एक पुराना विज्ञापन था- 'चिंता छोड़ो, सुख से जीयो।' आज के जमाने में अगर यह नारा लिखने हो, तो लिखना होगा- 'फेसबुक छोड़ो, सुख से जीयो।' कैम्ब्रिज एनालिटिका कांड के बाद और फेक न्यूज विवाद के चलते फेसबुक खुद भारी संकट में है। फेसबुक के शेयरों में एक दिन में ही इतनी भारी गिरावट आई कि मार्ग जकरबर्ग की संपत्ति एक ही दिन में 1,600 करोड़ डॉलर (एक लाख दस हजार करोड़ रुपए से अधिक) की कमी आ गई।
दूसरी तरफ पूरी दुनिया में लोग यह मानने लगे हैं कि फेसबुक फेक न्यूज के प्रचार का नया सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म बन गया है और उसका नाम 'फेसबुक' के बजाय 'फेकबुक' होना चाहिए। बड़ी संख्या में लोग फेसबुक से अलग हो रहे हैं। लेहाई विश्वविद्यालय के कम्प्यूटर विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर एरिक पीएस बामेर ने इस पर अध्ययन किया, तो पाया कि जो लोग फेसबुक छोड़कर जा रहे हैं, उनमें अधिकांश युवा और किशोर वर्ग के हैं।
रिसर्च में यह बात भी सामने आई कि जो लोग फेसबुक छोड़कर नहीं जा रहे हैं, वे अब फेसबुक पर कम लॉगइन करते हैं। अपना समय भी फेसबुक पर कम बिता रहे हैं। विश्वविद्यालय ने इसके लिए सर्वेक्षण और इंटरव्यू भी किए। ये इंटरव्यू 18 साल के कम के लोगों के किए गए, जिसमें यह पता चला कि लोगों के पास अब फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म के लिए भी समय कम है।
अध्ययन के मुताबिक एक जमाने में फेसबुक का उपयोग युवा और किशोर वर्ग के लोग किया करते थे, लेकिन अब मध्य आयु वर्ग के लोग भी फेसबुक का उपयोग करने लगे थे। इनमें महिलाओं की संख्या अच्छी-खासी है। जो महिलाएं नौकरीपेशा नहीं हैं, वे फेसबुक पर जरूर अपना समय खर्च करती हैं।
रिसर्च को एसोसिएशन ऑफ कम्प्यूटिंग मशीनरी कॉन्फ्रेंस (एसीएम) की डिजिटल लाइब्रेरी में उपलब्ध कराया गया है। इसके अनुसार फेसबुक अकेला सोशल मीडिया का प्रतिनिधि नहीं है। उसका उपयोग अब सभी आय और आयु वर्ग के लोग तो करते हैं, लेकिन वे भी अब उससे ऊबते जा रहे हैं।
कुछ देशों में तो सामाजिक संस्थाओं ने फेसबुक से नाता तोड़ने के लिए बाकायदा अभियान चला रखे हैं। इन संस्थाओं का कहना है कि फेसबुक के बजाय इंटरनेट के गंभीर मंचों का उपयोग ज्ञान बढ़ाने और मनोरंजन के लिए किया जा सकता है। ऐसे में इंटरनेट पर निर्भरता की जरूरत नहीं है। कुछ संस्थाओं ने फेसबुक पर एकाधिकार बढ़ाने का अभियान भी चलाया है।