एयर एशिया विमान दुर्घटना, संभावनाओं के आइने में

जावा सागर के ऊपर रविवार सुबह लापता हुए एयर एशिया के प्लेन का 30 घंटे बाद भी कोई सुराग नहीं मिला है। इस प्लेन पर 162 यात्री और चालक दल के सदस्य सवार हैं। यह विमान इंडोनेशिया के दूसरे बड़े शहर सुरबाया से उड़ा था और अपने गंतव्य सिंगापुर के आधे रास्ते पर पहुंच गया था। तभी यह विमान राडार से गायब हो गया था।  
कई देश लापता प्लेन को खोजने में इंडोनेशिया की मदद कर रहे हैं। इस बीच, खोजी दलों ने इंडोनेशिया के तटीय क्षेत्र में समुद्र के पानी में अभियान शुरू कर दिया। हालांकि इस बात को निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है लेकिन ज्यादातर संभावना इसी की है और एक राहत अधिकारी का भी कहना है कि प्लेन क्यू जेड 8501 के समुद्र के तल में होने की आशंका है।
 
इंडोनेशियाई खोज और बचाव एजेंसी से जुड़े अधिकारी ‍इन सवालों पर भी विचार कर रहे हैं कि किन कारणों से संभवत: विमान एकाएक नीचे गिर गया है। जबकि यह बात सभी जानते हैं कि प्लेन उड़ान के सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र में था। इस हिस्से में वर्ष 2004 से लेकर 2013 के बीच मात्र 10 फीसदी घातक दुर्घटनाएं हुई हैं। सबसे बड़ी आशंका यह है कि जहाज खराब मौसम के समय गुजर रहा होगा और इसके परिणामस्वरूप यह किसी भीषण आंधी और बिजली वाले तूफान में घिर जाने का शिकार हुआ होगा।   
 
आमतौर पर एयरबस जेट विमानों में अत्याधुनिक कम्प्यूटर्स लगे होते हैं और ये उपकरण मौसमी गड़बड़ियों या तेज हवाओं के अवरोधों का सामना करने में सक्षम होते हैं, लेकिन मौसम के साथ-साथ पायलटों की गड़बडि़यों के कारण दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है। पर बहुत कम विमान क्रूज एलिवेशन की हालत में होते हैं। हालांकि पिछली दुर्घटनाओं में एक में वर्ष 2009 में एयर फ्रांस फ्लाइट 447 भी क्रैश होकर अटलांटिक महासागर में गिर गई थी और यह क्रूज एलिवेशन पर थी। कहने का अर्थ यह है कि विमान अपनी यात्रा के एक समय पर लेवल पोजीशन में था और किसी भी गड़बड़ी का शिकार नहीं हुआ था।  
 
दुर्घटना की एक संभावना यह भी बनती है कि किसी प्रकार का विनाशकारी मेडल फटीग पैदा हुआ हो क्योंकि प्रत्येक टेकऑफ और लैंडिंग्स के अवसर पर प्रेशराइजेशन और डिप्रेशराइजेशन का चक्र काम करता है। इसका असर विमान के आवरण पर भी पड़ता है। वर्ष 2009 में जो दुर्घटना हुई थी, उससे जुड़ा ए320 गिरने से पहले 13,600 टेक ऑफ्स और लैंडिंग्स कर चुका था। इस तरह की क्रियाएं गीले, सर्द मौसम में होती हैं जिसके कारण क्षय या टूटफूट की क्रिया को बढ़ावा मिलता है। लेकिन इस मामले में मेटल फटीग की संभावना नहीं थी क्योंकि यह मात्र छह साल पुराना था। 
 
अंत में एक संभावना बनती है कि आतंकवादी कार्य की आशंका या पायलट ने सामूहिक हत्या को अंजाम दिया हो। इस तरह के कामों के कोई प्रमाण नहीं हैं लेकिन फिलहाल इन संभावनाओं को भी खारिज नहीं किया जा सकता है। अब इस बात पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है कि अंत समय में पायलट्स और एयर ट्रॉफिक कर्मचारियों के बीच क्या बातचीत हुई थी? वास्तव में पायलटों ने एयर ट्रॉफिक कंट्रोलरों से क्या कहा था? पायलट और एयर ट्रॉफिक कंट्रोल के बीच अंतिम संवाद तड़के छह बजकर 13 मिनट पर रविवार को हुआ था जिसमें पायलट ने बादलों के बाईं ओर से जाने और 34 हजार फीट की ऊंचाई पर जाने के बारे में जानकारी दी थी। राडार पर अंतिम बार सम्पर्क 
इसके तीन मिनट बाद हुआ था। 
 
उस समय पर कोई संकटकालीन कॉल नहीं आई थी। लेकिन पायलटों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे पहले तो आपातकालीन स्थिति पर ध्यान केन्द्रित करें और इसके बाद मुक्त होने पर वे इस बारे में कोई सूचना देते हैं। इस घटना के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह इस वर्ष मलेशियाई विमान के क्रैश होने की तीसरी घटना है। विदित हो कि इससे पहले मलेशिया एयरलाइंस की उड़ान संख्या 370 गायब हो गई थी। यह उड़ान कुआलालम्पुर से पेइचिंग के लिए जा रही थी और यह दुर्घटना 8 मार्च को हुई थी। यह उड़ान कहां गई और इसका क्या हुआ, यह कमर्शियल विमानन के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है। इसको लेकर आज तक कोई जानकारी हासिल नहीं की जा सकी है। मलेशिया एयरलाइंस की एक दूसरी उड़ान बोइंग 777 की थी जिसे पूर्वी यूक्रेन के ऊपर विद्रोहियों के नियंत्रित क्षे‍त्र में गिरा दिया गया बताया जाता है। यह उड़ान 17 जुलाई को कुआलालम्पुर के लिए एम्स्टर्डम से आ रही थी। विमान पर 298 यात्री सवार थे और इन सभी को मृत मान लिया गया है।
 
एयर एशिया भी मलेशिया में स्थि‍त है लेकिन इस उड़ान, 8501 का संचालन एयर एशिया इंडोनेशिया की सहयोगी कंपनी ने किया था, जिसका मलेशियाई पितृ कंपनी में 49 फीसदी हिस्सेदारी है। इसलिए इसे इंडोनेशियाई एयरलाइन कहना ही सही होगा लेकिन एयर एशिया ब्रांड मलेशियाई लोगों के साथ गहरे तक जुड़ी है। अब एक सवाल किया जा सकता है कि क्या इन सभी क्रेशेज (दुर्घटनाओं) में कोई सीधा संबंध है? लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता है लेकिन यह कहना गलत ना होगा कि वर्ष 2014 दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए बहुत ही मनहूस साबित हुआ है। इस कारण से लोगों के दिमागों में षड्यंत्र या तोड़फोड़ की घटनाओं के विचार भी दिमाग में आते रहे हैं। उड़ान 370 का क्या हुआ, यह समझ से परे सिद्ध हुआ। विमानों के इस तरह गायब होने के चलते उड़ान संख्या 8501 के गायब होने ने और भी नई कहानियों को जन्म दिया है। 
 
उड़ान के कागजों को देखने के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर जेट कितनी दूर तक उड़ सकता था? टेकऑफ के समय पर जेट में 18 हजार पौंड्‍स से ज्यादा ईंधन था और यह करीब साढ़े तीन घंटे तक उड़ सकता था। एनवाईसी एविएशन डॉट कॉम के संस्थापक और एक अमेरिकी एयरलाइन के उड़ान डिस्पैचर फिल डर्नर ने इस बात पर जोर दिया है। अब स्वाभाविक है कि सभी देशों का ध्यान विमान का मलबा खोजने पर लग गया है। इसलिए इंडो‍नेशिया, सिंगापुर और मलेशिया मिलकर जावा महासागर के बेलतिआंग द्वीप के पास खोज और बचाव अभियान चला रहे हैं। यह स्थान विमान का अंतिम ज्ञात स्थल है और यह माना जा रहा है कि विमान इस रास्ते से बहुत इधर-उधर नहीं भटका होगा। अगर खोजकर्ताओं को मलबा मिल जाता है तो इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंतिम समय में क्या हुआ होगा? जांचकर्ता चाहते हैं कि उन्हें फ्लाइट डॉटा और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर मिल जाएं, जिससे कि जहाज के अंतिम क्षणों के बारे में विस्तृत जानकारी मिल सकती है। 
 
इस दुर्घटना के बाद अब इस बात को लेकर भी सवाल खड़े किए जाने लगे हैं कि क्या एयर बस ए320 एक सुरक्षित जेट विमान है? यह विमान आधुनिक विमानन का एक सक्षम वर्कहॉर्स है और बोइंग 737 से मिलता-जुलता है। यह विमान भी सिंगल गलियारा वाला होता है जिसमें दो जेट इंजन लगे होते हैं और यह ऐसे दो शहरों को जोड़ने के लिए काम में आता है जो कि एक घंटे से लेकर पांच घंटे की दूरी पर हों। विदित हो कि इसी कारण से सारी दुनिया में 3606 ए320 उड़ानें भर रहे हैं। वैसे भी एयरबस विमानों के एक जैसे दिखने वाले संस्करण बनाती है। कंपनी आकार में छोटे ए318 और ए319 बनाती है और इन्हीं का बड़ा रूप ए321 है। ऐसे करीब 2486 जेट विमान भी उड़ रहे हैं। इस ए320 परिवार का सुरक्षा रिकॉर्ड भी बहुत अच्छा है। बोइंग के सेफ्टी अध्‍ययन में कहा गया है कि प्रति दस लाख टेकऑफ में से मात्र 0.14 घातक दुर्घटनाएं होती हैं।  
 
इस घटना के बाद एयर एशिया के बारे में भी सोचा जाने लगा है। विदित हो कि लो कॉस्ट एयर एशिया का ज्यादातर कामकाज दक्षिण-पूर्व एशिया में है और हाल में इसका प्रसार भारत में भी हुआ है। हालांकि इसकी ज्यादातर उड़ानें मात्र कुछेक घंटों के लिए होती हैं लेकिन इसने लम्बी दूरी की उड़ानों को भी अपनी सिस्टर एयरलाइन एयर‍एशिया एक्स के जरिए विस्तारित करने की कोशिश की है। पर इसकी किसी भी सहयोगी कंपनी ने इससे पहले अपने विमान नहीं गंवाए हैं।        
 
आमतौर पर इसका सुरक्षा रिकॉर्ड अच्छा है लेकिन इसकी मुश्किल यह है कि यह दुनिया के एक ऐसे हिस्से में अपनी उड़ानें संचालित करती है जहां पर हवाई यातायात बहुत तेजी से बढ़ा है लेकिन जहां पर योग्य पायलट, मैकेनिक्स और एयर ट्रॉफिक कंट्रोलर्स नहीं मिलते हैं। पर जहां तक इडोनेशिया में हवाई यातायात की सुरक्षा की बात है तो इस मामले में इसका सुरक्षा रिकॉर्ड खराब ही रहा है। विदित हो कि वर्ष 2007 में इंडोनेशिया में क्रैश रेट (दुर्घटनाओं की दर) और सुरक्षा उपायों की इतनी खराब हालत थी कि यूरोपीय यूनियन ने इंडोनेशिया की सभी एयरलाइंस की अपने सदस्य देशों में उड़ने पर रोक लगा दी थी। वर्ष 2009 में प्रतिबंध हटा लिया गया लेकिन देश की सबसे तेज बढ़ने वाली लॉयर एयर पर अभी भी यूरोपीय संघ ने रोक लगा रखी है।
 
लेकिन हवाई यातायात के लिए सबसे बड़ी मुश्किल खराब मौसम की होती है। आप शायद कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि खराब मौसम में 34 हजार फीट की ऊंचाई पर कड़कती बिजली वाले तूफान में विमान की क्या हालत होती है? इसके कारण विमानों को बहुत तेज अस्‍थिरता का सामना करना पड़ता है। ऐसे मौसम में विमान ऊपर जाता है, नीचे आता है, साइड में गिरने लगता है और घूमने लगता है। अगर कोई चीज सुरक्षित नहीं है तो वह कैबिन में तैरने लगती है और चीजों और लोगों का स्थिर रह पाना मुश्किल हो जाता है। ओवरहैड बिन्स खुल जाती हैं और इसकी चीजें फैल जाती हैं। ऐसे माहौल में एयरसिकनेस यात्रियों की सामान्य शिकायत बन जाती है। अब इस स्थिति से बचने की जिम्मेदारी पायलट की होती है और इनसे बचने के लिए वे कई उपाय अपनाते हैं। जहां तक संभव होता है, एयरलाइन के पायलट इन तूफानों के आसपास से निकलने की रणनीति अपनाते हैं भले ही इसके लिए उन्हें अपना नियत मार्ग छोड़ना पड़ता है। 
 
ए320 जैसे विमानों में आमतौर पर मौसम की अत्यधिक सच्ची जानकारी देने वाले राडार लगे होते हैं और इतना ही नहीं वे आसमानी तूफानों को बनते हुए 100 मील से भी ज्यादा दूरी से देख लेते हैं ताकि वे इनसे बचने के उपाय सोच लेते हैं। साथ ही, पायलट अपने निर्धारित रास्ते से एक सौ या अधिक मील की दूरी तक हट जाते हैं। पर यह भी तय है कि प्रत्येक विमान के एक निर्धारित ऊंचाई की सीमा तक सुरक्षित उड़ने की क्षमता होती है। इस कारण से एक ए320 भी 39 हजार फीट की ऊंचाई पर सुरक्षित तौर पर उड़ सकता है और इसके बाद इसका रेट ऑफ क्लाइम्ब कम होने लगता है। किसी भी हालत में यह 42 हजार फीट की ऊंचाई से अधिक पर नहीं उड़ पाता है। लेकिन 37 हजार फीट की ऊंचाई पर ही समस्याएं आने लगती हैं और यह भी तापमान और वजन पर निर्भर करता है। वजन में ईंधन, कार्गो और यात्रियों का वजन शामिल होता है। 
 
विमान के कम्प्यूटर बताते हैं कि वर्तमान वजन और तापमान पर यह कितनी अधिकतम ऊंचाई पर उड़ सकता है। जो विमान अपनी अधिकतम एल्टीट्‍यूड से आगे निकल जाते हैं, वे अपनी लिफ्‍ट हो सकते हैं और उन्हें एयरोडाइनैमिक स्टाल का सामना करना पड़ता है। या फिर ऐसे विमान प्रेसराइजेशन ब्लोआउट (एकाएक गड़बड़ी) को सामने खड़ा पाते हैं और इससे विमान को नुकसान पहुंचना तय होता है। इस संबंध में एक सामयिक प्रश्न यह भी है कि एक विमान कैसे राडार से बाहर हो जाता है या दिखाई नहीं पड़ता है? यह बात अभी भी स्पष्ट नहीं है कि कैसे और कब ट्रॉफिक कंट्रोलर ने देखा कि विमान राडार पर नहीं है? अधिकारियों ने यह बात स्पष्ट तौर पर नहीं बताई कि जब विमान राडार पर नहीं था, तब क्या उन्होंने सेकंडरी राडार टारगेट को नहीं देखा जो कि विमान के ट्रांसपोंडर से पैदा होता है। पर क्या इसके साथ ही, उन्होंने प्राइमरी राडार टारगेट को भी नहीं देखा? यह विमान द्वारा परावर्तित ऊर्जा से पैदा होती है। 
 
वास्तव में, जब एक विमान हवा में टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाता है या फिर इसका इलेक्ट्रिकल पावर समाप्त हो जाता है, तब सेकंडरी टारगेट राडार पर से गायब हो जाता है लेकिन प्राइमरी टारगेट राडार पर तब भी दिखाई पड़ता है। लेकिन अगर विमान छह हजार प्रति मिनट से भी अधिक तेजी से नीचे की ओर आता है और ऐसा प्लेन क्रैश के मामले में अमूमन होता है तो राडार पर से प्राइमरी टारगेट भी गायब हो जाता है। यह प्रक्रिया कैसे और कितनी शीघ्रता से हुई, इस बात की जानकारी तो एयर ट्रॉफिक कंट्रोलर ही दे सकते हैं लेकिन यह भी तभी संभव होता है जबकि वे अपने काम में बहुत अधिक प्रवीण होते हैं। संभव है कि अंतिम क्षणों से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी एयर ट्रॉफिक कंट्रोलर्स राडार पर सही-सही नहीं देख पाए हों। 

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