अनुकूलताओं के बीच ब्रिक्स सम्मेलन

इस समय ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन गोवा में चल रहा है। यह सम्मेलन भारत के लिए बहुत ही अनुकूल समय पर हो रहा है, क्योंकि यह भारतीय प्रधानमंत्री को पाकिस्तान के विरुद्ध कूटनीति को आगे बढ़ाने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है। 
 
ब्रिक्स 5 देशों का गुट है जिनमें भारत के अतिरिक्त चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील राष्ट्र शामिल हैं। विश्व की ये उभरती हुईं अर्थव्यवस्थाएं इस मंच के माध्यम से अपनी उभयनिष्ठ (कॉमन) समस्याओं का साझा हल ढूंढने में सहयोग करती हैं। ये 5 देश मिलकर विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
 
अन्य उद्देश्यों के अतिरिक्त इनकी कोशिश है कि किसी तरह एक वैश्विक मुद्रा बनाई जाए, जो सुदृढ़ एवं स्थिर हो। जो डॉलर के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके एवं उसके एकाधिकार को तोड़ सके। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन देशों ने ब्रिक्स बैंक की नींव भी रखी है। 
 
जैसा कि हम जानते हैं कि आजकल इन वैश्विक सम्मेलनों में द्विपक्षीय वार्ताओं का महत्व बढ़ता जा रहा है। भारत की सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ अलग-अलग चर्चा भी होगी। चीन के साथ जो प्रमुख मुद्दे उठेंगे उनमें शामिल है आतंकवादी मसूद अजहर का मामला। भारत इस आतंकी को संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से वैश्विक स्तर पर आतंकवादी घोषित करना चाहता है किंतु चीन, पाकिस्तान के दबाव में आकर इस कदम का विरोध कर रहा है। इसके अलावा एनएसजी की सदस्यता और ब्रह्मपुत्र पर बांध आदि के मुद्दे भी हैं। इन तीनों ही मुद्दों पर चीन का रुख तर्कसम्मत न होकर पाकिस्तानी-झुकाव से प्रेरित है। 
 
भारतीय प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ता में चीन के राष्ट्रपति को भारत के प्रश्नों का जवाब देना इतना आसान नहीं होगा इसलिए चीन के राष्ट्रपति के भारतीय दौरे से पूर्व ही चीनी अखबारों में इन मुद्दों पर चीन के पक्ष को उचित ठहराने की वकालत की जा रही है तथा अन्य बेसिरपैर के मुद्दों को उठाया जा रहा है। कभी गरम तो कभी नरम। 
 
भारत के सामने दूसरा अवसर होगा रूस के राष्ट्रपति पुतिन को फिर से विश्वास दिलाने का कि भारत की ओर से रूस की मित्रता में कोई ढील नहीं है। रूस और अमेरिका शीतयुद्ध के पश्चात पहली बार फिर से अपने रिश्तों के निम्नतम स्तर पर पहुंच चुके हैं। 
 
रूस को भारत, अमेरिका की ओर झुकता दिखाई दे रहा है, जो निश्चित ही उसे रास नहीं आ रहा है इसलिए उसने भी भारत को कुछ संकेत दिए हैं उदाहरण के लिए पहली बार रूसी सेना ने पाकिस्तानी सेना के साथ संयुक्त अभ्यास किया। यद्यपि यह अभ्यास सांकेतिक ही रहा। भारत को तकनीक, व्यवसाय और पाकिस्तान एवं चीन के विरुद्ध लामबंदी के लिए अमेरिका से नजदीकी रिश्ते रखना जरूरी है किंतु इस दोस्ती के एवज में रूस का साथ कतई नहीं छोड़ा जा सकता। 
 
रूस ही ऐसा देश है, जो आवश्यकता पड़ने पर भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो कर सकता है जिस तरह से चीन, पाकिस्तान की नाजायज गलतियों के बावजूद उसका साथ नहीं छोड़ रहा है। दूसरी ओर रूस, भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता भी है अत: भारत के साथ उसका सहयोग बहुत आवश्यक है। भारत को रूस की उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणाली भी चाहिए और इस सम्मेलन के दौरान यह समझौता संभावित है।
 
भारत इस समय दो नावों (अमेरिका एवं रूस) पर सवार है किंतु यह उसकी मजबूरी है। रूस और चीन के बीच रिश्ते तेजी से सामान्य ही नहीं हो रहे बल्कि नजदीकियां भी बढ़ रही हैं। ऐसे में भारत को इस अमेरिका, रूस और चीन की तिकड़ी में चौथा खंभा बनना है। यूरोपीय संघ बन सकता था किंतु वह अलग शक्ति नहीं बनकर अमेरिका का सहारा-भर बनकर रह गया। 
 
चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के बीच भारत की भूमिका वैश्विक शक्ति संतुलन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। जब भारत चौथे खंभे की भांति खड़ा हो जाएगा तो पाकिस्तान की नजरें अपने आप झुक जाएंगी। 
 
इधर मोदी सरकार ने एक और बड़ा कूटनीतिक दांव खेला है। ऐसे बड़े सम्मेलनों में मेजबान देश को अधिकार होता है कि वे अपनी पसंद के अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को सम्मेलन में आमंत्रित कर सकता है। भारत ने बड़ी चतुराई से अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, लंका, बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव और थाईलैंड के राष्ट्राध्यक्षों को निमंत्रित किया है तथा पाकिस्तान को नहीं बुलाया गया है। 
 
इन सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के लिए भी अवसर होगा विश्व की 5 सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के राष्ट्राध्यक्षों से मिलने का। इस तरह भारत ने जहां अपने पड़ोसियों को साथ लेकर चलने की अपनी मंशा को दुहराया है वहीं पाकिस्तान को तन्हा करने की कोशिश में वह कामयाब हुआ है। इस सम्मेलन के परिणाम पर सबकी निगाहें होंगी विशेषकर हमारे पड़ोसी मुल्क की। 
 
अनेक अनुकूलताओं के आकलन से इस लेखक का यह मत बनता है कि भारत का हर पैंतरा अपेक्षा के अनुरूप सही बैठेगा। पूरी तैयारी के साथ किए जा रहे सार्थक प्रयत्नों को सफलता मिलेगी, इसमें संदेह नहीं होना चाहिए।

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