ। तब उसका कहना था कि मैं कैसे घर जा सकता हूं, मेरा पासपोर्ट आपके पास है और मेरे पास टिकट के लिए भी पैसे नहीं हैं। तब उसे जवाब दिया गया कि 'बेहतर है तुम अपने काम पर जाओ।'

सानिहाल घबराहट में था। बांग्लादेश में उसका परिवार- उसका बेटा, बेटी, पत्नी और माता, पिता पैसे का इंतजार कर रहा था। वे उत्साह से भरे थे कि उनके बेटे ने कमाई का बड़ा जरिया पा लिया है लेकिन उसे तो बांग्लादेश से दुबई पहुंचने के लिए ही दो से अधिक वर्ष तक काम करना था, वह भी उतने पैसे के लिए जो कि वह अपने घर में कमाता था, उससे भी कम थे। उसने मुझे अपना कमरा दिखाया। यह एक बहुत ही छोटा, तंग, कंक्रीट की कोठरी है जिसमें तीन छतों वाला सोने के पट्‍टे हैं और यहां वह 11 अन्य साथियों के साथ रहता है। उसके उपयोग की सारी वस्तुओं, तीन कमीजें, पैंटों का एक जोड़ा और एक सेलफोन उसके सोने के स्थान पर गुड़ीमुड़ी पड़े हैं।

 

 

उफ! इस स्थिति में तो जानवर भी न रहे... पढ़ें अगले पेज पर...

कमरे में बदबू भरी है क्योंकि कैम्प के एक कोने में बने शौचालयों के जमीन में बने छेद पूरी तरह मल से भरे हुए हैं और इन पर मक्खियों का झुंड मंडरा रहा है। कमरों में कोई एयर कंडीशनिंग या पंखे नही लगे हुए हैं और गर्मी 'असहनीय' है। आप यहां सो नहीं सकते हैं। आप केवल पसीना बहा सकते हैं और सारी रात अपने शरीर को खुजला सकते हैं। भीषण गर्मी में लोगों को फर्श पर, छत पर या जहां कहीं भी क्षण की हवा के लिए सोने को मिलता है, सो जाते हैं।

इन कैम्पों में मिलने वाला पानी बड़े बड़े सफेद कंटेनरों में भरा होता है। इसका नमक भी दूर नहीं किया जाता है : इसमें नमक की गंध आती है। वह कहता है कि इससे हम बीमार पड़ जाते हैं लेकिन हमारे पास पीने के लिए दूसरा पानी नहीं है। वह कहता है कि काम दुनिया में सबसे ज्यादा खराब है। आपको 50 किग्रा की ईंटों को और सीमेंट के ब्लॉक्स को भयानक गर्मी में ऊपर ले जाना पड़ता है। यहां इतनी गर्मी है कि कहीं और नहीं हो सकती है। आपके शरीर से इतना पसीना आता है कि आप दिनों और हफ्तों तक पेशाब तक नहीं कर पाते हैं।

ऐसा लगता है कि सारा द्रव आपके शरीर की त्वचा से बाहर आता है और आपके शरीर से बदबू आती है। आपको चक्कर आते हैं और आप बीमार हो जाते हैं लेकिन आपको काम रोकने की अनुमति नहीं है। सिर्फ दोहपर में एक घंटे के लिए काम बंद किया जाता है। आपको पता है कि अगर आप कोई चीज छोड़ देते हैं या फिसल जाते हैं तो आपकी मौत भी हो सकती है। अगर आप बीमार बनकर छुट्‍टी लेते हैं तो आपकी तनख्‍वाह काट ली जाती है और आप यहां और भी लम्बे समय के लिए फंसे रहते हैं।

फिलहाल वह एक चमचमाती नई इमारत के 67वें फ्लोर पर काम कर रहा है जहां वह ऊपर की ओर इमारत बना रहा है, आकाश की ओर यानी और अधिक गर्मी की ओर। वह इस इमारत का नाम नहीं जानता। अपने चार वर्षों के प्रवास में उसने पर्यटकों के बीच प्रसिद्ध दुबई कभी नहीं देखी है। वह केवल इमारतों के फ्लोर दर फ्लोर देख पाता है। क्या वह क्रोधित है? वह लम्बे समय से शांत है। यहां कोई भी अपना गुस्सा नहीं दिखाता है। कोई दिखा भी नहीं सकता है। आप लम्बे समय के लिए जेल में डाले जा सकते हैं और इसके बाद आपको अपने देश वापस भेज दिया जाता है। पिछले वर्ष चार महीनों तक वेतन ना मिलने से नाराज कुछ मजदूरों ने हड़ताल कर दी थी। दुबई पुलिस ने नुकीले किनारों वाले तार से कैम्प को घेर लिया और पानी की बौछारों से मार-मारकर बेदम कर दिया और फिर से काम पर भेज दिया।

न वेतन मिला और न रहने की जगह बिजली... पढ़ें अगले पेज पर...


इस 'विद्रोह के सरगनाओं' को जेल में डाल दिया गया। मैं एक अलग तरह से सवाल पूछता हूं। क्या साहिनाल का यहां आने का दुख होता है? सारे लोग अटपटे ढंग से अपने सिर झुला लेते हैं। हम इस बारे में कैसे सोच सकते हैं? हम यहां फंसे हुए हैं। अगर हम अपने पछतावे के बारे में सोचने लगें तो... यह वाक्य को अधूरा छोड़ देता है। आखिर में एक दूसरा मजदूर शांति भंग करता है और आगे बोलता है, मैं अपने देश, परिवार और अपनी जमीन को बहुत याद करता हूं। हम बांग्लादेश में भोजन पैदा कर करते हैं। यहां कुछ भी पैदा नहीं होता है। केवल तेल और इमारतें।

जब से मंदी आई, दर्जनों कैम्पों में बिजली काट दी गई और लोगों को महीनों तक वेतन नहीं दिया गया। उनकी कंपनी उनके पासपोर्ट और वेतन के पैसे लेकर भी गायब हो गई। हमारा सब कुछ लूट लिया गया है। अगर हम किसी तरह जल्द बांग्लादेश पहुंच भी जाते हैं तो साहूकार तुरंत ही हमसे उनके पैसों का भुगतान करने को कहेंगे। और जब हम नहीं कर पाएंगे तो हमें जेल में डाल दिया जाएगा। यह सब अवैध लगता है। न‍ियोक्ताओं से उम्मीद की जाती है कि वे समय से लोगों का वेतन दें, कभी भी वे आपके पासपोर्ट नहीं छीनते हैं, गर्मी में आपको छुट्‍टी देते हैं लेकिन मैं यहां किसी भी ऐसे आदमी से नहीं मिला जिसने कहा हो ‍क‍ि हां ऐसा होता है। किसी ने भी नहीं कहा। इन लोगों को धोखे से यहां लाया जाता है और ठहरे रहने के लिए बाध्य किया जाता है और इस काम में दु‍बई के अधिकारियों की भी मिलीभगत होती है।

साहिनाल यहां मर सकता है। ‍भवन निर्माण परियोजनाओं पर काम करने वाले एक ब्रिटिश आदमी ने मुझे बताया, कैम्पों में और निर्माण स्थलों पर बहुत अधिक आत्महत्याएं होती हैं लेकिन इनकी कोई जानकारी नहीं दी जाती है। इन्हें दुर्घटनाएं कहकर दबा दिया जाता है। इतना ही नहीं, उनके परिजन भी मुक्त नहीं है और उन्हें भी विरासत में केवल कर्ज मिलता है। ह्यूमन राइट्‍स वाच की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि गर्मी में भारी श्रम, बहुत अधिक काम और आत्महत्याओं की सही संख्याओं पर पर्दा डाला जाता है लेकिन केवल 2005 में ही भारतीय कोंसुलेट ने अपने 971 नागरिकों की मौत दर्ज की है।

जब आंकड़ा सार्वजनिक हो गया तो कोंसुलेट्‍स से कहा गया कि वे इन मौतों की गिनती करना बंद कर दें। रात के समय मैं साहिनाल और उसके साथियों के साथ बैठता हूं और उन लोगों के पास जितने बाकी पैसे हैं, उन्हें मिलाकर वे सस्ती शराब की एक बोतल खरीद लाते हैं। वे इसके बड़े-बड़े घूंट लेते हैं और दर्द भरी आवाज में साहिनाल कहता है कि यह आपको सुन्न कर देने में मदद करती है। दूर दुबई का चमचमाता क्षितिज स्पष्ट दिखाई देता है, जिसे उसके जैसे लोगों ने बनाया है। (डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी के लेख का एक भाग, जो उन्होंने इंडिपेंडेंट में लिखा था)

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