-अनिल त्रिवेदी
25-26 जून की रात में सन् 1975 में लगा आपातकाल भारतीय लोकतंत्र की ऐसी घटना है जिसने भारतीय राजनीति के स्वरूप को स्थायी रूप से बदलने का ऐतिहासिक कार्य किया है। 40 साल के अंतराल के बाद आज भारतीय राजनीति जहां पहुंच गई है, उसके मूल में आपातकाल के गर्भ के निकली राजनीतिक धाराओं का बड़ा योगदान है।
1975 से लेकर 2015 तक के 40 वर्ष के कालखंड में भारतीय राजनीति का समूचा चेहरा बदल गया है। 40 साल यानी दो पीढ़ी का कालखंड गुजर गया। भारतीय राजनीति के स्वरूप में बुनियादी बदलाव तो दिखाई देता है, पर 1975 के बुनियादी सवाल महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, शिक्षा में असमानता आज भी अपना विकराल स्वरूप बनाए हुए देश की राजनीति से सीधा सवाल तो कर ही रहे हैं। 1975 के जनमानस की देशव्यापी मुखरता आज देशव्यापी आर्थिक गुलामी और असमानता के सामने असहाय होती जा रही है।
1975 में भारतीय राजनीति में लोकशक्ति का उभार इतनी तेजी से हुआ था जिसे रोकने के लिए पहली बार आपातकाल के सहारे तंत्र को चलाने का जुआ तत्कालीन इंदिरा सरकार ने खेला। ऊपरी तौर पर आपातकाल ने भारतीय राजनीति को सत्ता की मनमानी शक्ति से समूचे प्रशासकीय तंत्र को इतना ताकतवर बना दिया कि भारत में लोकतंत्र होते हुए भी लोगों की आजादी और नागरिक अधिकार कैद हो गए।