EVM पर हाय तौबा! ...तो तब बीजेपी 'खिसियानी बिल्ली' थी?

Webdunia
डॉ. राकेश पाठक
 
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के हैरतअंगेज नतीजों के बाद मायावती ने EVM पर सवाल उठाया। शनिवार लेकर अब तक उन्हें 'खिसियानी बिल्ली' कहकर खूब मखौल उड़ाया जा रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं 2014 से पहले खुद बीजेपी 'खिसियानी बिल्ली' बनी हुई थी। आइए तथ्यों पर गौर कीजिए...

 
* 2009 में बीजेपी (एनडीए) की हार के बाद उसने बाकायदा EVM के खिलाफ अभियान चलाया था। आरोप वही थे, जो आज मायावती लगा रहीं हैं। तब इन इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के खिलाफ बोलने की कमान सम्हाली थी किरीट सौमैया और जीवीएल नरसिम्हाराव ने। सौमैया और नरसिम्हाराव दोनों को ही बीजेपी का कद्दावर नेता माना जाता है।
 
किरीट सौमैया तो बाकायदा EVM में गड़बड़ी की कहानी अलग-अलग शहरों में जाकर सुनाया करते थे। किरीट सौमैया साथ में एक आईटी विशेषज्ञ भी हुआ करता था, जो कम्प्यूटर-लैपटॉप पर दिखाता था ईवीएम मशीनों में कैसे गड़बड़ी कैसे हो सकती है।
 
* बाद में जीवीएल नरसिम्हा राव ने (जो कि बीजेपी के प्रवक्ता भी हैं) एक किताब लिखी।  इस किताब का नाम है-- ‘Democracy at Risk,Can We Trust Our Electronic Voting Machines?’ यह किताब 2010 में प्रकाशित हुई थी। इसकी भूमिका और प्रस्तावना लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी। जैसा कि शीर्षक ही बता रहा है बीजेपी को EVM पर बिलकुल भरोसा नहीं था और पार्टी इन मशीनों को 'लोकतंत्र के लिए खतरे' के रूप में देख रही थी। 
 
इस किताब में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा की जाने वाली धोखाधड़ी का विस्तार से खुलासा किया गया।
इसमें इन दोनों (सौमैया और नरसिम्हाराव) ने मांग की थी कि दुनिया के तमाम विकसित देशों की ही तरह EVM से मतदान बंद कराया जाए या इसके साथ अमेरिका की तरह Voter Verified Paper Audit Trail (VVPAT) प्रणाली की व्यवस्था की जाए। 
 
* एक हैं प्रोफेसर सुब्रह्मण्यम स्वामी..बीजेपी और नरेंद्र मोदी जी के खासमखास।  प्रो. स्वामी ने बाकायदा सुप्रीम कोर्ट में EVM के खिलाफ याचिका लगाई और इसके जरिए गड़बड़ी की संभावनाएं विस्तार से बताईं।  प्रो. स्वामी के दसियों वीडियो नेट पर उपलब्ध हैं, जिनमें वे EVM के खिलाफ जमकर बोलते हुए दिखाई दे जाएंगे।
 
सुप्रीम कोर्ट ने तो ब्रह्मण्यम स्वामी.से सुझाव भी मांगा था कि EVM  में गड़बड़ी न हो इसके लिए क्या किया जा सकता है? प्रो. स्वामी अमेरिका और यूरोप के कई देशों के नाम गिनाते हैं, जहां आज भी बैलेट पेपर से मतदान होता है।
 
प्रसंगवश, बस याद दिलाया गया है कि अगर आज आप मायावती को 'खिसियानी बिल्ली' कह रहे हैं तो जब 2014 तक आपने यह अभियान चलाया था तब आप क्या थे...? (थोड़ा सा इनपुट- आनंद स्वरुप वर्मा व्हाया अशोक पाण्डेय की वॉल से)
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